होम / करेंट अफेयर्स
सिविल कानून
आदेश XXI नियम 16
« »17-Jul-2024
श्री मोमिन जुल्फिकार कसम बनाम अजय बालकृष्ण दुर्वे “अधिकार का अंतरिती व्यक्ति डिक्री के समनुदेशन के बिना डिक्री के निष्पादन का अधिकारी है”। न्यायमूर्ति संदीप वी. मार्ने |
स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने श्री मोमिन जुल्फिकार कसम बनाम अजय बालकृष्ण दुर्वे एवं अन्य के मामले में माना है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) में संशोधन के अनुसार अधिकार का अंतरिती व्यक्ति डिक्री के समनुदेशन के बिना डिक्री के निष्पादन का अधिकारी है।
श्री मोमिन जुल्फिकार कसम बनाम अजय बालकृष्ण दुर्वे एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, वादी ने लाइसेंस समझौते के आधार पर प्रतिवादी को परिसर किराये पर दे दिया था, जिसकी अवधि समाप्त हो गई थी, इसलिये वादी ने परिसर का कब्ज़ा मांगा।
- कई अधिसूचना के बाद भी प्रतिवादी ने अधिसूचना का पालन नहीं किया।
- वादी ने प्रतिवादी को बेदखल करने के लिये महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम, 1999 की धारा 24 के अंतर्गत सक्षम प्राधिकारी के समक्ष वाद दायर किया।
- प्रतिवादी ने आपत्ति याचिका दायर कर कहा कि सक्षम प्राधिकारी को मामले पर निर्णय करने का अधिकार नहीं है, जिसे सक्षम प्राधिकारी ने अस्वीकार कर दिया।
- वादी ने प्रतिवादी को बेदखल करने के लिये लघु वाद न्यायालय में वाद दायर किया।
- लघु वाद न्यायालय ने वादी के पक्ष में निर्णय दिया तथा प्रतिवादी को कब्ज़े का वारंट जारी करने का आदेश दिया।
- निर्णय से व्यथित प्रतिवादी ने अपीलीय लघु वाद न्यायालय के समक्ष अपील दायर की जिसे अपीलीय न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया।
- इसके उपरांत वादी ने लघु वाद न्यायालय के समक्ष निष्पादन आवेदन दायर किया, जिसका प्रतिवादी द्वारा विरोध किया गया, जबकि लघु वाद न्यायालय द्वारा CPC के कब्ज़े के वारंट के आदेश XXI नियम 35 के अंतर्गत वादी के पक्ष में निष्पादन डिक्री पारित की गई थी।
- प्रतिवादी ने लघु वाद न्यायालय के समक्ष आपत्ति याचिका दायर की, जिसमें आपत्ति की गई कि महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 22 के प्रावधानों के अनुसार न्यायालय को निष्पादन डिक्री पारित करने का अधिकार नहीं है और कब्ज़े के वारंट पर स्थगन की भी प्रार्थना की, जबकि कब्ज़े के वारंट पर स्थगन का आवेदन न्यायालय द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था।
- प्रतिवादी ने अपीलीय न्यायालय के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसने कब्ज़े के वारंट पर स्थगन हेतु याचिका को स्वीकार कर लिया तथा कब्ज़े के वारंट पर रोक लगाते हुए लघु वाद न्यायालय द्वारा पारित डिक्री को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि मात्र हस्तांतरण, CPC, 1908 के आदेश XXI नियम 16 के अनुसार डिक्री के हस्तांतरण के समान नहीं है।
- अपीलीय न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर वादी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने पाया कि अपीलीय न्यायालय ने CPC के आदेश XXI नियम 16 को लागू किया है, परंतु संशोधित प्रावधान को लागू करने में विफल रहा है, जो अंतरिती को डिक्री के पृथक समनुदेशन के बिना डिक्री के निष्पादन के लिये आवेदन करने में सक्षम बनाता है।
- न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि आदेश XXI नियम 16 के अंतर्गत कोई भी नियम CPC की धारा 146 को प्रभावित नहीं करता है।
- उच्च न्यायालय ने यह भी तय किया कि डिक्री के निष्पादन से संबंधित सभी प्रश्नों का समाधान निष्पादन न्यायालय द्वारा किया जाएगा, न कि CPC की धारा 47 के प्रावधानों के अनुसार अलग से वाद दायर करके।
- न्यायालय ने कहा कि अपीलीय लघु वाद न्यायालय ने निष्पादन न्यायालय के आदेश को रद्द करने तथा कब्ज़े के वारंट पर रोक लगाने में गंभीर गलती की है।
- इसलिये, न्यायालय ने लघु वाद न्यायालय/कार्यकारी न्यायालय के निर्णय को यथावत् रखा तथा वादी द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया। हालाँकि, क्षेत्राधिकार पर प्रतिवादी की आपत्ति याचिका लघु वाद न्यायालय के समक्ष लंबित है।
CPC का आदेश XXI क्या है?
- परिचय:
- यह आदेश डिक्री के निष्पादन की पूरी प्रक्रिया बताता है।
- इसमें कहा गया है कि किसी आदेश पर उसे देने वाले न्यायाधीशों के हस्ताक्षर होने चाहिये तथा फिर उसे न्यायालय द्वारा रजिस्टर में दर्ज किया जाना चाहिये।
- यह CPC के अंतर्गत सबसे लंबा आदेश है जिसमें 106 नियम शामिल हैं।
- निष्पादन डिक्री पक्षकारों द्वारा निरीक्षण के लिये खुली है।
- डिक्री के निष्पादन के विभिन्न तरीके:
- संपत्ति की कुर्की और बिक्री
- गिरफ्तारी एवं नज़रबंदी
- रिसीवर की नियुक्ति
- कब्ज़े का परिदान
- आदेश XXI के अंतर्गत आवेदन करने की प्रक्रिया:
- निर्णीत लेनदार द्वारा निष्पादन न्यायालय के समक्ष आवेदन दायर किया जाएगा।
- निष्पादन न्यायालय, निर्णीत ऋणी को नोटिस जारी करेगा।
- न्यायालय सभी आवश्यक परीक्षणों के उपरांत डिक्री को निष्पादित करेगा तथा डिक्री के निष्पादन के लिये वारंट जारी कर सकता है, संपत्ति कुर्क कर सकता है, गिरफ्तारी का आदेश दे सकता है या कोई अन्य आवश्यक उपाय कर सकता है।
श्री मोमिन जुल्फिकार कसम बनाम अजय बालकृष्ण दुर्वे एवं अन्य मामले में CPC, 1908 के महत्त्वपूर्ण नियम और धाराएँ क्या हैं?
- धारा 47: डिक्री निष्पादित करने वाले न्यायालय द्वारा निर्धारित किये जाने वाले प्रश्न:
- खंड (1) में कहा गया है कि जिस वाद में डिक्री पारित की गई थी, उसके पक्षकारों या उनके प्रतिनिधियों के बीच उत्पन्न होने वाले और डिक्री के निष्पादन, निर्वहन या संतुष्टि से संबंधित सभी प्रश्न, डिक्री को निष्पादित करने वाले न्यायालय द्वारा निर्धारित किये जाएंगे, न कि किसी अलग वाद द्वारा।
- खंड (2) में कहा गया है कि न्यायालय, परिसीमा या अधिकारिता के संबंध में किसी आपत्ति के अधीन रहते हुए, इस धारा के अंतर्गत किसी कार्यवाही को वाद के रूप में या किसी वाद को कार्यवाही के रूप में मान सकता है और यदि आवश्यक हो, तो किसी अतिरिक्त न्यायालय शुल्क के भुगतान का आदेश दे सकता है।
- खंड (3) में कहा गया है कि जहाँ यह प्रश्न उठता है कि कोई व्यक्ति किसी पक्षकार का प्रतिनिधि है या नहीं, तो ऐसे प्रश्न का निर्धारण इस धारा के प्रयोजनों के लिये न्यायालय द्वारा किया जाएगा।
- स्पष्टीकरण: इस धारा के प्रयोजनों के लिये, वह वादी जिसका वाद अस्वीकार कर दिया गया है और वह प्रतिवादी जिसके विरुद्ध वाद अस्वीकार कर दिया गया है, इस वाद में पक्षकार हैं।
- धारा 146: प्रतिनिधियों द्वारा या उनके विरुद्ध कार्यवाही:
- इस संहिता या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, जहाँ किसी व्यक्ति द्वारा या उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही की जा सकती है या आवेदन किया जा सकता है वहाँ उसके अधीन दावा करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा या उसके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है या आवेदन किया जा सकता है।
- आदेश XXI नियम 16: डिक्री के अंतरिती द्वारा निष्पादन के लिये आवेदन:
- इस नियम में यह कहा गया है कि जहाँ कोई डिक्री या, यदि कोई डिक्री दो या अधिक व्यक्तियों के पक्ष में संयुक्त रूप से पारित की गई है, डिक्री में किसी डिक्रीधारक का हित, लिखित रूप में समनुदेशन द्वारा या विधि के प्रवर्तन द्वारा अंतरित किया जाता है, वहाँ अंतरिती डिक्री के निष्पादन के लिये उस न्यायालय को आवेदन कर सकता है जिसने उसे पारित किया था और डिक्री उसी रीति से तथा उन्हीं शर्तों के अधीन निष्पादित की जा सकेगी, जैसे कि आवेदन ऐसे डिक्रीधारक द्वारा किया गया हो।
- परंतु जहाँ डिक्री या पूर्वोक्त हित समनुदेशन द्वारा अंतरित किया गया है, वहाँ ऐसे आवेदन की सूचना अंतरक और निर्णीत ऋणी को दी जाएगी तथा डिक्री तब तक निष्पादित नहीं की जाएगी जब तक न्यायालय उसके निष्पादन के संबंध में उनकी आपत्तियों (यदि कोई हों) पर विचारण नहीं कर लेता।
- यह भी उपबंध है कि जहाँ दो या अधिक व्यक्तियों के विरुद्ध धन के संदाय के लिये डिक्री उनमें से किसी एक को अंतरित कर दी गई है, वहाँ उसे अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध निष्पादित नहीं किया जाएगा।
- संशोधन द्वारा एक स्पष्टीकरण जोड़ा गया कि इस नियम की कोई भी बात धारा 146 के उपबंधों को प्रभावित नहीं करेगी तथा संपत्ति में अधिकारों का अंतरिती, जो वाद का विषय है, इस नियम द्वारा अपेक्षित डिक्री के पृथक समनुदेशन के बिना डिक्री के निष्पादन के लिये आवेदन कर सकता है।
- आदेश XXI नियम 35: अचल संपत्ति के लिये डिक्री:
- खंड (1) में कहा गया है कि जहाँ कोई डिक्री किसी अचल संपत्ति के परिदान के लिये है, वहाँ उसका कब्ज़ा उस पक्षकार को दिया जाएगा जिसके लिये वह अधिनिर्णीत की गई है, या ऐसे व्यक्ति को जिसे वह अपनी ओर से परिदान प्राप्त करने के लिये नियुक्त करे, और यदि आवश्यक हो तो डिक्री से आबद्ध किसी ऐसे व्यक्ति को हटाकर जो संपत्ति खाली करने से इनकार करता है।
- खंड (2) में कहा गया है कि जहाँ डिक्री अचल संपत्ति के संयुक्त कब्ज़े के लिये है, वहाँ ऐसा कब्ज़ा संपत्ति पर किसी सार्वजनिक स्थान पर वारंट की एक प्रति चिपकाकर और किसी उपयुक्त स्थान पर ढोल बजाकर या अन्य परंपरागत तरीके से डिक्री का सार घोषित करके दिया जाएगा।
- खंड (3) में कहा गया है कि जहाँ किसी अहाते या किसी भवन का कब्ज़ा दिया जाना है और कब्ज़ाधारी व्यक्ति, डिक्री से आबद्ध होने के कारण, अबाध प्रवेश नहीं कर सकता है, वहाँ न्यायालय अपने अधिकारियों के माध्यम से, देश की प्रथाओं के अनुसार सार्वजनिक रूप से उपस्थित न होने वाली किसी महिला को उचित चेतावनी और सुविधा देने के पश्चात्, वह उस भवन का ताला हटाने, कुंडी हटाने या खोलने या किसी दरवाज़े को तोड़ने या डिक्रीधारक को कब्ज़ा दिलाने के लिये आवश्यक कोई अन्य कार्य कर सकता है।
आदेश XXI की प्रयोज्यता पर ऐतिहासिक निर्णय क्या हैं?
- जुगल किशोर सराफ बनाम रॉ कॉटन कंपनी लिमिटेड (1955): इस मामले में यह माना गया कि संपत्ति में अधिकारों का अंतरिती डिक्री के पृथक समनुदेशन के अभाव में डिक्री के निष्पादन के लिये आवेदन करने का अधिकारी नहीं है। CPC में संशोधन के उपरांत यह एक दोषपूर्ण विधि है।
- वैष्णो देवी कंस्ट्रक्शन बनाम भारत संघ (2022): इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि संपत्ति में अधिकारों का अंतरिती, डिक्री के पृथक समनुदेशन के अभाव में डिक्री के निष्पादन के लिये आवेदन करने का अधिकारी है।