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सिविल कानून

CPC का आदेश 8 नियम 10

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 15-Jan-2024

अस्मा लतीफ एवं अन्य बनाम शब्बीर अहमद एवं अन्य

"सभी मामलों में वादपत्र में दिये गए तथ्यों को खंडित करने वाला लिखित बयान दाखिल करने में प्रतिवादी की विफलता या उपेक्षा, उसे अपने पक्ष में निर्णय का हकदार नहीं बना सकती है, जब तक कि सबूत प्रस्तुत कर वह अपना मामला/दावा साबित न कर दे।"

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, दीपांकर दत्ता और अरविंद कुमार

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, दीपांकर दत्ता और अरविंद कुमार ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश 8 नियम 10 के संबंध में टिप्पणी दी।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय अस्मा लतीफ एवं अन्य बनाम शब्बीर अहमद एवं अन्य के मामले में दिया।

अस्मा लतीफ एवं अन्य बनाम शब्बीर अहमद एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • यह मुकदमा अपीलकर्त्ताओं को उनकी परदादी द्वारा उपहार में दी गई संपत्ति से संबंधित था।
  • अपने मुकदमे के जवाब में, तीन प्रतिवादियों में से दो ने लिखित बयान दाखिल नहीं किया जिसके परिणामस्वरूप ट्रायल कोर्ट ने उनके खिलाफ फैसला सुनाया।
  • उच्चतम न्यायालय उस परिदृश्य से निपट रहा था जहाँ प्रतिवादी एक लिखित बयान प्रस्तुत करने में विफल रहता है।

न्यायालय की टिप्पणी क्या है?

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "सभी मामलों में, वादपत्र में दिये गए तथ्यों को खंडित करने वाला लिखित बयान दाखिल करने में प्रतिवादी की विफलता या उपेक्षा, उसे अपने पक्ष में निर्णय का हकदार नहीं बना सकती है, जब तक कि सबूत प्रस्तुत कर वह अपना दावा साबित न कर दे।"
  • उच्चतम न्यायालय ने अपील खारिज़ कर दी।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) का आदेश 8 नियम 10 क्या है?

  • परिचय:
    • CPC के आदेश 8 नियम 10 लिखित बयानों के संबंध में नियम प्रदान करता है।
  • आदेश 8 नियम 10: प्रक्रिया जब पक्ष न्यायालय द्वारा मांगे गए लिखित बयान प्रस्तुत करने में विफल रहता है-
    • जब न्यायालय द्वारा अपेक्षित लिखित कथन को उपस्थित करने में पक्षकार असफल रहता है, तब प्रक्रिया-जहाँ ऐसा कोई पक्षकार जिससे नियम 1 या नियम 9 के अधीन लिखित कथन अपेक्षित है, उसे न्यायालय द्वारा यथास्थिति, अनुज्ञात या नियत समय के भीतर उपस्थित करने में असफल रहता है वहाँ न्यायालय उसके विरुद्ध निर्णय सुनाएगा या वाद के संबंध में ऐसा आदेश करेगा, जो वह ठीक समझे और ऐसा निर्णय सुनाए जाने के पश्चात् डिक्री तैयार की जाएगी:
    • बशर्ते कि कोई भी न्यायालय लिखित बयान दाखिल करने के लिये इस आदेश के नियम 1 के तहत प्रदान किये गए समय को बढ़ाने का आदेश नहीं देगा।
  • ऐतिहासिक मामला:
    • बलराज तनेजा बनाम सुनील मदान (1999) मामले में उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ दीं:
      • न्यायालय को प्रतिवादी द्वारा अपने लिखित बयान में दिये गए किसी तथ्य को स्वीकार करने पर आँख मूंदकर कार्रवाई नहीं करनी चाहिये और न ही न्यायालय को सिर्फ इसलिये आँख मूंदकर निर्णय सुनाना चाहिये क्योंकि न्यायालय में दायर वादपत्र में वादी द्वारा निर्धारित तथ्यों का पता लगाते हुए प्रतिवादी द्वारा कोई लिखित बयान दाखिल नहीं किया गया है।
      • ऐसे मामले में, विशेष रूप से जहाँ प्रतिवादी द्वारा लिखित बयान दायर नहीं किया गया है, न्यायालय को आदेश 8 नियम 10 CPC के तहत कार्यवाही करने में थोड़ा सतर्क रहना चाहिये।
      • प्रतिवादी के खिलाफ निर्णय देने से पहले उसे यह अवश्य देखना चाहिये कि भले ही वादपत्र में दिये गए तथ्यों को स्वीकार कर लिया गया माना जाए, वादपत्र में उल्लिखित किसी भी तथ्य को साबित करने की आवश्यकता के बिना वादी के पक्ष में निर्णय संभवतः दिया जा सकता है।
      • यह न्यायालय की संतुष्टि का मामला है और इसलिये, केवल इस बात से संतुष्ट होने पर कि ऐसा कोई तथ्य नहीं है जिसे मान्य स्वीकृति के आधार पर साबित करने की आवश्यकता है, न्यायालय आसानी से प्रतिवादी के खिलाफ निर्णय सुना सकता है जिसने लिखित बयान दायर नहीं किया है।
      • किंतु अगर वादपत्र स्वयं इंगित करता है कि मामले में तथ्य के विवादित प्रश्न शामिल हैं जिनके संबंध में वादपत्र में ही दो अलग-अलग संस्करण दिये गए हैं, तो तथ्यात्मक विवाद को निपटाने के लिये वादी को तथ्यों को साबित करने की आवश्यकता के बिना निर्णय पारित करना न्यायालय के लिये सुरक्षित नहीं होगा।
      • ऐसा मामला आदेश 8 के नियम 5 के उप-नियम (2) में प्रयुक्त अभिव्यक्ति 'न्यायालय अपने विवेक से, ऐसे किसी भी तथ्य को साबित करने की आवश्यकता कर सकता है', या अभिव्यक्ति 'मुकदमे के संबंध में ऐसा आदेश दे सकता है जैसा वह उचित समझे' ऐसा आदेश 8 के नियम 10 में उपयोग किया गया है।