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सिविल कानून
मोटर यान अधिनियम, 1988
« »13-Dec-2023
गौहर मोहम्मद बनाम उत्तरप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम एवं अन्य। "राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण को संशोधित मोटर यान अधिनियम, 1988 और केंद्रीय मोटर वाहन नियमों के कार्यान्वयन के लिये एक योजना तैयार करने के निर्देश दिये गए हैं।" न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और के.वी. विश्वनाथन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने गोहर मोहम्मद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम और अन्य के मामले में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) को संशोधित मोटर यान अधिनियम, 1988 (एम.वी. अधिनियम) और केंद्रीय मोटर वाहन नियम के कार्यान्वयन के लिये सुझावों के साथ एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया है।
गौहर मोहम्मद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- केंद्रीय कानून द्वारा एमवी अधिनियम में संशोधन किया गया है और नए नियम भी बनाये गये हैं।
- इसके बाद संशोधित प्रावधान लागू नहीं होने के कारण इस मामले में 15 दिसंबर, 2022 के आदेश से निर्देश जारी किये गये हैं।
- जब मामला सुनवाई के लिये आया, तो न्यायालय ने एमिकस क्यूरी से सुझाव लिया और NALSA के तत्त्वावधान में एक योजना तैयार करने के निर्देश जारी किये।
- इस मामले को 5 जनवरी, 2024 को आगे की सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया गया है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने NALSA को संशोधित एम.वी. अधिनियम और केंद्रीय मोटर वाहन नियमों के कार्यान्वयन के लिये सुझावों के साथ एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया।
- न्यायालय ने बाद में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस संबंध में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था तथा राज्यों की उनकी शिथिलता के लिये आलोचना की थी।
इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?
- मोटर यान अधिनियम, 1988:
- मोटर यान अधिनियम, 1939 के स्थान पर यह अधिनियम 1 जुलाई, 1989 को लागू हुआ।
- यह अधिनियम ड्राइवरों/कंडक्टरों के लाइसेंस, मोटर वाहनों के पंजीकरण, परमिट के माध्यम से मोटर यानों के नियंत्रण, राज्य परिवहन उपक्रमों से संबंधित विशेष प्रावधानों, यातायात विनियमन, बीमा, दायित्व, अपराध और दंड आदि के बारे में विस्तार से विधायी प्रावधान प्रदान करता है।
- मोटर यान (संशोधन) अधिनियम, 2019
- यह अधिनियम 1 सितंबर, 2019 को लागू हुआ।
- यह अधिनियम अभिघात के पश्चात एक घंटे तक की समयावधि के रूप में गोल्डन ऑवर को परिभाषित करता है, जिसके दौरान त्वरित चिकित्सा देखभाल के माध्यम से मृत्यु को निवारित करने की संभावना सबसे अधिक होती है।
- यह अधिनियम हिट एंड रन मामलों के लिये न्यूनतम मुआवज़े को इस प्रकार बढ़ाता है:
- मृत्यु की स्थिति में 25,000 रुपए से दो लाख रुपए तक।
- गंभीर चोट की स्थिति में 12,500 रुपए से 50,000 रुपए तक।
- भारत में सभी सड़क उपयोगकर्त्ताओं को अनिवार्य बीमा कवर प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार को एक मोटर वाहन दुर्घटना कोष का गठन करने की आवश्यकता है।
- यह केंद्र सरकार को मोटर वाहनों को वापस लेने का आदेश देने की अनुमति देता है यदि वाहन में खराबी से पर्यावरण, चालक या अन्य सड़क उपयोगकर्त्ताओं को नुकसान हो सकता है।
- यह एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड (National Road Safety Board) का प्रावधान करता है, जिसे केंद्र सरकार एक अधिसूचना के माध्यम से बनाएगी।
- यह अधिनियम एग्रीगेटर्स को डिजिटल मध्यस्थों या बाज़ार स्थानों के रूप में परिभाषित करता है जिनका उपयोग यात्रियों द्वारा परिवहन उद्देश्यों (टैक्सी सेवाओं) के लिये ड्राइवर से जुड़ने के लिये किया जा सकता है। इन एग्रीगेटर्स को राज्य द्वारा लाइसेंस जारी किये जाएंगे।
- यह इस अधिनियम के तहत कई अपराधों के लिये दंड बढ़ाता है। उदाहरण के लिये, शराब या मादक दवाओं के प्रभाव में गाड़ी चलाने पर अधिकतम ज़ुर्माना 2,000 रुपए से बढ़ाकर 10,000 रुपए कर दिया गया है।
- केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 2022:
- ये नियम 1 अप्रैल, 2022 से लागू हो गए हैं।
- नए नियम दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 8 जनवरी, 2021 के राजेश त्यागी बनाम जयबीर सिंह शीर्षक फैसले में बनाई गई योजना पर आधारित हैं।
- उपरोक्त नियम मोटर दुर्घटना दावों की शीघ्र जाँच और निर्णय के लिये एक नई प्रक्रिया निर्धारित करते हैं।
- ये नियम छह महीने से एक वर्ष की अवधि के भीतर सभी मोटर दुर्घटना दावों की जाँच और निर्णय के लिये समय-सीमा निर्धारित करते हैं।
- इन नियमों ने मोटर दुर्घटना मुआवज़ा न्यायशास्त्र में क्रांति ला दी है क्योंकि इनसे दावेदारों को दुर्घटना के एक वर्ष के भीतर मुआवज़ा मिल सकेगा।