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सिविल कानून
CPC का आदेश 22 नियम 3
« »27-Dec-2023
मूंगा देवी और अन्य बनाम कमला देवी "CPC के आदेश 22 नियम 3 के तहत एक आवेदन पर पारित आदेश CPC के आदेश 43 नियम 1 के तहत अपील योग्य नहीं है"। न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव |
स्रोत: झारखंड उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मूंगा देवी और अन्य बनाम कमला देवी के मामले में झारखंड उच्च न्यायालय ने माना है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Civil Procedure Code- CPC) के आदेश 22 नियम 3 के तहत एक आवेदन पर पारित आदेश CPC के आदेश 43 नियम 1 के तहत अपील योग्य नहीं है। इसके बजाय, इसे एक पुनरीक्षण योग्य आदेश माना जाता है।
मूंगा देवी और अन्य बनाम कमला देवी मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- मूंगा देवी के पति मूल वादी परशुराम प्रसाद, जो वाद की भूमि और घर के मालिक हैं, ने यह कहते हुए बेदखली का मुकदमा (Eviction Suit) दायर किया है कि प्रतिवादी कमला देवी (विपक्षी पक्ष) जो वादी की बहन है, ने वाद परिसर खाली नहीं किया है।
- आरोप है कि लगभग 10 वर्ष पहले, प्रतिवादी तथा उसके पति को आवास की समस्या का सामना करना पड़ रहा था और उन्हें निवास स्थान की सख्त ज़रूरत थी। इसलिये सहानुभूति के कारण वादी ने प्रतिवादी को अपने पति और बच्चों के साथ वाद परिसर में रहने की अनुमति दे दी।
- ऐसा प्रतीत होता है कि मुकदमे के लंबित रहने के दौरान, मूल वादी परशुराम प्रसाद की मृत्यु हो गई तथा वे अपने पीछे उत्तराधिकारी व कानूनी प्रतिनिधि के रूप में अपनी पत्नी और बेटों को छोड़ गए।
- परिणामस्वरूप, CPC की धारा 151 के साथ पठित आदेश 22 नियम 3 के तहत वर्तमान याचिकाकर्त्ताओं द्वारा मुकदमे को लड़ने के लिये मूल वादी के स्थान पर उनके प्रतिस्थापन के लिये विद्वत न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया था, जिसे अप्रासंगिक कारणों से खारिज़ कर दिया गया है और इस याचिका में भी उसी पर प्रश्न किया गया है।
- इसके बाद झारखंड उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई है।
- याचिका को स्वीकार करते हुए, उच्च न्यायालय ने अवर न्यायालय को निर्देश दिया कि याचिकाकर्त्ताओं को मूल मुकदमे में वादी के रूप में प्रतिस्थापित करने की अनुमति दी जाए।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि CPC के आदेश 22 नियम 3 के तहत आवेदन पर पारित आदेश CPC के आदेश 43 नियम 1 के तहत अपील योग्य नहीं है, बल्कि यह एक पुनरीक्षण योग्य आदेश है, इसलिये विपक्षी के वकील के इस तर्क में कोई आधार नहीं है कि सिविल न्यायालय के समक्ष अपील का कोई उपाय है।
- न्यायालय ने अनावश्यक विचारों के आधार पर प्रतिस्थापन आवेदन को खारिज़ करने के लिये अवर न्यायालय की आलोचना की और माना कि न्यायालय का आदेश विधिक रूप से स्थायी नहीं था।
इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?
- CPC के आदेश 22 का नियम 3:
- नियम 3 कई वादियों में से किसी एक या एकमात्र वादी की मृत्यु के मामले में प्रक्रिया से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि-
(1) जहाँ दो या अधिक वादियों में से एक की मृत्यु हो जाती हैं और वाद लाने का अधिकार अकेले उत्तरजीवी वादी को या अकेले उत्तरजीवी वादियों को बचा नही रहता हैं, या एक मात्र वादी या एकमात्र उत्तरजीवी वादी की मृत्यु हो जाती हैं और वाद लेने का अधिकार बचा रहता हैं वहाँ इस निमित आवेदन किये जाने पर न्यायलय मृत वादी के विधिक प्रतिनिधि को पक्षकार बनवाएगा और वाद में अग्रसर होगा।
(2) जहाँ विधि द्वारा परिसीमित समय के भीतर कोई आवेदन उपनियम एक के अधीन नहीं किया जाता हैं वहाँ वाद का उपशमन वहाँ तक हो जायेगा जहा तक मृत वादी का संबंध और प्रतिवादी के आवेदन पर न्यायालय उन खर्चो को उसके पक्ष में अधिनिर्णीत कर सकेगा जो उसने वाद की प्रतिरक्षा के उपगत किये हो और वे मृत वादी की संपदा से वसूल किये जायेंगे।
- नियम 3 कई वादियों में से किसी एक या एकमात्र वादी की मृत्यु के मामले में प्रक्रिया से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि-
- CPC के आदेश 43 का नियम 1:
- नियम 1 आदेशों की अपील से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि धारा 104 के प्रावधानों के तहत निम्नलिखित आदेशों के खिलाफ अपील की जाएगी, अर्थात्: -
- वाद पत्र में उचित न्यायालय में उपस्थित किये जाने के लिये लौटाने का आदेश जो आदेश 7 के नियम 10 के अधीन दिया गया हो, सिवाय उस दशा के जब आदेश 7 नियम 10A में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण में किया गया हो
- वाद को खारिज करने के आदेश के लिये (ऐसे मामलों में जिसमें अपील होती है) आवेदन को नामंज़ूर करने का आदेश जो आदेश 9 के नियम 9 के अधीन दिया गया हो;
- एकपक्षीय पारित बिक्री को अपास्त करने के आदेश के लिये (ऐसे मामले में जिस में अपील होती है) आवेदन के नामंज़ूर करने का आदेश 9 नियम 13 के अधीन किया गया हो;
- आदेश 11 के नियम 21 के अधीन आदेश;
- दस्तावेज़ के या पृष्ठांकन के प्रारूप पर किये गए आक्षेप पर आदेश जो आदेश 21 के नियम 34 के अधीन दिया गया हो;
- विक्रय को अपास्त करने का या अपास्त करने से इनकार करने का आदेश जो आदेश 21 के नियम 72 या नियम 92 के अधीन दिया गया हो;
- आवेदन को नामंज़ूर करने का आदेश जो आदेश 21 के नियम 106 के उप नियम (1) के अधीन किया गया हो परंतु मूल आवेदन पर अर्थात् उस आदेश के नियम 105 के उपनियम (1) में निर्दिष्ट आवेदन पर आदेश अपील योग्य है;
- वाद के उपशमन या खारीजी को अपास्त करने से इनकार करने का आदेश जो आदेश 22 नियम 9 के अधीन दिया गया हो;
- आदेश 22 के नियम 10 के तहत छुट्टी देने से इंकार करने का आदेश।
- किसी मुकदमे को खारिज करने के आदेश के लिये आवेदन को नामंज़ूर करने का आदेश जो आदेश 25 के नियम (2) के अधीन दिया गया हो;
- निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद लाने की अनुज्ञा के लिये आवेदन को नामंज़ूर करने का आदेश जो आदेश 33 के नियम 5 या नियम 7 के अधीन दिया गया हो;
- अंतराविभाची वादों/इंटरप्लीडर-सूट में आदेश जो आदेश 35 के नियम 3 -4 या नियम 6 के अधीन दिया गया हो;
- आदेश 38 के नियम 2 नियम 3 या नियम 6 के अधीन आदेश;
- आदेश 39 के नियम 1 नियम 2 नियम 2A , नियम 4 या नियम 10 के अधीन आदेश;
- आदेश 40 के नियम 1 या नियम 4 के अधीन आदेश;
- अपील को आदेश 41 के नियम 19 के अधीन पुनः ग्रहण करने या आदेश 41 के नियम 21 के अधीन पुनः सुनवाई करने से इनकार करने का आदेश;
- जहाँ अपील न्यायालय की डिक्री की अपील होती हो वहाँ मामले को प्रतिप्रेषित करने का आदेश जो आदेश 41 के नियम 23 या नियम 23A के अधीन दिया गया हो;
- नियम 1 आदेशों की अपील से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि धारा 104 के प्रावधानों के तहत निम्नलिखित आदेशों के खिलाफ अपील की जाएगी, अर्थात्: -
- CPC की धारा 151:
- यह धारा न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि इस संहिता में कुछ भी ऐसे आदेश देने के लिये न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति को सीमित या अन्यथा प्रभावित करने वाला नहीं माना जाएगा जो न्याय के लिये या न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये आवश्यक हो