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आपराधिक कानून

विद्वेषपूर्ण अभिभावक सिंड्रोम

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 09-Feb-2024

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“लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012, जिसका उद्देश्य बालकों को दुर्व्यवहार से बचाना है, अपराध में अग्रिणी व्यक्तियों द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा रहा है।”

न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना

स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने विद्वेषपूर्ण अभिभावक सिंड्रोम की उभरती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लैंगिक अपराधों से बालकों की सुरक्षा अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) के प्रावधान, जो बालकों को दुर्व्यवहार से बचाने के लिये हैं, अपराध में अग्रिणी व्यक्तियों इसका द्वारा इनका दुरुपयोग किया जा रहा है।

इस मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, प्रतिवादी शिकायतकर्त्ता है।
  • प्रतिवादी एवं श्रीमती. श्रुति कावेरी अय्यर का विवाह 26 अप्रैल, 2007 को हुआ और इस विवाह से एक बेटी का जन्म हुआ।
  • इस आधार पर कि प्रतिवादी और बच्चे की माँ के बीच संबंध खराब हो गए, इसका अंत विवाह-विच्छेद में हुआ और बच्चे की अभिरक्षा माँ के पास ही रही।
  • इसके बाद, प्रतिवादी ने बच्चे की अभिरक्षा की मांग करते हुए पारिवारिक न्यायालय में मामला दायर किया।
  • माँ ने अपनी बेटी की अभिरक्षा बहाल करने की मांग करते हुए एक निष्पादन याचिका दायर की।
  • इसके बाद, प्रतिवादी ने वर्तमान याचिकाकर्त्ता, जो बच्चे की माँ का तीसरा पति है, के विरुद्ध POCSO अधिनियम की धारा 11 और 12 के तहत शिकायत दर्ज की।
  • याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि शिकायतकर्त्ता उसे परेशान करने के लिये बच्चे का इस्तेमाल कर रही थी। उसने बताया कि POCSO अधिनियम के तहत किसी भी अपराध के आरोप की कोई अफवाह नहीं थी
  • प्रतिवादी ने POCSO अधिनियम की धारा 29 का हवाला देते हुए याचिका का विरोध किया, जो अभियुक्त के विरुद्ध एक उपधारणा बनाती है।
  • इसके बाद, कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष एक वर्तमान याचिका दायर की गई जिसे बाद में न्यायालय ने अनुमति दे दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि एक मासूम बच्चे का इस्तेमाल प्रतिवादी, बच्चे की माँ के पूर्व पति द्वारा माँ और वर्तमान याचिकाकर्त्ता को परेशान करने के लिये किया जा रहा है। यदि वर्तमान याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध आगे की कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह प्रतिवादी द्वारा कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण होगा। बच्चे की मासूमियत से छेड़छाड़ की जाती है; एक संघर्षरत माता-पिता द्वारा उसकी भावनाओं का उपयोग और दुरुपयोग किया जा रहा है। यही कारण है कि जब माता-पिता झगड़ने लगते हैं, तो सबसे अधिक पीड़ा बच्चे को होती है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि POCSO अधिनियम के प्रावधान, जो बालकों को दुर्व्यवहार से बचाने के लिये हैं, अपराध में अग्रिणी व्यक्तियों इसका द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है।
  • न्यायालय ने विद्वेषपूर्ण अभिभावक सिंड्रोम पर चिंता व्यक्त की, जिसके तहत एक विद्वेषपूर्ण माता-पिता बच्चे को अलग करके, बच्चे से मिलने से इनकार करके और बच्चों से झूठ बोलकर दूसरे माता-पिता को दंडित करने के प्रयासों में संलग्न होते हैं।

प्रासंगिक कानूनी प्रावधान क्या हैं?

POCSO अधिनियम, 2012:

परिचय:

  • यह अधिनियम वर्ष 2012 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत पारित किया गया था।
  • यह बालकों को लैंगिक उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य सहित अपराधों से बचाने के लिये बनाया गया एक व्यापक कानून है।
  • यह एक लिंग तटस्थ अधिनियम है और बच्चे के कल्याण को सर्वोपरि महत्त्व का विषय मानता है।
  • यह ऐसे अपराधों और संबंधित मामलों तथा घटनाओं की सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • POCSO संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा इस अधिनियम में प्रवेशन यौन उत्पीड़न और गंभीर प्रवेशन यौन उत्पीड़न के अपराधों के लिये सज़ा के रूप में मृत्युदंड की शुरुआत की गई थी।
  • इस अधिनियम की धारा 4 में प्रवेशन यौन उत्पीड़न के लिये सज़ा का प्रावधान है।
  • इस अधिनियम की धारा 2(1)(d) के तहत, 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बालक के रूप में परिभाषित किया गया है।

POCSO अधिनियम की धारा 11:

  • इस अधिनियम की धारा 11 लैंगिक उत्पीड़न से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि कोई व्यक्ति, किसी बालक पर लैंगिक उत्पीड़न करता है, यह कहा जाता है जब ऐसा व्यक्ति लैंगिक आशय से-
    (i) कोई शब्द कहता है या ध्वनि या कोई अंगविक्षेप करता है या कोई वस्तु या शरीर का भाग इस आशय के साथ प्रदर्शित करता है कि बालक द्वारा ऐसा शब्द या ध्वनि सुनी जाएगी या ऐसा अंग विक्षेप या वस्तु या शरीर का भाग देखा जाएगा; या
    (ii) किसी बालक को उसके शरीर या उसके शरीर का कोई भाग प्रदर्शित करवाता है जिससे उसको ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा देखा जा सके; या
    (iii) अश्लील प्रयोजनों के लिये किसी प्रारूप या मीडिया में किसी बालक को कोई वस्तु दिखाता है; या
    (iv) बालक को या तो सीधे या इलेक्ट्रानिक, अंकीय या किसी अन्य साधनों के माध्यम से बार-बार या निरंतर पीछा करता है या देखता है या संपर्क करता है; या
    (v) बालक के शरीर के किसी भाग या लैंगिक कृत्य में बालक के अंतर्ग्रस्त होने का, इलेक्ट्रानिक, फिल्म या अंकीय या किसी अन्य पद्धति के माध्यम से वास्तविक या गढ़े गए चित्रण को मीडिया के किसी रूप में उपयोग करने की धमकी देता है; या
    (vi) अश्लील प्रयोजनों के लिये किसी बालक को प्रलोभन देता है या उसके लिये परितोषण देता है।

POCSO अधिनियम की धारा 12:

  • यह धारा लैंगिक उत्पीड़न के लिये सज़ा से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई, किसी बालक पर लैंगिक उत्पीड़न करेगा वह दोनो में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक को हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दंडनीय होगा।

POCSO अधिनियम की धारा 29:

  • यह धारा कुछ अपराधों के बारे में उपधारणा से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जहाँ किसी व्यक्ति को इस अधिनियम की धारा 3, धारा 5, धारा 7 और धारा 9 के अधीन किसी अपराध को करने या दुष्प्रेरण करने या उसको करने का प्रयत्न करने के लिये अभियोजित किया गया है वहाँ विशेष न्यायालय तब तक यह उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने, यथास्थिति, वह अपराध किया है, दुष्प्रेरण किया है या उसको करने का प्रयत्न किया है जब तक कि इसके विरुद्ध साबित नहीं कर दिया जाता है।