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निजी मेडिकल संस्थानों में अनुप्रयोज्य मातृत्व लाभ

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 09-Jun-2024

अध्यक्ष, PSM कॉलेज ऑफ डेंटल साइंसेज एंड रिसर्च बनाम रेशमा विनोद एवं अन्य

“मातृत्व लाभ अधिनियम 6 मार्च 2020 के बाद निजी चिकित्सा संस्थानों पर लागू होगा”।

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह

स्रोत:  केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?    

केरल उच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में PSM कॉलेज ऑफ डेंटल साइंसेज एंड रिसर्च के चेयरमैन बनाम रेशमा विनोद एवं अन्य के मामले में निजी शिक्षण संस्थानों पर मातृत्व लाभ अधिनियम की अनुप्रयोज्यता के संबंध में दिये गए निर्णय ने काफी ध्यान आकर्षित किया है। न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की अध्यक्षता में यह मामला एक डेंटल कॉलेज एवं रिसर्च सेंटर द्वारा दायर रिट याचिका से उत्पन्न हुआ था।

  • संस्था ने एक निरीक्षक के नोटिस का विरोध किया, जिसमें रेशमा विनोद नामक एक कर्मचारी के लिये मातृत्व लाभ का अनुपालन न करने का आरोप लगाया गया था।
  • संस्था के उत्तर के बावजूद, निरीक्षक ने उन्हें रेशमा को एक बड़ी राशि का भुगतान करने का आदेश दिया, एक निर्णय जिसके विरुद्ध अधिनियम की धारा 17(3) के अंतर्गत असफल अपील की गई।

कॉलेज ऑफ डेंटल साइंसेज़ एंड रिसर्च के चेयरमैन बनाम रेशमा विनोद एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • याचिकाकर्त्ता एक डेंटल कॉलेज एवं अनुसंधान केंद्र है, जिसे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत की अनुमति से स्थापित किया गया है।
  • वर्ष 2017 में, एक याचिकाकर्त्ता को मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (मातृत्व अधिनियम) के अंतर्गत मातृत्व लाभ का भुगतान न करने का आरोप लगाते हुए एक कारण बताओ नोटिस मिला।
  • याचिकाकर्त्ता के विस्तृत उत्तर के बावजूद, प्रथम प्रतिवादी को मातृत्व लाभ का भुगतान करने का आदेश पारित किया गया।
  • याचिकाकर्त्ता ने मातृत्व अधिनियम की धारा 17(3) के अंतर्गत अपील की, जिसे खारिज कर दिया गया।
  • याचिकाकर्त्ता ने लागू प्रतिष्ठानों के संबंध में विशिष्ट प्रावधानों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि मातृत्व अधिनियम सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं होता है।
  • मामला यह है कि क्या निजी चिकित्सा शिक्षण संस्थान मातृत्व अधिनियम के दायरे में आते हैं। याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि ऐसे संस्थान, जो सामान्य "दुकानें या प्रतिष्ठान बाज़ार" नहीं हैं, उन्हें अधिनियम के अधीन नहीं होना चाहिये।
  • इसके विपरीत, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि चूँकि केरल दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम के अंतर्गत चिकित्सा शैक्षणिक संस्थानों को छूट नहीं दी गई है, इसलिये मातृत्व अधिनियम उन पर लाभकारी विधि के रूप में लागू होता है।
  • पिछले निर्णयों एवं विधायी अधिसूचनाओं का हवाला देते हुए, न्यायालय ने शैक्षणिक संस्थानों के लिये मातृत्व अधिनियम की अनुप्रयोज्यता निर्धारित की।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय का अवलोकन यह दर्शाता है कि यद्यपि निजी शैक्षणिक संस्थानों को उद्योग माना जा सकता है, लेकिन वे आवश्यक रूप से केरल दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम, 1960 के अंतर्गत प्रतिष्ठानों की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते हैं।
    • यह सूक्ष्म अंतर मातृत्व लाभ अधिनियम के अनुप्रयोग के लिये निहितार्थ रखता है, क्योंकि यह सुझाव देता है कि कुछ संस्थाएँ विशिष्ट सरकारी अधिसूचनाओं से पहले स्वचालित रूप से इसके प्रावधानों से बंधी नहीं हो सकती हैं।
    • अधिनियम के अंतर्गत प्रतिष्ठान का अर्थ है ऐसा प्रतिष्ठान जो कोई व्यवसाय, व्यापार या पेशा या उससे संबंधित या उससे जुड़ी या सहायक के रूप में कोई कार्य करता है। उद्योगों में कोई भी व्यवसाय, व्यापार, उपक्रम, विनिर्माण या कर्मचारी शामिल होंगे तथा इसमें कर्मकारों द्वारा कोई निविदा सेवा, रोज़गार, हस्तशिल्प या औद्योगिक व्यवसाय या पेशा शामिल होगा।

इस मामले में उद्धृत महत्त्वपूर्ण निर्णय क्या है?

  • रूथ सोरेन बनाम प्रबंध समिति, ईस्ट ISSDA एवं अन्य, (2000)
    • न्यायालय ने कहा कि एक शैक्षणिक संस्थान को उद्योग तो माना जा सकता है, लेकिन प्रतिष्ठान नहीं।
    • शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा प्रदान करने के लिये नियोक्ताओं एवं कर्मचारियों के मध्य एक संगठित गतिविधि होती है।
    • ऐसी गतिविधि, हालाँकि उद्योग हो सकती है, तथापि, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के अंतर्गत व्यवसाय, व्यापार या कारोबार नहीं होगी, क्योंकि यह अधिनियम के अंतर्गत स्थापना की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगी।

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 क्या है?

  • परिचय:
    • मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 एक ऐसी विधि है जो मातृत्व के दौरान महिलाओं को रोज़गार प्रदान करता है।
    • यह महिला कर्मचारियों को 'मातृत्व लाभ' सुनिश्चित करता है, जिसके अंतर्गत नवजात शिशु की देखभाल के लिये काम से अनुपस्थित रहने के दौरान भी उन्हें वेतन मिलता है।
    • यह 10 से अधिक कर्मचारियों को रोज़गार देने वाले किसी भी प्रतिष्ठान पर लागू होता है। मातृत्व संशोधन विधेयक, 2017 के अंतर्गत इस अधिनियम में और संशोधन किया गया।
    • यह अधिनियम मातृत्व की गरिमा की रक्षा करने वाली एक महत्त्वपूर्ण विधि है।
    • यह सुनिश्चित करने में भी सहायता करता है कि कामकाजी महिलाएँ अपने बच्चों की उचित देखभाल करने में सक्षम हों। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के अतिरिक्त, मातृत्व लाभ महिलाओं को उनके वित्तीय मामलों में भी सहायता करते हैं।
  • मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961
    • अनुप्रयोज्यता: यह अधिनियम कारखानों, खानों, बागानों, दुकानों एवं अन्य संस्थाओं सहित दस या अधिक लोगों को रोज़गार देने वाले सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होता है।
    • लाभ अवधि: एक महिला 26 सप्ताह के मातृत्व अवकाश की अधिकारी है, जिसमें चिकित्सा जटिलताओं या अन्य निर्दिष्ट परिस्थितियों के मामले में इसे अतिरिक्त 4 सप्ताह तक बढ़ाने का प्रावधान है।
    • अवकाश के दौरान भुगतान: नियोक्ता को मातृत्व अवकाश पर गई महिला को उसकी अवकाश की अवधि के लिये उसके औसत दैनिक वेतन की दर से भुगतान करना आवश्यक है।
    • मेडिकल बोनस: नियोक्ता को उन महिलाओं को मेडिकल बोनस भी प्रदान करना आवश्यक है जो पूर्ण मातृत्व अवकाश का लाभ नहीं उठाती हैं, बशर्ते कि उन्होंने अपनी गर्भावस्था से पहले एक निश्चित अवधि तक काम किया हो।
    • पद्च्युति का निषेध: मातृत्व अवकाश अवधि के दौरान, नियोक्ताओं के लिये किसी महिला को पद्च्युत करना या अवकाश देना या पद्च्युति का नोटिस देना अविधिक है।
    • क्रेच सुविधाएँ: 50 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों को क्रेच सुविधाएँ प्रदान करना और महिलाओं को काम के घंटों के दौरान क्रेच में जाने की अनुमति देना आवश्यक है।

मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के अंतर्गत भुगतान को निर्देशित करने के लिये निरीक्षक की शक्तियाँ क्या हैं?

  • अधिनियम की धारा 17 निरीक्षक को भुगतान करने की शक्ति से संबंधित है।
  • कोई भी महिला दावा कर सकती है:
    • मातृत्व लाभ या इस अधिनियम के अंतर्गत अधिकृत कोई अन्य राशि।
    • धारा 7 के अंतर्गत देय भुगतान का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुचित तरीके से रोक दिया गया है।
    • अधिनियम के अनुसार कार्य से अनुपस्थित रहने के कारण या उसके दौरान नियोक्ता द्वारा उसे पद्च्युत या सेवा से हटाये जाने पर वह निरीक्षक को शिकायत कर सकती है।
  • निरीक्षक:
    • वह अपनी इच्छा से या शिकायत प्राप्त होने पर जाँच कर सकता है।
    • यदि वह संतुष्ट हो कि:
      • भुगतान दोषपूर्ण तरीके से रोका गया है, अपने आदेश के अनुसार भुगतान का निर्देश दे सकता है।
      • उसे अधिनियम के अनुसार कार्य से अनुपस्थित रहने के दौरान या उसके कारण अवकाश दे दिया गया है या पद्च्युत कर दिया गया है, परिस्थितियों के आधार पर न्यायोचित एवं उचित आदेश पारित कर सकता है।
  • निरीक्षक के निर्णय से व्यथित कोई भी व्यक्ति:
    • निर्णय की सूचना की तिथि से तीस दिन के अंदर निर्धारित प्राधिकारी को अपील की जा सकेगी।
  • निर्णय:
    • निर्धारित प्राधिकारी, जहाँ अपील प्रस्तुत की गई हो।
    • निरीक्षक, जहाँ कोई अपील प्रस्तुत नहीं की गई हो, अंतिम होगा।
  • इस धारा के अंतर्गत देय कोई भी राशि:
    • निरीक्षक द्वारा उस राशि के लिये जारी प्रमाण-पत्र पर कलेक्टर द्वारा भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूली योग्य होगी।