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सिविल कानून

CPC के आदेश II का नियम 2

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 16-Jul-2024

यूनीवर्ल्ड लॉजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम इनडेव लॉजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड

“आदेश II नियम 2 सीपीसी के अंतर्गत किराये एवं क्षतिपूर्ति के बकाया के लिये दूसरा वाद वर्जित नहीं होगा”।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति पी.बी. वराले

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति पी.बी. वराले की पीठ ने कहा कि बकाया किराये और क्षतिपूर्ति के लिये दूसरा वाद सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश II नियम 2 के अंतर्गत वर्जित नहीं होगा।

  • उच्चतम न्यायालय ने यूनीवर्ल्ड लॉजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंदेव लॉजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड के मामले में यह निर्णय दिया।

यूनीवर्ल्ड लॉजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम इनडेव लॉजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • इस मामले में अपीलकर्त्ता एक गोदाम का लाइसेंसधारी था जो गोदाम प्रतिवादी का था।
  • कुल चार वाद थे और दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विरुद्ध दो-दो वाद पेश किये थे। एक वाद वापस ले लिया गया था, अतः कुल तीन वाद लंबित थे।
  • दो विवादित वाद निम्न प्रकार थे।
  • प्रतिवादी ने स्थायी निषेधाज्ञा के लिये वाद प्रस्तुत किया और यहाँ उसने विशेष रूप से दलील दी कि वह बकाया किराये तथा संपत्ति के अवैध उपयोग एवं कब्ज़े के कारण क्षतिपूर्ति का दावा करने का अधिकार रखता है।
    • यह वाद इसलिये दायर किया गया क्योंकि भंडारण शुल्क के भुगतान में चूक हुई थी।
  • प्रतिवादी ने भंडारण, गोदाम शुल्क और क्षतिपूर्ति के बकाया की वसूली के लिये वर्ष 2016 में एक और वाद संख्या 323 दायर किया।
  • यहाँ अपीलकर्त्ता ने शिकायत को अस्वीकार करने के लिये CPC के आदेश II नियम 2 के साथ आदेश VII नियम 11 (d) के अंतर्गत एक आवेदन दायर किया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने माना कि किसी भी स्तर पर दावे का त्याग नहीं किया गया था तथा राहत का दावा करने में भी कोई चूक नहीं हुई थी।
  • न्यायालय ने कहा कि दोनों ही वाद के कारण (हेतुक) भिन्न-भिन्न हैं तथा दूसरा वाद स्पष्ट रूप से स्वीकार्य है।
  • न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्त्ता अनावश्यक रूप से वाद की प्रगति में विलंब करने का प्रयास कर रहा है।

 आदेश II नियम 2 क्या है?

  • CPC के आदेश II नियम 2 का उद्देश्य विधि के प्रमुख सिद्धांत पर आधारित है कि प्रतिवादी को एक ही कारण से दो बार तंग नहीं किया जाना चाहिये।
  • इस सिद्धांत का उद्देश्य दो बुराइयों का प्रतिकार करना है, अर्थात् (i) दावों का विभाजन और (ii) उपचारों का विभाजन।
  • CPC के आदेश II नियम 2 में प्रावधान है कि वाद में संपूर्ण दावा शामिल होना चाहिये।
  • आदेश II नियम 2(1) में यह प्रावधान है कि प्रत्येक वाद में वह संपूर्ण दावा सम्मिलित होगा जिसे वादी, वाद के कारण के संबंध में करने का अधिकारी है; परंतु वादी अपने दावे के किसी भाग को किसी न्यायालय के क्षेत्राधिकार में लाने के लिये त्याग सकता है।
  • आदेश II नियम 2(2) दावे के भाग को त्यागने का प्रावधान करता है।
    • जहाँ कोई वादी अपने दावे के किसी भाग के संबंध में वाद लाने का लोप कर देता है या जानबूझकर उसका त्याग कर देता है, वहाँ वह बाद में छोड़े गए या त्यागे गए भाग के संबंध में वाद नहीं लाएगा।
  • आदेश II नियम 2 (3) कई राहतों में से एक के लिये वाद दायर करने में चूक का प्रावधान करता है।
    • एक ही वाद के कारण के संबंध में एक से अधिक राहत प्राप्त करने का अधिकारी कोई व्यक्ति ऐसे सभी या किन्हीं राहतों के लिये वाद ला सकेगा; परंतु यदि वह न्यायालय की अनुमति के बिना ऐसी सभी राहतों के लिये वाद लाने में चूक करता है तो वह तत्पश्चात् ऐसी त्यागी गई किसी राहत के लिये वाद नहीं लाएगा।
    • स्पष्टीकरण: इस नियम के प्रयोजनों के लिये, किसी दायित्व और उसके निष्पादन के लिये संपार्श्विक प्रतिभूति तथा उसी दायित्व के अंतर्गत उत्पन्न होने वाले क्रमिक दावों को क्रमशः एक ही वाद का कारण माना जाएगा।

CPC के आदेश II नियम 2 की प्रयोज्यता के लिये क्या शर्तें हैं?

  • इसके लिये जो तीन शर्तें पूरी होनी चाहिये थी, जो निम्नवत हैं:
    • दूसरा वाद उसी वाद के कारण के संबंध में होना चाहिये जिस पर पिछला वाद आधारित था।
    • उस वाद के संबंध में वादी एक से अधिक राहत का अधिकारी था।
    • इस प्रकार राहत का अधिकारी होने के कारण वादी ने, न्यायालय की अनुमति के बिना उस राहत के लिये वाद दायर करने में चूक की जिसके लिये दूसरा वाद दायर किया गया था।

रेस ज्युडिकाटा और CPC के आदेश II नियम 2 के बीच क्या अंतर है?

रेस ज्युडिकाटा

CPC का आदेश II नियम 2

रेस ज्युडिकाटा वादी के अपने दावे के समर्थन में वाद के सभी आधारों को प्रकट करने के कर्त्तव्य से संबंधित है।

इसमें केवल यह अपेक्षा की जाती है कि वादी एक ही वाद-कारण से उत्पन्न होने वाली सभी राहतों का दावा करेगा।

यह दोनों पक्षों को संदर्भित करता है तथा वाद के साथ-साथ प्रतिवाद को भी रोकता है।

यह केवल वादी को संदर्भित करता है तथा वाद दायर करने पर रोक लगाता है।

CPC के आदेश II नियम 2 को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत क्या हैं?

  • आदेश II नियम 2 को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत मोहम्मद खलील बनाम महबूब अली मियाँ (1949) के मामले में प्रिवी काउंसिल द्वारा निर्धारित किये गए थे:
    • यहाँ सही परीक्षण यह है कि क्या नए वाद में दावा उस वाद-कारण से भिन्न है जो पूर्ववर्ती वाद का आधार था।
    • वाद-कारण से तात्पर्य उस प्रत्येक तथ्य से है जो वादी को न्यायालय द्वारा निर्णय पाने के उसके अधिकार का समर्थन करने के लिये आवश्यक होगा।
    • यदि दोनों दावों के समर्थन में साक्ष्य भिन्न-भिन्न हैं तो कार्यवाही का कारण भी भिन्न-भिन्न होगा।
    • दो वादों में वाद का कारण एक ही माना जा सकता है यदि वे मूलतः समान हों।
    • वाद-कारण का उस प्रतिवाद से कोई संबंध नहीं है जो स्थापित किया जा सकता है और न ही यह वादी द्वारा मांगी गई राहत की प्रकृति पर निर्भर करता है।
    • वाद-कारण वह माध्यम है जिसके आधार पर वादी न्यायालय से अपने पक्ष में निष्कर्ष पर पहुँचने का अनुरोध करता है।

क्या अंतःकालीन लाभ के लिये दावा और कब्ज़े के लिये दावा भिन्न-भिन्न वाद के कारण हैं?

  • राम करण सिंह बनाम नकछड़ अहीर (1931) के मामले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने माना कि कब्ज़े के लिये कार्यवाही का कारण आवश्यक रूप से अंतःकालीन लाभ की वसूली के लिये वाद-कारण के समान नहीं है।
  • आदेश II नियम 4 के प्रावधानों से संकेत मिलता है कि विधायिका ने कब्ज़े की वसूली के लिये एक दावे के साथ अंतःकालीन लाभ के लिये दावे को जोड़ने का प्रावधान करना आवश्यक समझा।
  • इस निर्णय का उदाहरण उच्चतम न्यायालय के 2 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा मेसर्स भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम एटीएम कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड (2023) के मामले में दिया गया।
  • CPC के आदेश II नियम 4 में प्रावधान है कि केवल कुछ दावों को ही अचल संपत्ति की वसूली के लिये जोड़ा जा सकता है।
    • कोई भी वाद-कारण, न्यायालय की अनुमति के बिना, अचल संपत्ति की वसूली के लिये वाद के साथ नहीं जोड़ा जाएगा, सिवाय इसके कि—
      • दावा की गई संपत्ति या उसके किसी भाग के संबंध में अंतःकालीन लाभ या किराये के बकाया के लिये दावे;
      • किसी ऐसी संविदा के उल्लंघन के लिये क्षतिपूर्ति का दावा जिसके अधीन संपत्ति या उसका कोई भाग धारित है; तथा
      • ऐसे दावे जिनमें मांगी गई राहत एक ही वाद-कारण पर आधारित है।

 महत्त्वपूर्ण निर्णयज विधियाँ:

  • गुरबक्स सिंह बनाम भूरालाल (1964)
    • उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि CPC के आदेश II नियम 2 के अंतर्गत एक याचिका सफल होनी चाहिये यदि निम्नलिखित तथ्य प्रकट होते हैं:
      • दूसरा वाद भी उसी वाद-कारण के संबंध में था जिस पर पिछला वाद आधारित था।
      • उस वाद-कारण के संबंध में वादी एक से अधिक राहत का अधिकारी था।
      • इस प्रकार एक से अधिक राहत पाने का अधिकारी होने के कारण वादी ने न्यायालय से अनुमति प्राप्त किये बिना उस रहत के लिये वाद दायर करने में चूक की जिसके लिये दूसरा वाद दायर किया गया था।
  • ब्रह्म सिंह बनाम भारत संघ (2020)
    • न्यायालय ने कहा कि CPC के आदेश II नियम 2 का प्रतिबंध रिट याचिकाओं पर लागू नहीं हो सकता।
  • जीवन बीमा निगम बनाम संजीव बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड (2022)
    • इस मामले में उचतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आदेश II नियम 2 के प्रावधान केवल “अनुवर्ती वाद” पर लागू होते हैं।
    • अतः न्यायालय ने माना कि यह प्रावधान दलीलों में संशोधन पर लागू नहीं होता।
    • इस प्रकार, CPC के आदेश II नियम 2 द्वारा संशोधन पर रोक लगाने की दलील गलत है और इसे अनुमति नहीं दी जा सकती।