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आपराधिक कानून

भरण-पोषण का आदेश

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 22-Jan-2024

अशोक कुमार सिंह बनाम झारखंड राज्य और अन्य।

एक बार वैवाहिक संबंध अस्वीकृत हो जाने पर CrPC की धारा 125 के प्रावधानों के तहत भरण-पोषण का कोई आदेश नहीं दिया जा सकता है।

न्यायमूर्ति गौतम कुमार चौधरी

स्रोत - झारखण्ड उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अशोक कुमार सिंह बनाम झारखंड राज्य और अन्य के मामले में झारखंड उच्च न्यायालय ने माना है कि एक बार वैवाहिक संबंध अस्वीकृत हो जाने पर, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के प्रावधानों के तहत भरण-पोषण का कोई आदेश नहीं दिया जा सकता है।

अशोक कुमार सिंह बनाम झारखंड राज्य और अन्य मामले की पृष्ठभूमि:

  • झारखंड उच्च न्यायालय के समक्ष, वर्तमान आपराधिक पुनरीक्षण याचिका 16 जनवरी 2020 को अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश, सहायक कुटुंब न्यायालय, जमशेदपुर द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर की गई है, जिसके तहत याचिकाकर्ता को प्रति माह 4,000 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया गया था और भरण-पोषण तथा मुकदमे की लागत के रूप में 2000/- रुपये एकमुश्त भुगतान करने का आदेश दिया गया।
  • इसको चुनौती देने का एकमात्र आधार यह है कि आवेदक, याचिकाकर्ता की विधिक रूप से विवाहित पत्नी नहीं है और वे उस रिश्ते में कभी एक साथ नहीं रहे।
  • उच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए उपरोक्त आदेश को रद्द कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणी:

  • न्यायमूर्ति गौतम कुमार चौधरी ने कहा कि एक बार वैवाहिक संबंध अस्वीकृत हो जाने पर CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का कोई आदेश नहीं दिया जा सकता है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि विवाह के तथ्य ही स्पष्ट नहीं हैं। विवाह की धारणा में इस बात का सबूत होना चाहिये कि पक्ष एक साथ रह रहे थे। लेकिन इस संदर्भ में उक्त अनुमान खंडन योग्य अनुमान है।

CrPC की धारा 125:

परिचय:

CrPC की धारा 125 पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण-पोषण के लिये आदेश से संबंधित है जिसमें शामिल है कि -

(1) यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति:

(a) अपनी पत्नी का, जो अपने भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या

(b) अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहे विवाहित हो या न हो, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या

(c) अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का (जो विवाहित पुत्री नहीं है), जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहाँ ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या

(d) अपने पिता या माता का जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, भरण-पोषण करने में उपेक्षा करता है, या भरण-पोषण करने से इनकार करता है, तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इनकार के साबित हो जाने पर, ऐसे व्यक्ति को यह निर्देश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता या माता के भरण-पोषण के लिये ऐसी मासिक दर पर, जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देश दे:

परन्तु मजिस्ट्रेट खण्ड (b) में निर्दिष्ट अवयस्क पुत्री के पिता को निर्देश दे सकता है, कि वह उस समय तक ऐसा भत्ता दें जब तक वह वयस्क नहीं हो जाती है,यदि मजिस्ट्रेट को समाधान हो जाता है कि ऐसी अवयस्क पुत्री के, यदि वह विवाहित हो, पति के पास पर्याप्त साधन नहीं हैं :

परंतु यह और कि मजिस्ट्रेट, इस उपधारा के अधीन भरण-पोषण के लिये मासिक भत्ते के संबंध में कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, ऐसे व्यक्ति को यह निर्देश दे सकता है, कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता या माता के अंतरिम भरण-पोषण के लिये, जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे, मासिक भत्ता और ऐसी कार्यवाही का व्यय दे और ऐसे व्यक्ति को उसका संदाय करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देश दे :

परन्तु यह भी कि दूसरे परंतुक के अधीन अंतरिम भरण-पोषण के लिये मासिक भत्ते और कार्यवाही के व्ययों का कोई आवेदन, यथासंभव ऐसे व्यक्ति पर आवेदन करने की तारीख से साठ दिन के अंदर निपटाया जाएगा।

स्पष्टीकरण — इस अध्याय के प्रयोजनों के लिये :

(a) “अवयस्क” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसके बारे में भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 के उपबंधों के अधीन यह समझा जाता है कि उसने वयस्कता प्राप्त नहीं की है; 

(b) “पत्नी” के अंतर्गत ऐसी स्त्री है जिसके पति ने उससे विवाह-विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह-विच्छेद कर लिया है और जिसने पुनर्विवाह नहीं किया है।

(2) भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण के लिये ऐसा कोई भत्ता और कार्यवाही के लिये व्यय के आदेश की तारीख से या, यदि ऐसा आदेश दिया जाता है तो, यथास्थिति, भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण और कार्यवाही के व्ययों के लिये आवेदन की तारीख से संदेय होंगे।

(3) यदि कोई व्यक्ति जिसे आदेश दिया गया हो, उस आदेश का अनुपालन करने में पर्याप्त कारण के बिना असफल रहता है तो उस आदेश के प्रत्येक भंग के लिये ऐसा कोई मजिस्ट्रेट देय रकम के ऐसी रीति से उद्गृहीत किये जाने के लिये वारंट जारी कर सकता है,जैसी रीति जुर्माने उद्गृहीत करने के लिये उपबंधित है, और उस वारंट के निष्पादन के पश्चात् प्रत्येक मास के न चुकाए गए यथास्थिति भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण के लिये पूरे भत्ते और कार्यवाही के व्यय या उसके किसी भाग के लिये ऐसे व्यक्ति को एक मास तक की अवधि के लिये, अथवा यदि वह उससे पूर्व भुगतान कर  दिया जाता है। तो भुगतान करने  के समय तक के लिये, कारावास का दण्डादेश दे सकता है:

  परन्तु इस धारा के अधीन देय रकम की वसूली के लिये कोई वारंट तब तक जारी न किया जाएगा जब तक उस रकम को उद्गृहीत करने के लिये, उस तारीख से जिसको वह देय हुई एक वर्ष की अवधि के अंदर न्यायालय से आवेदन नहीं किया गया है :

   परन्तु यह और कि यदि ऐसा व्यक्ति इस शर्त पर भरणपोषण करने की प्रस्थापना करता है कि उसकी पत्नी उसके साथ रहे और वह पति के साथ रहने से इनकार करती है, तो ऐसा मजिस्ट्रेट उसके द्वारा कथित इनकार के किन्हीं आधारों पर विचार कर सकता है और ऐसी प्रस्थापना के किये जाने पर भी वह इस धारा के अधीन आदेश दे सकता है, और यदि उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा आदेश देने के लिये न्यायसंगत आधार है।

स्पष्टीकरण –– यदि पति ने अन्य स्त्री से विवाह कर लिया है या वह रखैल रखता है तो यह उसकी पत्नी द्वारा उसके साथ रहने से इनकार का न्यायसंगत आधार माना जाएगा

(4) कोई पत्नी अपने पति से इस धारा के अधीन यथास्थिति भरणपोषण या अन्तरिम भरणपोषण के लिये भत्ता और कार्यवाही के व्यय प्राप्त करने की हकदार नही  होगी, यदि वह जारता की दशा में रह रही है अथवा यदि वह पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है अथवा यदि वे पारस्परिक सम्मति से पृथक रह रहे हैं।

(5) मजिस्ट्रेट यह साबित होने पर आदेश को रद्द कर सकता है कि कोई पत्नी, जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है, जारता की दशा में रह रही है, अथवा पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है अथवा वे पारस्परिक सम्मति से पृथक् रह रहे हैं।

केस लॉ :

  • के.विमल बनाम के.वीरास्वामी (1991) में, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया, कि CrPC की धारा 125 एक सामाजिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये पेश की गई थी। इस धारा का उद्देश्य पति से अलग होने के बाद पत्नी को आवश्यक आश्रय और भोजन प्रदान करके उसका कल्याण करना है।