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सिविल कानून

गैर-कामकाजी पत्नी द्वारा भरण-पोषण का दावा

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 25-Oct-2023

एक्स बनाम वाई

जहाँ पत्नी के पास स्नातक की डिग्री है, वहाँ यह नहीं माना जा सकता कि वह जानबूझकर केवल अंतरिम भरण-पोषण का दावा करने के आशय से काम नहीं कर रही है।

दिल्ली उच्च न्यायालय

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

दिल्ली उच्च न्यायालय (HC) ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि पत्नी के पास स्नातक की डिग्री होने से स्वचालित रूप से यह अनुमान नहीं लगाया जाना चाहिये कि वह एक्स बनाम वाई मामले में केवल अंतरिम भरण-पोषण हासिल करने के लिये जानबूझकर रोज़गार से परहेज कर रही है।

एक्स बनाम वाई मामले की पृष्ठभूमि 

  • मुकदमे के पक्षकारों ने वर्ष 1999 में विवाह किया था, बाद में दोनों पक्षकारों के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए और पति ने वर्ष 2013 में क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक के लिये याचिका दायर की।
  • पति वर्ष 2013 से अपनी पत्नी के बैंक खाते में प्रति माह 10,000 रुपये जमा कर रहा था।
  • कुटुंब न्यायालय ने मुकदमे की लागत के साथ पत्नी को प्रति माह 25000/- रुपये का भरण-पोषण देने का आदेश दिया। पति को अंतरिम भरण-पोषण के लिये प्रतिदिन 1,000 रुपए का ज़ुर्माना देने का भी आदेश दिया गया।
  • राशि कम होने के कारण, पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 24 के तहत लंबित गुजारा भत्ता को बढ़ाकर 1,25,000/- रुपये प्रति माह करने की मांग की।
  • फिर पति ने इसके विरुद्ध एक अपील दायर की, जिसमें अंतरिम भरण-पोषण पर प्रतिदिन 1,000/- रुपए का ज़ुर्माना लगाने को चुनौती दी गई और साथ ही भरण-पोषण को 25000/- रुपए प्रति माह से घटाकर 15000/- रुपये प्रति माह करने की भी मांग की गई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ  

  • न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायाधीश नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के विलंबित भुगतान पर प्रतिदिन 1,000 रुपये का ज़ुर्माना रद्द कर दिया।
  • पीठ ने टिप्पणी करते हुए आगे कहा कि बीएससी की डिग्री होने के बावजूद पत्नी काम नहीं कर रही है, जबकि पति वकालत करता है, ऐसे में भरण-पोषण राशि कम करने से इंकार कर दिया।

मुकदमा लंबित रहने के दौरान जीवनयापन खर्च  

  • मुकदमा लंबित रहने के दौरान जीवनयापन खर्च में पत्नी और बच्चों को जीवन यापन खर्च और वित्तीय सहायता प्रदान करना शामिल होता है।
  • मुकदमा लंबित रहने के दौरान जीवनयापन खर्च की अवधारणा को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत देखा जा सकता है।

धारा 24 - वाद लंबित रहते भरण-पोषण और कार्यवाहियों के व्यय-जहाँ कि इस अधिनियम के अधीन होने वाली किसी कार्यवाही में न्यायालय को यह प्रतीत हो कि, यथास्थिति, पति या पत्नी की ऐसी कोई स्वतंत्र आय नहीं है जो उसके संभाल और कार्यवाही के आवश्यक व्ययों के लिये पर्याप्त हो वहाँ वह पति या पत्नी के आवदेन पर प्रत्यर्थी को यह आदेश दे सकेगा कि अर्जीदार को कार्यवाही में होने वाले व्यय तथा कार्यवाही के दौरान में प्रतिमास ऐसी राशि संदत्त करे जो अर्जीदार की अपनी आय तथा प्रत्यर्थी की आय को देखते हुए न्यायालय को युक्तियुक्त प्रतीत होती हो: 

परंतु कार्यवाही के व्ययों और कार्यवाही के दौरान ऐसी मासिक राशि के संदाय के लिये आवेदन को यथासंभव, यथास्थिति, पत्नी या पति पर सूचना की तामील की तारीख से, साठ दिन के भीतर निपटाया जाएगा।

क्रॉस अपील

क्रॉस अपील की अवधारणा सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश 41 नियम 22 के तहत प्रदान की गई है:

आदेश 41 – मूल डिक्री से अपील

नियम 22 - सुनवाई में प्रत्यर्थी डिक्री के विरुद्ध ऐसे आक्षेप कर सकेगा मानो उसने पृथक् अपील की हो--

कोई भी प्रत्यर्थी यद्यपि उसने डिक्री के किसी भाग के विरुद्ध अपील न की हो, न केवल डिक्री का समर्थन कर सकेगा बल्कि यह कथन भी कर सकेगा कि निचले न्यायालय में उसके विरुद्ध किसी विवादयक की बाबत निर्णय उसके पक्ष में होना चाहिये था और डिक्री के विरुद्ध कोई ऐसा प्रत्याक्षेप भी कर सकेगा जो वह अपील द्वारा कर सकता था परंतु यह तब जब कि उसने ऐसा आक्षेप अपील न्यायालय में उस तारीख से एक मास के भीतर जिसको उस पर या उसके प्लीडर पर अपील की सुनवाई के लिये नियत दिन की सूचना की तामील हुई थी या ऐसे अतिरिक्त समय के भीतर जिसे अनुज्ञात करना अपील न्यायालय ठीक समझे फाइल कर दिया हो ।

स्पष्टीकरण कोई प्रत्यर्थी जो निर्णय में उस न्यायालय के किसी ऐसे निष्कर्ष से जिस पर डिक्री आधारित है जिसके विरुद्ध अपील की गई है इस नियम के अधीन प्रत्याक्षेप जहाँ तक कि वह डिक्री उस निष्कर्ष पर आधारित है इस बात के होते हुए भी फाइल कर सकेगा कि न्यायालय के किसी अन्य निष्कर्ष पर जो उस वाद के विनिश्चय के लिये पर्याप्त है विनिश्चय के कारण वह डिक्री पूर्णतः या भागतः उस प्रत्यर्थी के पक्ष में है।