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आपराधिक कानून

कोई भी अदालत उच्चतम न्यायालय के आदेश का जवाब नहीं दे सकती

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 22-Aug-2023

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयाँ की पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के ढुलमुल रवैये के लिये उसकी आलोचना की। 

उच्चतम न्यायालय

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय ने XYZ बनाम गुजरात राज्य के मामले में गर्भपात की मांग करने वाली एक अनाचार पीड़िता की याचिका पर आदेश पारित करने के तरीके के लिये गुजरात उच्च न्यायालय (SC) की आलोचना की है।

पृष्ठभूमि

  • गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष असफल होने के बाद एक अपील में उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रश्न रखा गया था कि क्या अनचाहे बच्चे को जन्म दिया जाए या नहीं।
  • शादी का झूठा झाँसा देकर पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाने के लिये भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 376 (2) (N) के तहत आरोपी के खिलाफ दिनांक 02.08.2023 को प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी।
  • पर यह पता लगने पर कि वह 25 सप्ताह की गर्भवती है, उसने भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 226 के साथ आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPc) की धारा 482 के तहत गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका दायर की और गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 ( Medical Termination of Pregnancy Act, 1971(MTP Act) की धारा 3 उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने के लिये निर्देश मांगा जा रहा है।
  • अपीलकर्ता के स्वास्थ्य के साथ-साथ उसकी गर्भावस्था की स्थिति के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश जारी किया और उक्त रिपोर्ट प्राप्त होने पर, इसे 11.08.2023 को रिकॉर्ड पर लिया गया।
  • उच्च न्यायालय ने 23.08.2023 को बिना कोई कारण बताए मामले को स्थगित कर दिया और उसके बाद 17.08.2023 को याचिका खारिज कर दी।
  • यह अपील उच्चतम न्यायालय में दायर की गई और बर्खास्तगी का आदेश 19 अगस्त तक भी अपलोड नहीं किया गया, जब मामला शीर्ष अदालत के सामने आया।
  • इस पृष्ठभूमि में, उच्चतम न्यायालय ने यह देखने के बाद कि उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण के कारण 'मूल्यवान समय' बर्बाद हो गया है, उच्च न्यायालय रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगा था।
  • शीर्ष अदालत द्वारा मामले को उठाने के बाद और उसी मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा एक और आदेश पारित किया गया था।
  • गुजरात उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि स्थगन का आदेश वकील को अनाचार पीड़िता से निर्देश प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिये दिया गया था।

न्यायालय की टिप्पणी

न्यायालय ने बाद में स्पष्टीकरण आदेश पारित करने के गुजरात उच्च न्यायालय के कदम को गंभीरता से लिया, न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने कहा कि: "हम उच्चतम न्यायालय के आदेशों पर उच्च न्यायालय के पलटवार की सराहना नहीं करते हैं। गुजरात उच्च न्यायालय में क्या हो रहा है? क्या कोई न्यायाधीश किसी उच्च न्यायालय के आदेश पर ऐसे प्रतिक्रिया कर सकता है? हम इसकी सराहना नहीं करते हैं। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा हमारे द्वारा कही गई बातों को टालने के लिये इस प्रकार के प्रयास किये जा रहे हैं। उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के आदेश को उचित ठहराने की कोई आवश्यकता नहीं है।।"

कानूनी प्रावधान

भारतीय दंड संहिता, 1860

मौजूदा मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट धारा 376(2)(N) से संबंधित है।

धारा 376 - बलात्कार के लिये सज़ा -जो भी व्यक्ति, धारा 376 की उप-धारा (1) या उप-धारा (2) के तहत दंडनीय अपराध करता है और इस तरह के अपराधिक कृत्य के दौरान लगी चोट एक महिला की मृत्यु या सदैव शिथिल अवस्था का कारण बनती है तो उसे एक अवधि के लिये कठोर कारावास जो कि बीस वर्ष से कम नहीं होगा से दंडित किया जाएगा, इसे आजीवन कारावास तक बढ़ा या जा सकता हैं, जिसका मतलब है कि उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिये या मृत्यु होने तक कारावास की सज़ा।

(2) जो भी, -

एक ही महिला के साथ बार-बार बलात्कार करता है, उसे कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि दस वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिये कारावास होगा और वह जुर्माने के लिये भी उत्तरदायी होगा।

आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPc)

धारा 482 - उच्च न्यायालय की कुछ रिटें जारी शक्तियाँ -

इस संहिता में किसी भी चीज को ऐसा कुछ भी नहीं माना जाएगा जो इस संहिता के तहत किसी भी आदेश को प्रभावी करने के लिये या किसी भी न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये या अन्यथा ऐसे आदेश देने के लिये उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों को सीमित या प्रभावित करता हो।

भारत का संविधान, 1950

उच्च न्यायालय को रिट क्षेत्राधिकार की शक्ति प्रदान की गई है

अनुच्छेद 226 - कुछ रिट जारी करने की उच्च न्यायालयों की शक्ति। —

(1) अनुच्छेद 32 में किसी बात के होते हुए भी प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिये और किसी अन्य प्रयोजन के लिये उन राज्यक्षेत्रों के भीतर किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को या समुचित मामलों में किसी सरकार को ऐसे निदेश, आदेश या रिट जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं या उनमें से कोई निकालने की शक्ति होगी।

गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 (MTP ACT)

गर्भ को समाप्त करने की शर्तें अधिनियम की धारा 3 द्वारा प्रदान की गई हैं।

धारा 3: गर्भ रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा-व्यवसायियों द्वारा कब समाप्त किया जा सकता है- (1) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) में किसी बात के होते हुए भी, यदि कोई गर्भ किसी रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा-व्यवसायी द्वारा इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार समाप्त किया जाए तो वह चिकित्सा-व्यवसायी उस संहिता के अधीन या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन किसी अपराध का दोषी नहीं होगा।

(2) उपधारा (4) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए यह है कि--

(a) जहाँ गर्भ 2 सप्ताह से अधिक का न हो, वहाँ यदि ऐसे चिकित्सा-व्यवसायी ने, अथवा

(b) जहाँ गर्भ बारह सप्ताह से अधिक का हो किन्तु बीस सप्ताह से अधिक का न हो, वहाँ यदि दो से अन्य रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा-व्यवसायियों ने, सदूभावपूर्वक यह राय कायम की हो कि--

i) गर्भ के बने रहने से गर्भवती स्त्री का जीवन जोखिम में पड़ेगा अथवा उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति की जोखिम होगी; अथवा

ii) इस बात का पर्याप्त जोखिम है कि यदि बच्चा पैदा हुआ तो वह ऐसी शारीरिक या मानसिक अप्रसामान्यताओं से पीड़ित होगा कि वह गंभीर रूप से विकलांग हो, तो वह गर्भ रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा-व्यवसायी द्वारा समाप्त किया जा सकेगा।

स्पष्टीकरण ।--जहाँ किसी गर्भ के बारे में गर्भवती स्त्री द्वारा यह अभिकथन किया जाए कि वह बलात्संग द्वारा हुआ तो ऐसे गर्भ के कारण होने वाले मनस्ताप के बारे में यह उपधारणा की जाएगी कि वह गर्भवती स्त्री के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति है।

स्पष्टीकरण 2--जहाँ किसी विवाहिता स्त्री या उसके पति द्वारा बच्चों की संख्या सीमित रखने के प्रयोजन से उपयोग में लाई गई किसी प्रयुक्ति या व्यवस्था की असफलता के फलस्वरूप कोई गर्भ हो जाए वहाँ ऐसे अवांछित गर्भ के कारण होने वाले मनस्ताप के बारे में यह उपधारणा की जा सकेगी कि वह गर्भवती स्त्री के मानसिक स्वास्थ्य को गम्भीर क्षति है।

(2a) पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी, जिनकी राय विभिन्न गर्भकालीन आयु में गर्भावस्था को समाप्त करने के लिये आवश्यक है, के लिये मानदंड ऐसे होंगे जो इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों द्वारा निर्धारित किये जा सकते हैं।

(2b) गर्भावस्था की अवधि से संबंधित उप-धारा (2) के प्रावधान चिकित्सा व्यवसायी द्वारा गर्भावस्था की समाप्ति पर लागू नहीं होंगे, जहाँ चिकित्सा द्वारा निदान किये गए किसी भी महत्वपूर्ण भ्रूण असामान्यताओं के निदान के लिये ऐसी समाप्ति आवश्यक है।

(2c) प्रत्येक राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश, जैसा भी मामला हो, आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये ऐसी शक्तियों और कार्यों का प्रयोग करने के लिये एक बोर्ड का गठन करेगा, जिसे मेडिकल बोर्ड कहा जाएगा। इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों द्वारा।

(2d) मेडिकल बोर्ड में निम्नलिखित शामिल होंगे, अर्थात्: -

  • स्त्री रोग विशेषज्ञ;
  • एक बाल रोग विशेषज्ञ;
  • रेडियोलॉजिस्ट या सोनोलॉजिस्ट; और
  • सदस्यों की ऐसी अन्य संख्या जो राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश, जैसा भी मामला हो, द्वारा आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित की जा सकती है।
  • इस बात का अवधारण करने में कि गर्भ के बने रहने से उपधारा (2) में यथावर्णित स्वास्थ्य की क्षति की जोखिम होगी या नहीं, गर्भवती स्त्री की वास्तविक या उचित रूप से पूर्वानुमेय परिस्थितियों का विचार किया जा सकेगा ।

4 (a) किसी ऐसी स्त्री का गर्भ, जिसने अठारह वर्ष की आयु प्राप्त न की हो, अथवा जिसने अठारह वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो किन्तु जो !(मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति] हो, उसके संरक्षक की लिखित सम्मति से ही समाप्त किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

(b) खण्ड (a) में अन्यथा उपबन्धित के सिवाय, कोई गर्भ गर्भवती स्त्री की सम्मति से ही समाप्त किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

वह स्थान जहाँ गर्भ समाप्त किया जा सकेगा--इस अधिनियम के अनुसार किसी गर्भ का समापन निम्नलिखित से भिन्‍न

किसी स्थान पर नहीं किया जाएगा, --

(a) सरकार द्वारा स्थापित या पोषित अस्पताल ; अथवा

(b) कोई स्थान, जो तत्समय इस अधिनियम के प्रयोजन के लिये सरकार या उस सरकार द्वारा गठित किसी ऐसी ज़िला स्तर समिति द्वारा अनुमोदित हो जहाँ उक्त समिति के अध्यक्ष के रूप में मुख्य चिकित्सा अधिकारी या ज़िला स्वास्थ्य अधिकारी हो परन्तु ज़िला स्तर समिति में कम से कम तीन और अधिक से अधिक अध्यक्ष सहित 5 सदस्य, जैसा सरकार समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे, होंगे।