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सांविधानिक विधि
अधिकरणों के आदेश
« »28-Mar-2024
कीर्ति बनाम रेनू आनंद एवं अन्य "माना कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत अधिकरणों द्वारा पारित आदेश COI के अनुच्छेद 227 के तहत चुनौती के लिये अलग से उत्तरदायी होते हैं।" कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कीर्ति बनाम रेनू आनंद एवं अन्य के मामले में माना है माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत अधिकरणों द्वारा पारित आदेशों को भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 227 के तहत चुनौती के लिये अलग से उत्तरदायी होते हैं।
कीर्ति बनाम रेनू आनंद एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 23 के तहत भरण-पोषण अधिकरण के समक्ष विषय संपत्ति की छत के अधिकार के साथ तीसरी मंज़िल के संबंध में प्रतिवादी के पक्ष में उसके द्वारा निष्पादित दान विलेख को रद्द करने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया गया था।
- भरण-पोषण अधिकरण ने अपने आदेश से उक्त आवेदन को स्वीकार कर लिया और यह घोषणा की कि दान विलेख सभी उद्देश्यों के लिये अकृत और शून्य है।
- भरण-पोषण अधिकरण के उक्त आदेश को रद्द करने के लिये, COI के अनुच्छेद 226 व 227 के तहत एक रिट याचिका दायर करके प्रतिवादी द्वारा उपर्युक्त आदेश को चुनौती दी गई थी।
- संबंधित एकल न्यायाधीश द्वारा रिट याचिका को स्वीकार कर लिया गया और भरण-पोषण अधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया गया।
- इसके बाद, अपीलकर्त्ता (दिवंगत श्रीमती सत्या रानी चोपड़ा के कानूनी उत्तराधिकारी) ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की, जिसे बाद में न्यायालय ने अनुमति दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि अधिकरण द्वारा पारित आदेश, हालाँकि, COI के अनुच्छेद 227 के तहत चुनौती के लिये अलग से उत्तरदायी होते हैं। भरण-पोषण अधिकरण जैसे अधिकरण के आदेश के विपरीत, पीड़ित पक्ष के पास याचिका में मांगी गए अनुतोष की प्रकृति के आधार पर COI के अनुच्छेद 226 या अनुच्छेद 227 को लागू करने का विकल्प होता है।
इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?
माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007
- यह विधान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है।
- यह संविधान के तहत गारंटीकृत और मान्यता प्राप्त माता-पिता तथा वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण तथा कल्याण के लिये और उससे जुड़े या उसके आकस्मिक मामलों के लिये अधिक प्रभावी उपबंधों का प्रावधान करता है।
- इस अधिनियम की धारा 23 कुछ परिस्थितियों में संपत्ति के अंतरण को शून्य करने से संबंधित है।
COI का अनुच्छेद 226:
- अनुच्छेद 226 संविधान के भाग V के तहत निहित है जो उच्च न्यायालय को रिट जारी करने का अधिकार देता है।
- COI के अनुच्छेद 226(1) में कहा गया है कि प्रत्येक उच्च न्यायालय के पास मौलिक अधिकारों को लागू करने के उद्देश्य से और अन्य के लिये किसी भी व्यक्ति या किसी सरकार को बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा एवं उत्प्रेषण सहित आदेश या रिट जारी करने की शक्ति होगी।
- अनुच्छेद 226(2) में कहा गया है कि उच्च न्यायालय के पास किसी भी व्यक्ति, या सरकार, या प्राधिकारी को रिट या आदेश जारी करने की शक्ति होती है-
- इसके अधिकारिता में स्थित या
- अपनी स्थानीय अधिकारिता के बाहर यदि कार्रवाई के कारण की परिस्थितियाँ पूर्णतः या आंशिक रूप से उसके क्षेत्रीय अधिकारिता के भीतर उत्पन्न होती हैं।
- अनुच्छेद 226(3) में कहा गया है कि जब उच्च न्यायालय द्वारा किसी पक्षकार के विरुद्ध व्यादेश, स्थगन या अन्य माध्यम से कोई अंतरिम आदेश पारित किया जाता है तो वह पक्षकार ऐसे आदेश को रद्द कराने के लिये न्यायालय में आवेदन कर सकता है और ऐसे आवेदन का निपटारा न्यायालय द्वारा दो सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाना चाहिये।
- अनुच्छेद 226(4) में कहा गया है कि इस अनुच्छेद द्वारा उच्च न्यायालय को दी गई शक्ति से अनुच्छेद 32 के खंड (2) द्वारा उच्चतम न्यायालय को दिये गए अधिकार कम नहीं होने चाहिये।
- यह अनुच्छेद सरकार सहित किसी भी व्यक्ति या प्राधिकारी के विरुद्ध जारी किया जा सकता है।
- यह महज़ एक संवैधानिक अधिकार है, मौलिक अधिकार नहीं है और इसे आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 226 मौलिक अधिकारों और विवेकाधीन प्रकृति के मामले में अनिवार्य प्रकृति का होता है जब इसे "किसी अन्य उद्देश्य" के लिये जारी किया जाता है।
- यह न केवल मौलिक अधिकारों, बल्कि अन्य कानूनी अधिकारों को भी लागू करता है।
- इस अनुच्छेद के अंतर्गत निम्नलिखित रिट उपलब्ध हैं:
- बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट
- परमादेश की रिट
- उत्प्रेषण की रिट
- प्रतिषेध की रिट
- अधिकार पृच्छा की रिट
COI का अनुच्छेद 227:
यह अनुच्छेद संविधान के भाग V के तहत निहित है जो सभी न्यायालयों के अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, सभी न्यायालयों और अधिकरणों का अधीक्षण करेगा।
(2) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उच्च न्यायालय-
(a) ऐसे न्यायालयों से विवरणी मंगा सकेगा;
(b) ऐसे न्यायालयों की पद्धति और कार्यवाहियों के विनियमन के लिये साधारण नियम एवं प्रारूप बना सकेगा, और निकाल सकेगा तथा विहित कर सकेगा; और
(c) किन्हीं ऐसे न्यायालयों के अधिकारियों द्वारा रखी जाने वाली पुस्तकों, प्रविष्टियों और लेखाओं के प्रारूप विहित कर सकेगा।
(3) उच्च न्यायालय उन फीसों की सारणियाँ भी स्थिर कर सकेगा जो ऐसे न्यायालयों के शैरिफ को तथा सभी लिपिकों और अधिकारियों को तथा उनमें विधि-व्यवसाय करने वाले अटर्नियों, अधिवक्ताओं तथा लीडरों को अनुज्ञेय होंगी।
परंतु खंड (2) या (3) के अधीन बनाए गए कोई नियम, विहित किये गए कोई प्रारूप या की गई कोई सारणी तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के उपबंध से असंगत नहीं होगी और इनके लिये राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन की अपेक्षा होगी।
(4) इस अनुच्छेद की कोई बात उच्च न्यायालय को सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिक रण पर अधीक्षण की शक्तियाँ देने वाली नहीं समझी जाएगी।