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आपराधिक कानून

पॉक्सो के तहत नाबालिग लड़की का नाम उजागर करना ज़रूरी नहीं

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 18-Aug-2023

काजेन्द्रन बनाम पुलिस अधीक्षक एवं अन्य

" सहमति से बनाए गये संबंधों से गर्भधारण को समाप्त करते समय डॉक्टरों को पॉक्सो अधिनियम के तहत रिपोर्ट में नाबालिग लड़की के नाम का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है।"

न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश और सुंदर मोहन”।

स्रोत - मद्रास उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

काजेंद्रन बनाम पुलिस अधीक्षक और अन्य के मामले में कहा है कि जब कोई नाबालिग सहमति से यौन संबंध से उत्पन्न गर्भावस्था को समाप्त करना चाहती है, तो पंजीकृत चिकित्सक उस लड़की के नाम का खुलासा करने पर जोर नहीं दे सकता है। नाबालिग को यौन उत्पीड़न से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 ((Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) की धारा 19 के तहत रिपोर्ट तैयार करने के लिये कहा गया।

पृष्ठभूमि

  • उक्त मामला मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा किशोर न्याय बोर्ड को दिया गया था।
  • इसके बाद, न्यायिक पक्ष में पॉक्सो और किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की एक पीठ का गठन किया गया था क्योंकि इस मामले की सुनवाई के दौरान उठाए गये मुद्दों पर निर्णय लेने की आवश्यकता थी। यह सुनिश्चित करने के लिये आगे बढ़ना ज़रूरी था कि सभी हितधारकों के लिये सर्वोत्तम प्रथाएँ लागू की जाएँ।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायालय ने कहा कि यदि कोई नाबालिग सहमति से यौन गतिविधि से उत्पन्न गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन के लिये एक पंजीकृत चिकित्सक के पास जाती है, तो डॉक्टर को पॉक्सो अधिनियम के तहत दी जाने वाली रिपोर्ट में नाबालिग के नाम के खुलासे के लिये जोर देना जरूरी नहीं है, यह रिपोर्ट आम तौर पर इस अधिनियम धारा 19 (1) के तहत दी जाती है।
  • इस प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिये, क्योंकि ऐसे उदाहरण सामने आये हैं जहां एक नाबालिग और उनके अभिभावक मामले को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं रखते हैं और कानूनी प्रक्रिया में फँस जाते हैं। ऐसे मामलों में, नाबालिग के नाम का खुलासा किये बिना गर्भावस्था की समाप्ति की जा सकती है।
  • न्यायालय ने कहा कि पीड़ित लड़कियों के मेडिकल टेस्ट के संबंध में मानक संचालन प्रक्रिया (SoP) तैयार करते समय इन टिप्पणियों को ध्यान में रखा जा सकता है।

कानूनी प्रावधान

पॉक्सो अधिनियम, 2012

  • यह अधिनियम 2012 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत पारित किया गया था।
  • यह बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन हमले और अश्लील साहित्य सहित अन्य अपराधों से बचाने के लिये बनाया गया एक व्यापक कानून है।
  • यह लैंगिक रूप से तटस्थ अधिनियम है और बालकों के कल्याण को सर्वोपरि महत्व का विषय मानता है।
  • यह ऐसे अपराधों और संबंधित मामलों और घटनाओं की सुनवाई के लिये विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • पॉक्सो संशोधन विधेयक, 2019 द्वारा इस अधिनियम में प्रवेशन यौन उत्पीड़न और गंभीर प्रवेशन यौन उत्पीड़न के अपराधों के लिये सजा के रूप में मृत्युदंड की शुरुआत की गई थी।
  • धारा 4 में प्रवेशन यौन उत्पीड़न के लिये सजा का प्रावधान है।
  • पॉक्सो अधिनियम की धारा 2(1)(d) के तहत, 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बालिग माना जाता है।
  • धारा 19 में 'अपराधों की रिपोर्टिंग' से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। यह धारा प्रकट करती है कि –
  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में उल्लिखित होते हुए भी कोई व्यक्ति (जिसके अंतर्गत बालिग भी है) जिसको यह आशंका है कि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किये जाने की संभावना है या यह जानकारी रखता है कि ऐसा कोई अपराध किया गया है, वह निम्नलिखित को ऐसी जानकारी उपलब्ध कराएगाः-

(क) विशेष किशोर पुलिस यूनिट; या

(ख) स्थानीय पुलिस।

(2) उपधारा (1) के अधीन दी गई प्रत्येक रिपोर्ट में...

(क) एक प्रविष्टि संख्या अंकित होगी और लेखबद्ध की जाएगी;

(ख) सूचना देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी;

(ग) पुलिस यूनिट द्वारा रखी जाने वाली पुस्तिका में प्रविष्ट की जाएगी।

(3) जहां उपधारा (1) के अधीन रिपोर्ट बालक द्वारा दी गई है, उसे उपधारा (2) के अधीन सरल भाषा में अभिलिखित किया जाएगा जिससे बच्चे अभिलिखित की जा रही अंतर्वस्तुओं को समझ सके।

(4) यदि बच्चे द्वारा नहीं समझी जाने वाली भाषा में अंतर्वस्तु अभिलिखित की जा रही है या बच्चे यदि वह उसको समझने में असफल रहता है तो कोई अनुवादक या कोई दुभाषिया जो ऐसी अर्हताएं, अनुभव रखता हो और ऐसी फीस के संदाय पर जो विहित की जाए, जब कभी आवश्यक समझा जाए, उपलब्ध कराया जाएगा।

(5) जहाँ  विशेष किशोर पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस का यह समाधान हो जाता है कि उस बच्चे को, जिसके विरुद्ध कोई अपराध किया गया है, देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता है तब रिपोर्ट के चौबीस घंटे के भीतर कारणों को लेखबद्ध करने के पश्चात्‌ उसको यथाविहित ऐसी देखरेख और संरक्षण में (जिसके अंतर्गत बच्चे को संरक्षण गृह या निकटतम अस्पताल में भर्ती किया जाना भी है) रखने की तुरन्त व्यवस्था करेगी।

(6) विशेष किशोर पुलिस यूनिट या स्थानीय पुलिस अनावश्यक विलंब के बिना किन्तु चौबीस घंटे की अवधि के भीतर मामले को बाल कल्याण समिति और विशेष न्यायालय या जहाँ कोई विशेष न्यायालय पदाभिहित नहीं किया गया है वहाँ सेशन न्यायालय को रिपोर्ट करेगी, जिसके अंतर्गत बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिये आवश्यकता और इस संबंध में किये गए उपाय भी हैं।

(7) उपधारा (1) के प्रयोजन के लिये सद्भावपूर्वक दी गई जानकारी के लिये किसी व्यक्ति द्वारा सिविल या दांडिक कोई दायित्व उपगत नहीं होगा।

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015

  • यह अधिनियम 15 जनवरी, 2016 को लागू हुआ।
  • इसने किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 को निरस्त कर दिया।
  • यह अधिनियम 11 दिसंबर 1992 को भारत द्वारा अनुसमर्थित बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है।
  • यह कानून का उल्लंघन करने की स्थिति में फंसे बालकों के मामलों में 58+ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट करता है।
  • यह मौजूदा अधिनियम में चुनौतियों का समाधान करना चाहता है जैसे गोद लेने की प्रक्रियाओं में देरी, मामलों की उच्च लंबितता, संस्थानों की जवाबदेही इत्यादि।
  • यह अधिनियम कानून का उल्लंघन करने वाले 16-18 आयु वर्ग के बच्चों को संबोधित करने का प्रयास करता है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में उनके द्वारा किये गए अपराधों की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है।
  • किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2021 के अनुसार, बच्चोंजाएगा।