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सिविल कानून
CPC का आदेश VI नियम 17
« »15-Mar-2024
प्रकाश कोडवानी बनाम श्रीमती विमला देवी लखवानी एवं अन्य "संशोधन आवेदन में प्रस्तावित संशोधन के गुणों पर नहीं बल्कि, केवल प्रस्तावित अभिवचनों पर विचार किया जाना चाहिये।" न्यायमूर्ति प्रणय वर्मा |
स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रकाश कोडवानी बनाम श्रीमती विमला देवी लखवानी एवं अन्य के मामले में माना है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश VI के नियम 17 के प्रावधानों के अनुसार, संशोधन आवेदन में प्रस्तावित संशोधन के गुणों पर नहीं बल्कि, केवल प्रस्तावित अभिवचनों पर विचार किया जाना चाहिये।
प्रकाश कोडवानी बनाम श्रीमती विमला देवी लखवानी एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, याचिकाकर्त्ता ने सिविल न्यायधीश, कनिष्क खंड, ज़िला इंदौर द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान याचिका दायर की है।
- आदेश में, ट्रायल कोर्ट ने CPC के आदेश VI के नियम 17 के तहत याचिकाकर्त्ता द्वारा लिखित कथन में संशोधन करने की अनुमति मांगने वाले आवेदन को खारिज़ कर दिया है।
- उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए याचिका स्वीकार की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति प्रणय वर्मा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि यह कानून में स्पष्ट रूप से स्थापित है कि संशोधन के लिये एक आवेदन पर विचार करते समय केवल प्रस्तावित अभिवचन को ही ध्यान में रखा जाना आवश्यक होता है और प्रस्तावित संशोधन की योग्यता पर विचार नहीं किया जाना चाहिये।
- आगे यह भी कहा गया कि न्यायालय ने सिविल न्यायधीश द्वारा पहले खारिज़ किये गए संशोधन आवेदन को अनुमति देना उचित और आवश्यक पाया।
CPC के आदेश VI का नियम 17 क्या है?
CPC का आदेश VI:
परिचय:
- CPC का आदेश VI सामान्य तौर पर अभिवचन से संबंधित है।
- अभिवचन का अर्थ वादपत्र या लिखित कथन होगा।
अभिवचन:
- अभिवचन प्रत्येक पक्षकर द्वारा बारी-बारी से अपने प्रतिद्वंद्वी को दिये गए लिखित कथन होते हैं, जिसमें बताया जाता है कि मुकदमे में उसके अभिवचन क्या होंगे, साथ ही ऐसे सभी विवरण दिये जाते हैं जो उसके प्रतिद्वंद्वी को जवाब में अपना मामला तैयार करने के लिये जानने की आवश्यकता होती है।
- अभिवचन की यह एक अनिवार्य आवश्यकता है कि अभिवचन में भौतिक तथ्य और आवश्यक विवरण अवश्य बताए जाने चाहिये तथा निर्णय अभिवचन से बाह्य आधार पर नहीं हो सकते।
नियम17:
- यह नियम अभिवचनों में संशोधन से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि न्यायालय कार्यवाहियों के किसी भी प्रक्रम पर, किसी भी पक्षकार को, ऐसी रीति से और ऐसे निबंधनों पर, जो न्यायसंगत हों, अपने अभिवचनों को परिवर्तित या संशोधित करने के लिये अनुज्ञात कर सकेगा और वे सभी संशोधन किये जाएँगे जो दोनों पक्षकारों के बीच विवाद के वास्तविक प्रश्नों के अवधारण के प्रयोजन के लिये आवश्यक हों।
- परंतु विचारण प्रारंभ होने के पश्चात् संशोधन के लिये किसी आवेदन को तब तक अनुज्ञात नहीं किया जाएगा जब तक कि न्यायालय इस निर्णय पर न पहुँचे कि सम्यक् तत्परता बरतने पर भी वह पक्षकार, विचारण प्रारंभ होने से पूर्व वह विषय नहीं उठा सकता था।
- नियम 17 का उद्देश्य मुकदमेबाज़ी को कम करना, विलंब को कम करना और वादों की बहुलता से बचना है।