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व्यापारिक सन्नियम

परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 141 के तहत कंपनी द्वारा अपराध

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 11-Oct-2023

सिबी थॉमस बनाम सोमानी सेरामिक्स लिमिटेड

"मूल कार्यवाही में रियायत के दावे को संदेह से परे पूरा करने का दायित्व डीलर पर है।"

न्यायमूर्ति  सी. टी. रविकुमार, न्यायमूर्ति पी. वी. संजय कुमार

स्रोत: उच्चतम न्यायलाय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार और पी. वी. संजय कुमार ने संबंधित कंपनी द्वारा चेक अनादरण के मामले में परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 141 के तहत कंपनी के अधिदर्शक की देयता पर बल दिया।

  • उच्चतम न्यायलाय ने यह टिप्पणी सिबी थॉमस बनाम सोमानी सेरामिक्स लिमिटेड के मामले में दी।

सिबी थॉमस बनाम सोमानी सेरामिक्स लिमिटेड मामले की पृष्ठभूमि:

  • परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के तहत एक साझेदारी फर्म के भागीदार को चेक अनादरण के लिये केवल इसलिये उत्तरदायी ठहराया गया क्योंकि वह उस फर्म का भागीदार था।
  • उन्होंने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष अपने खिलाफ पराक्रम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत को रद्द करने की प्रार्थना की और तर्क दिया कि वह सीधे तौर पर कंपनी के संचालन में शामिल नहीं थे, हालांकि उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
  • इसलिये उन्होंने अपने खिलाफ शिकायत को रद्द करने के लिये उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • उच्चतम न्यायलाय ने कहा कि “केवल वही व्यक्ति, जो अपराध किये जाने के समय कंपनी का प्रभारी था और कंपनी के कारोबार के संचालन के लिये ज़िम्मेदार था या साथ ही कंपनी को अकेले ही ज़िम्मेदार माना जाएगा।” अपराध का दोषी होने पर उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी और दंडित किया जाएगा।''
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि शिकायत में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि अपीलकर्ता प्रासंगिक समय पर कंपनी के व्यवसाय के संचालन का प्रभारी था जब अपराध किया गया था।
  • उपरोक्त चर्चा का निष्कर्ष यह है कि प्रतिवादी द्वारा दायर शिकायत में दिये गए कथन पराक्रम्य लिखत अधिनियम की धारा 141(1) के तहत अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
  • इसलिये उच्चतम न्यायालय ने अपील की अनुमति दी।

परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 141:

  • परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 141 परोक्ष दायित्व के सिद्धांत को स्थापित करती है।
  • परोक्ष दायित्व एक कानूनी अवधारणा है जो एक पक्ष को दूसरे के कृत्यों के लिये ज़िम्मेदार ठहराती है।
  • इस धारा के अनुसार, यदि परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया जाता है, तो प्रत्येक व्यक्ति (जो अपराध के समय, कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिये प्रभारी और ज़िम्मेदार था) साथ ही साथ कंपनी को ही अपराध का दोषी माना जाएगा।
  • यह प्रावधान बताता है कि कंपनी से जुड़े व्यक्तियों को कंपनी के कार्यों के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
  • दायरा:
    • धारा 141 परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत विभिन्न अपराधों पर लागू होती है, जैसे चेक का अनादरण।
    • यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि व्यक्तियों का दायित्व तभी उत्पन्न होता है जब अपराध किसी कंपनी द्वारा किया जाता है।
    • यह धारा उन व्यक्तियों पर लागू नहीं होती जो अपनी व्यक्तिगत क्षमता में अपराध करते हैं।
  • दायित्व स्थापना:
    • परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 141 के तहत दायित्व स्थापित करने के लिये यह साबित करना आवश्यक है कि व्यक्ति, कंपनी के व्यवसाय के संचालन में सक्रिय रूप से शामिल था और अपराध करने में उसकी भूमिका थी।
    • केवल पदनाम या नाममात्र का प्रमुख होना पर्याप्त नहीं हो सकता है।
    • अभियोजन पक्ष को व्यक्ति की भूमिका और अपराध के घटित होने के बीच सीधा संबंध प्रदर्शित करना चाहिये।
    • अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि अपराध सहमति या मिलीभगत से या व्यक्ति की उपेक्षा के कारण किया गया है।
  • बचाव:
    • परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 141 के तहत कहा गया है कि यदि अभियुक्त यह साबित कर सकते हैं कि अपराध उनकी जानकारी के बिना किया गया था या उन्होंने ऐसे अपराध को रोकने के लिये उचित परिश्रम किया था, तो वे दायित्व से बच सकते हैं।
  • हालाँकि, इन बचावों को स्थापित करने के लिये सबूत का भार अभियुक्त पर है।

इससे संबंधित ऐतिहासिक मामले:

  • अनीता मल्होत्रा बनाम परिधान निर्यात संवर्धन परिषद एवं अन्य (2012):
    • उच्चतम न्यायलाय ने कहा कि "शिकायत में विशेष रूप से बताया जाना चाहिये कि निदेशक अपने व्यवसाय के संचालन के लिये कैसे और किस तरह से आरोपी कंपनी का प्रभारी था या उसके प्रति ज़िम्मेदार था"।
    • न्यायालय ने यह भी कहा कि केवल यह कहना कि वह कंपनी का प्रभारी था और उसके व्यवसाय के संचालन के लिये ज़िम्मेदार था, पर्याप्त नहीं है।

अशोक शेखरमणि बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2023):

  • उच्चतम न्यायलाय ने कहा कि "केवल इसलिये कि कोई व्यक्ति कंपनी के मामलों का प्रबंधन कर रहा है, वह कंपनी के व्यवसाय के संचालन का प्रभारी या कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिये ज़िम्मेदार व्यक्ति नहीं बन जाएगा।"

इस मामले में शामिल कानूनी प्रावधान:

परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 141: कंपनियों द्वारा अपराध –

(1) यदि धारा 138 के अधीन अपराध करने वाला व्यक्ति कोई कंपनी है तो ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो उस अपराध के किये जाने के समय उस कंपनी के कारोबार के संचालन के लिये उस कंपनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कंपनी भी ऐसे अपराध के लिये दोषी समझे जाएंगे और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और दंडित किये जाने के भागी होंगे।

परंतु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को दंड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था अथवा उसने ऐसे अपराध के निवारण के लिये सम्यक् तत्परता बरती थी,

परंतु यह और कि जहाँ किसी व्यक्ति को, यथास्थिति, केंद्र सरकार या राज्य सरकार या केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी वित्त निगम में कोई पद धारण करने वा नियोजन में रहने के कारण किसी कंपनी के निदेशक के रूप में नामनिर्दिष्ट किया जाता है, वहाँ वह इस अध्याय के अधीन अभियोजन का भागी नहीं होगा।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध कंपनी के किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है वहाँ ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और दंडित किये जाने का भागी होगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजनों के लिये,

(क) "कंपनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत फर्म या व्यक्तियों का अन्य समूह शामिल है, और

(ख) किसी फर्म के संबंध में, "निदेशक" से उस फर्म का कोई भागीदार अभिप्रेत है।