Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

पारिवारिक कानून

विवाह में मानसिक क्रूरता

    «    »
 28-Dec-2023

आलोक भारती बनाम ज्योति राज

"एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे पर विवाहेत्तर अन्य व्यक्तियों के साथ कथित अवैध संबंध रखने का झूठा आरोप लगाना मानसिक क्रूरता है।"

न्यायमूर्ति पी. बी. बजथ्री और रमेश चंद मालवीय

स्रोत: पटना उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने आलोक भारती बनाम ज्योति राज के मामले में माना है कि पति या पत्नी द्वारा दूसरे पर विवाहेत्तर विभिन्न व्यक्तियों के साथ कथित अवैध संबंध रखने का झूठा आरोप लगाना मानसिक क्रूरता है।

आलोक भारती बनाम ज्योति राज मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अपीलकर्त्ता (पति) और प्रतिवादी (पत्नी) ने वर्ष 2012 में हिंदू रीति-रिवाज़ों के अनुसार विवाह किया था।
  • उनमें कुछ घरेलू मुद्दे थे क्योंकि प्रतिवादी पति के वैवाहिक घर में रहने की इच्छुक नहीं थी।
  • वर्ष 2016 में महिला ने अपने पति, ससुराल वालों तथा छह अन्य लोगों पर वैवाहिक यातना और क्रूरता का आरोप लगाते हुए पुलिस मामला दर्ज करके कानूनी कार्यवाही शुरू की।
  • इस पृष्ठभूमि में, अपीलकर्त्ता-पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13 (1) (i-a) और 13 (1) (i-b) के तहत पारिवारिक न्यायालय के समक्ष मामला दायर किया।
  • पारिवारिक न्यायालय ने अपीलकर्त्ता की याचिका खारिज़ कर दी।
  • इसके बाद, पटना उच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई जिसे बाद में न्यायालय ने अनुमति दे दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति पी.बी. बजथ्री और न्यायमूर्ति रमेश चंद मालवीय की पीठ ने कहा कि पति या पत्नी द्वारा दूसरे पर विवाहेत्तर विभिन्न व्यक्तियों के साथ कथित अवैध संबंध रखने का झूठा आरोप लगाना मानसिक क्रूरता है।
  • न्यायालय ने यह भी माना कि पति-पत्नी में से किसी एक द्वारा दूसरे को सामाजिक यातना देना, मानसिक यातना और क्रूरता के समान पाया गया। प्रतिवादी घरेलू हिंसा के झूठे मामले दायर करके अपीलकर्त्ता को परेशान कर रही है और उसने यह स्वीकार किया है कि कुछ आरोप झूठे हैं तथा ऐसा व्यवहार क्रूरता के बराबर है। यह भी पर्याप्त है कि यदि क्रूरता इस प्रकार की हो तो पति-पत्नी का साथ रहना असंभव हो जाता है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा को महत्त्व दिया जाना चाहिये। निजता के मूल में व्यक्तिगत अंतरंगता का संरक्षण, पारिवारिक जीवन की पवित्रता, विवाह, प्रजनन, घर और यौन उन्मुखीकरण शामिल हैं। निजता का तात्पर्य अकेले छोड़ दिये जाने के अधिकार से भी है।

प्रासंगिक कानूनी प्रावधान क्या हैं?

HMA की धारा 13(1)(i-a):

  • यह धारा विवाह-विच्छेद के आधार के रूप में क्रूरता से संबंधित है।
  • HMA में 1976 के संशोधन से पहले, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता विवाह-विच्छेद का दावा करने का आधार नहीं थी।
  • यह अधिनियम की धारा 10 के तहत न्यायिक अलगाव का दावा करने का केवल एक आधार था।
  • 1976 के संशोधन द्वारा क्रूरता को विवाह-विच्छेद का आधार बना दिया गया।
  • इस अधिनियम में क्रूरता शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • आमतौर पर, क्रूरता कोई भी ऐसा व्यवहार है जो शारीरिक या मानसिक, जानबूझकर या अनजाने में दर्द और कष्ट का कारण बनता है।
  • उच्चतम न्यायालय द्वारा कई निर्णयों में दिये गए कानून के अनुसार क्रूरता दो प्रकार की होती है-
    • शारीरिक क्रूरता: जीवनसाथी को पीड़ा पहुँचाने वाला हिंसक आचरण।
    • मानसिक क्रूरता: जीवनसाथी को किसी प्रकार का मानसिक तनाव होता है या उसे लगातार मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है।
  • शोभा रानी बनाम मधुकर रेड्डी (1988) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि क्रूरता शब्द की कोई निश्चित परिभाषा नहीं हो सकती।
  • मायादेवी बनाम जगदीश प्रसाद (2007) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पति-पत्नी में से किसी एक द्वारा सहन की गई किसी भी प्रकार की मानसिक क्रूरता होने पर, न केवल महिला, बल्कि पुरुष भी विवाह-विच्छेद के लिये आवेदन कर सकते हैं।

HMA की धारा 13(1)(i-b):

  • यह धारा विवाह-विच्छेद के आधार के रूप में परित्याग से संबंधित है।
  • 1976 के संशोधन द्वारा, HMA की धारा 13 (1) (i-b) के तहत परित्याग को विवाह-विच्छेद के आधार के रूप में शामिल किया गया था। 1976 से पूर्व, परित्याग न्यायिक पृथक्करण का आधार था लेकिन अब यह विवाह-विच्छेद और न्यायिक पृथक्करण दोनों का आधार है।
  • HMA की धारा 13 (1) (i-b) परित्याग को विवाह-विच्छेद के आधार के रूप में पेश करती है और कहती है कि पति या पत्नी में से किसी एक द्वारा प्रस्तुत याचिका पर विवाह को विवाह-विच्छेद की डिक्री द्वारा इस आधार पर भंग कर दिया जाएगा कि दूसरे पक्ष ने याचिका की प्रस्तुति से ठीक पहले कम-से-कम दो वर्ष की निरंतर अवधि के लिये याचिकाकर्त्ता को छोड़ दिया है।
  • परित्याग शब्द का अर्थ विवाह के दूसरे पक्ष द्वारा याचिकाकर्त्ता का बिना किसी उचित कारण के और ऐसे पक्ष की सहमति के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध परित्याग करना है और इसमें विवाह के दूसरे पक्ष द्वारा याचिकाकर्त्ता की जानबूझकर उपेक्षा करना शामिल है और इसकी व्याकरणिक विविधताओं तथा आत्मीय अभिव्यक्तियों को तद्नुसार माना जाएगा।
  • परित्याग को विवाह-विच्छेद के आधार के रूप में स्थापित करने के लिये, निम्नलिखित आवश्यकताओं को पूरा किया जाना चाहिये:
    • परित्याग स्वैच्छिक होना चाहिये।
    • परित्याग उचित कारण के बिना होना चाहिये।
    • परित्याग निरंतर और अनुचित होना चाहिये।
    • परित्याग जानबूझकर किया जाना चाहिये।
  • परित्याग को दो तरीकों - आपसी सहमति से या सहवास के पुनरारंभ से समाप्त किया जा सकता है।