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सिविल कानून
CPC का आदेश XXIII नियम 3
« »18-Jul-2024
अमरो देवी एवं अन्य बनाम जुल्फी राम (मृत) LR के माध्यम से एवं अन्य “समझौते के विषय में न्यायालय के समक्ष पक्षों के मात्र बयान से CPC के आदेश XXIII नियम 3 की अपेक्षाएँ पूरी नहीं होती”। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि समझौते की शर्तों को लिखित रूप में रखा जाना चाहिये तथा पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित किया जाना चाहिये।
- उच्चतम न्यायालय ने अमरो देवी एवं अन्य बनाम जुल्फी राम (मृत) LR के माध्यम से एवं अन्य के मामले में यह निर्णय दिया।
अमरो देवी एवं अन्य बनाम जुल्फी राम (मृत) LR एवं अन्य के माध्यम से मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- प्रतिवादी/वादी ने न्यायालय के समक्ष पक्षों के बीच दर्ज पूर्व समझौते के आधार पर अपीलकर्त्ता/प्रतिवादी के विरुद्ध कब्ज़े और अस्थायी निषेधाज्ञा के लिये एक नया वाद दायर किया।
- वादी ने तर्क दिया कि पिछले वाद में पक्षों के बीच हुए समझौते के अनुसार वे विवादित भूमि के आधे भाग के स्वामी हैं।
- अपीलकर्त्ता/प्रतिवादी ने वादी के तर्क का प्रतिवाद किया और तर्क दिया कि पहले के वाद में पक्षों के बीच हुए समझौते को मान्यता नहीं दी जा सकती क्योंकि CPC के आदेश XXIII नियम 3 का अनुपालन न होने के कारण न्यायालय द्वारा कोई समझौता डिक्री पारित नहीं की गई थी।
- निचले न्यायालय ने पक्षकारों के बीच विधिवत् हस्ताक्षरित लिखित समझौते के अभाव और प्रस्तुति के अभाव में वाद को अस्वीकार कर दिया।
- हालाँकि प्रथम अपीलीय न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों को उलट दिया, जिसे बाद में उच्च न्यायालय ने स्वीकृति दे दी।
- इसके बाद अपीलकर्त्ता/प्रतिवादी ने उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों को यथावत रखा और कहा कि वाद के पक्षकारों द्वारा विधिवत् हस्ताक्षरित लिखित समझौते के अस्तित्व या प्रस्तुति के बिना समझौता करना विधि के अंतर्गत अनुचित है।
- न्यायालय ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश XXIII नियम 3 को पढ़ने से स्पष्ट है कि वैध समझौते के लिये पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित लिखित रूप में वैध करार या समझौता होना चाहिये, जिसे न्यायालय की संतुष्टि के लिये सिद्ध करना आवश्यक होगा।
- लिखित रूप में ऐसे किसी दस्तावेज़ के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि कोई वैध समझौता हुआ है।
- इसलिये, न्यायालय ने यहाँ स्पष्ट किया कि समझौता डिक्री केवल CPC के आदेश XXIII नियम 3 के अनुसार ही पारित की जा सकती है।
CPC का आदेश XXIII नियम 3 क्या है?
- CPC के आदेश XXIII नियम 3 में वाद में समझौते का प्रावधान है।
- इस प्रावधान का उद्देश्य वाद-प्रतिवाद की बहुलता से बचना तथा पक्षों को सौहार्दपूर्ण ढंग से समझौता करने की अनुमति देना है।
- इसके आवश्यक तत्त्व निम्नवत हैं:
- न्यायालय की संतुष्टि हेतु यह सिद्ध करना होगा कि वाद पूर्णतः या आंशिक रूप से समायोजित कर दिया गया है।
- एक वैध करार या समझौते द्वारा,
- वैध करार या समझौता लिखित रूप में होना चाहिये तथा पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिये (1976 के अधिनियम 104 द्वारा जोड़ा गया)
- न्यायालय ऐसे करार, समझौता या संतुष्टि को दर्ज करने का आदेश देगा
- उपरोक्त करार या समझौते के अनुसार डिक्री पारित की जाएगी।
- यह आवश्यक नहीं है कि करार, समझौता या संतुष्टि की विषय-वस्तु वाद की विषय-वस्तु के समान हो।
- आदेश XXIII नियम 3 के प्रावधान में यह प्रावधान है कि:
- जहाँ एक पक्ष द्वारा यह आरोप लगाया जाता है और दूसरे पक्ष द्वारा इनकार किया जाता है कि कोई करार या समझौता हो गया है।
- उपरोक्त प्रश्न का निर्णय न्यायालय द्वारा किया जाएगा।
- तथापि, प्रश्न का निर्णय करने के प्रयोजन के लिये तब तक कोई स्थगन आदेश नहीं दिया जाएगा जब तक कि न्यायालय ऐसा स्थगन देना उचित न समझे।
- इसके अतिरिक्त, धारा के स्पष्टीकरण में यह प्रावधान है कि एक करार या समझौता जो:
- शून्य , या
- शून्यकरणीय
- भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अंतर्गत वैध नहीं माना जाएगा।
- यह ध्यान देने योग्य है कि आदेश XXIII नियम 3A में यह प्रावधान है कि किसी डिक्री को इस आधार पर रद्द करने के लिये कोई वाद नहीं लाया जाएगा कि जिस समझौते पर डिक्री आधारित थी वह वैध नहीं था।
महत्त्वपूर्ण निर्णयज विधियाँ क्या हैं?
- पुष्पा देवी भगत बनाम राजिंदर सिंह (2006):
- न्यायालय ने आदेश XXIII नियम 3 और नियम 3A के प्रावधानों पर गौर किया तथा निम्नलिखित निर्णय दिया:
- धारा 96(3) CPC में निहित विशिष्ट प्रतिबंध को ध्यान में रखते हुए सहमति डिक्री के विरुद्ध कोई अपील स्वीकार्य नहीं है।
- नियम 1 आदेश 43 के खंड (m) को हटाए जाने के उपरांत समझौता दर्ज करने (या समझौता दर्ज करने से इनकार करने) के न्यायालय के आदेश के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती।
- किसी समझौता डिक्री को इस आधार पर रद्द करने के लिये कोई स्वतंत्र वाद दायर नहीं किया जा सकता कि नियम 3-A में निहित प्रतिबंध के मद्देनज़र समझौता वैध नहीं था।
- सहमति डिक्री एक विबंधन के रूप में कार्य करती है तथा तब तक वैध और बाध्यकारी होती है जब तक कि इसे सहमति डिक्री पारित करने वाले न्यायालय द्वारा नियम 3 आदेश 23 के प्रावधान के तहत आवेदन पर आदेश द्वारा अपास्त नहीं कर दिया जाता है।
- न्यायालय ने आदेश XXIII नियम 3 और नियम 3A के प्रावधानों पर गौर किया तथा निम्नलिखित निर्णय दिया:
- त्रिलोकी नाथ सिंह बनाम अनिरुद्ध सिंह (2020):
- आदेश XXIII नियम 3 CPC की योजना वाद-प्रतिवाद की बहुलता से बचने और पक्षों को सौहार्दपूर्ण ढंग से समझौता करने की अनुमति देने की है, जो कि वैध है, लिखित है तथा पक्षों की ओर से स्वैच्छिक है।
- न्यायालय ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1976 में संशोधन प्रस्तुत करके विधायिका ने आदेश 23 नियम 3-A को लागू कर दिया है, जो इस आधार पर किसी डिक्री को रद्द करने के लिये वाद प्रस्तुत करने पर रोक लगाता है कि जिस समझौते पर डिक्री आधारित है वह विधिसम्मत नहीं है।
- सहमति डिक्री से बचने के लिये पक्षकार के पास एकमात्र उपाय उस न्यायालय में जाना है जिसने समझौता दर्ज किया है तथा कोई स्वतंत्र वाद दायर नहीं किया जा सकता है।