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सिविल कानून

सीपीसी का आदेश V नियम 2

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 20-Sep-2023

नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मैसर्स नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन इंडिया लिमिटेड।

"सीपीसी के आदेश V नियम 2 के तहत विचार की जाने वाली सेवा में वादपत्र की प्रति के साथ सम्मन की तामील शामिल है।"

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और बेला त्रिवेदी

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों ?

नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मैसर्स नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन इंडिया लिमिटेड के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश V नियम 2 के तहत विचार की जाने वाली सेवा में वादपत्र की प्रति सहित सम्मन की प्रति देना शामिल है।

पृष्ठभूमि

  • इस मामले में सम्मन की तामील दो तरीकों से होती थी।
  • पहली सेवा बेलिफ़ के माध्यम से थी, जो 19 जून 2017 को की गई थी और दूसरी तामील 22 अगस्त 2017 को की गई स्पीड पोस्ट के माध्यम से थी।
  • याचिकाकर्त्ता का तर्क यह है कि जो पेपर बुक उन्हें दूसरे माध्यम से प्राप्त हुई, उसमें दो पृष्ठ नहीं थे, जिन्हें बाद में उपलब्ध कराया गया।
  • याचिकाकर्त्ता की ओर से आग्रह किया गया है कि सीपीसी के आदेश V नियम 2 के प्रावधानों के तहत वादपत्र के साथ सम्मन की तामील की आवश्यकता है
  • उच्च न्यायालय ने वादी की अपूर्ण तामील की बात पर विश्वास नहीं किया।
  • इसके बाद उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गई जिसे न्यायालय ने खारिज़ कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और बेला त्रिवेदी ने कहा कि सीपीसी के आदेश V नियम 2 के तहत विचार की गई सेवा का तात्पर्य वादपत्र की एक प्रति के साथ सम्मन की तामील से है।

विधिक प्रावधान

  • आदेश V नियम 2, सीपीसी:
    • सीपीसी के आदेश V का नियम 2 वादपत्र की प्रति से संबंधित है जिसे सम्मन के साथ संलग्न किया जाना है।
    • इसमें कहा गया है कि प्रत्येक सम्मन के साथ वादपत्र की एक प्रति संलग्न होनी चाहिये।
  • सम्मन:
    • सम्मन एक निर्दिष्ट स्थान और एक निर्दिष्ट समय पर न्यायालय में उपस्थित होने के लिये न्यायालय की ओर से एक आधिकारिक बुलावा होता है।
    • सम्मन से संबंधित प्रावधान सीपीसी की धारा 27-32 और आदेश V में दिये गये हैं।
    • आदेश V के नियम 1 में कहा गया है कि –
  • जब वाद सम्यक किया जा चुका हो तब उस प्रतिवादी पर, सम्मन के तामील की तिथि से तीस दिन के भीतर उपसंजात होने और दावे का उत्तर देने तथा अपनी प्रतिरक्षा का लिखित कथन, यदि कोई हो, करने के लिये सम्मन निकाला जा सकेगा

परंतु जब प्रतिवादी, वादपत्र के उपस्थित किये जाने पर ही उपजात हो जाए और वादी का दावा स्वीकार कर ले तब कोई सम्मन नहीं निकाला जायेगा:

परंतु यह और कि जहाँ प्रतिवादी तीस दिन की उक्त अवधि के भीतर लिखित कथन दायर करने में असफल रहता है, यहाँ उसे ऐसे किसी अन्य दिन को दायर करने के लिये अनुज्ञात किया जायेगा जो न्यायालय द्वारा उसके लिये कारणों की लेखबद्ध करके, विनिर्दिष्ट किया जाए, किंतु जो सम्मन के तामील की तिथि के दिन के बाद का नहीं होगा।

(2) यह प्रतिवादी जिसके नाम उपनियम (1) के अधीन सम्मन निकाला गया है-

(क) स्वयं अथवा

(ख) ऐसे याचिकाकर्त्ता द्वारा, जो सम्यक रूप से अनुदिष्ट से और बाद से संबंधित सभी सारवान प्रश्नों का उत्तर देने के लिये समर्थ हो,

(ग) ऐसे याचिकाकर्त्ता द्वारा, जिसके साथ ऐसा कोई व्यक्ति है जो ऐसे सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिये समर्थ है, उपसंजात हो सकेगा।

(3) हर ऐसा सम्मन न्यायाधीश या उसके द्वारा नियुक्त अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित होगा और न्यायालय द्वारा मुहरबंद होगा।

  • जम्मू और कश्मीर राज्य बनाम हाजी वली मोहम्मद (वर्ष 1972) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि कोई सम्मन सीपीसी के आदेश V नियम 19 की विधि संबंधी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है, तो सम्मन की ऐसी तामील पर विचार नहीं किया जाएगा।