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आपराधिक कानून

महिलाओं की लज्जा-भंग

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 06-Jun-2024

सुनील एन. एस. बनाम केरल राज्य

"याचिकाकर्त्ता द्वारा बार-बार जमानत आवेदन दायर करने, अलग-अलग अधिवक्ताओं को नियुक्त करने और उच्चतम न्यायालय में अपील करने के आचरण से पता चलता है कि वह आर्थिक रूप से सक्षम है या उसे सात वर्ष से अभिरक्षा में रहने के बावजूद दूसरों से समर्थन प्राप्त है”।

न्यायमूर्ति पी. वी. कुन्हिकृष्णन

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?    

न्यायमूर्ति पी. वी. कुन्हिकृष्णन की पीठ ने सुनील एन. एस. बनाम केरल राज्य मामले में आरोपी की ज़मानत याचिका खारिज कर दी, जिसे “सिनेमा अभिनेत्री पर हमला” मामले के रूप में जाना जाता है।

मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • याचिकाकर्त्ता, श्री सुनील एन. एस. एक आपराधिक मामले में प्रथम आरोपी हैं। यह मामला लोकप्रिय रूप से “सिनेमा अभिनेत्री के विरुद्ध हमला” मामले के रूप में जाना जाता है।
  • अभियोजन पक्ष का आरोप है कि याचिकाकर्त्ता ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर एक अन्य फिल्म स्टार (8वें आरोपी) से जुड़ी आपराधिक षड्यंत्र के अंतर्गत एक पीड़िता (एक फिल्म स्टार) का चलती कार में अपहरण कर लिया तथा उसका यौन उत्पीड़न किया।
  • याचिकाकर्त्ता 23 फरवरी 2017 से अभिरक्षा में है तथा उच्चतम न्यायालय की निगरानी में एर्नाकुलम में प्रिंसिपल सेशंस कोर्ट में अभियोजन चलाया जा रहा है।
  • याचिकाकर्त्ता ने उच्च न्यायालय में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 439 के अधीन कई ज़मानत याचिकाएँ दायर कीं तथा उच्चतम न्यायालय में दो अपीलें दायर कीं, जिनमें से सभी खारिज कर दी गईं।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • उच्च न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्त्ता पिछले ज़मानत आवेदनों के खारिज होने के बाद लगातार ज़मानत आवेदन दायर करने को उचित ठहराने के लिये परिस्थितियों में कोई बदलाव सिद्ध करने में विफल रहा है।
  • उच्च न्यायालय ने वर्तमान (10वीं) ज़मानत अर्जी को तुच्छ बताते हुए खारिज कर दिया, क्योंकि यह पिछली ज़मानत अर्जी के खारिज होने के तीन दिन बाद ही परिस्थितियों में कोई बदलाव किये बिना दायर की गई थी।
  • उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता पर बार-बार एवं संकीर्ण ज़मानत आवेदन दायर करने के लिये 25,000 रुपए का अर्थदण्ड लगाया, जो एक महीने के अंदर केरल विधिक सेवा प्राधिकरण को देय होगा।
  • उच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने एवं न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिये ऐसे मामलों में अर्थदण्ड लगाने के लिये CrPC की धारा 482 के अधीन उसके पास पर्याप्त शक्ति है।
  • उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता द्वारा बार-बार ज़मानत आवेदन दायर करना, अलग-अलग अधिवक्ता नियुक्त करना तथा उच्चतम न्यायालय में अपील करना, यह दर्शाता है कि सात वर्षों से अभिरक्षा में रहने के बावजूद वह आर्थिक रूप से सक्षम है या उसको दूसरों से समर्थन प्राप्त है।

हमला क्या है?

  • परिचय:
    • IPC की धारा 351 एवं भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 130 हमले को किसी व्यक्ति द्वारा किये गए कृत्य के रूप में परिभाषित करती है, जो यह जानते हुए या आशय रखते हुए कि यह मौजूद किसी अन्य व्यक्ति के मन में यह आशंका उत्पन्न कर सकता है, संकेत या तैयारी करता है कि वह व्यक्ति उनके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग करने वाला है।
    • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि केवल शब्दों से हमला नहीं माना जा सकता।
      • हालाँकि किसी व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त शब्द उसके संकेत या तैयारियों को ऐसा निहितार्थ दे सकते हैं, जो हमला माना जा सकता है।
  • आवश्यक तत्त्व:
    • आशय या तैयारी: अभियुक्त को आपराधिक बल का उपयोग करने के लिये संकेत या तैयारी करनी चाहिये।
    • पीड़ित की उपस्थिति: ऐसा संकेत या तैयारी उस व्यक्ति की उपस्थिति में की जानी चाहिये जिसके लिये यह अभिप्रेत है।
    • आशय या ज्ञान: अभियुक्त को यह आशय या ज्ञान होना चाहिये कि उनके संकेत या तैयारी से पीड़ित को यह भय लगने की संभावना है कि उनके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग किया जाएगा।
    • पीड़ित की आशंका: पीड़ित को वास्तव में यह भय होना चाहिये कि उनके विरुद्ध आपराधिक बल का प्रयोग किया जाएगा।
  • हमले के लिये दण्ड:
    • IPC की धारा 352 एवं BNS की धारा 131 गंभीर उकसावे के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से हमला या आपराधिक बल के प्रयोग के लिये दण्ड का प्रावधान करती है।
    • यदि हमला गंभीर एवं अचानक उकसावे के बिना किया जाता है, तो अपराधी को निम्नलिखित सज़ा दी जा सकती है:
      • तीन महीने तक की अवधि के लिये किसी भी प्रकार का कारावास, या
      • पाँच सौ रुपए तक का ज़ुर्माना, या (BNS के अधीन अर्थदण्ड एक हज़ार रुपए है)
      • कारावास एवं अर्थदण्ड दोनों।
    • हमला करने का अपराध संज्ञेय, ज़मानती एवं किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। इसके अतिरिक्त, इसे शमनीय अपराध के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

महिलाओं की लज्जा भंग करने से संबंधित विधियाँ क्या हैं?

  • परिचय:
    • IPC की धारा 354 एवं BNS की धारा 74, हमला या आपराधिक बल के प्रयोग द्वारा किसी महिला की लज्जा भंग करने के अपराध से संबंधित है।
    • इसका उद्देश्य महिलाओं की गरिमा की रक्षा करना और लोक नैतिकता एवं सभ्य व्यवहार की रक्षा करना है।
  • लज्जा की परिभाषा:
    • “लज्जा” को IPC में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन इसका तात्पर्य व्यवहार, भाषण एवं आचरण में स्त्री की शालीनता, वाणी और संयम से है।
    • एक महिला की लज्जा उसके लिंग एवं स्त्रीत्व से आंतरिक रूप से जुड़ी होती है, चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो।
  • लज्जा भंग करना:
    • लज्जा भंग करने में ऐसे कार्य सम्मिलित हैं जो आपत्तिजनक, अभद्र या महिला की लज्जा एवं नैतिकता की भावना को अपमानित करने वाले हैं।
    • इसमें अनुचित तरीके से स्पर्श, बलपूर्वक कपड़े उतारना, अभद्र संकेत या शील का अपमान करने के आशय से की गई टिप्पणियाँ शामिल हैं।
  • आवश्यक तत्त्व:
    • किसी महिला के विरुद्ध हमला या आपराधिक बल का प्रयोग।
    • ऐसा आशय या ज्ञान कि ऐसे कृत्यों से उसकी लज्जा भंग होने की संभावना है।
  • आशय बनाम प्रतिक्रिया:
    • अपराध का आधार आरोपी का दुराशय है, पीड़िता की प्रतिक्रिया नहीं।
    • यदि आरोपी की दुराशय अपेक्षित थी, तो महिला का आक्रोश न दिखाना अप्रासंगिक है।
  • दण्ड:
    • 1-5 वर्ष के कारावास एवं ज़ुर्माने से दण्डनीय।
    • यह एक संज्ञेय, गैर-ज़मानती एवं अशमनीय अपराध है, जिसका विचारण किसी भी मजिस्ट्रेट के समक्ष किया जा सकता है।

महिलाओं की लज्जा भंग करने से संबंधित मामले क्या हैं?

  • पंजाब राज्य बनाम मेजर सिंह (1967):
    • अंतिम परीक्षण यह है कि क्या यह कृत्य किसी महिला की शालीनता की भावना को आहत में सक्षम है।
    • एक महिला जन्म से ही अपने लिंग के आधार पर शालीन होती है।
    • लज्जा भंग का निर्धारण करने में पीड़ित की उम्र अप्रासंगिक है।
  • तारकेश्वर साहू बनाम बिहार राज्य (2O06):
    • शील एक ऐसा गुण है जो महिलाओं के वर्ग से संबद्ध है।
    • पीड़ित की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि आरोपी का दुराशय महत्त्वपूर्ण है।
    • भले ही पीड़ित को आक्रोश का अहसास न हो (सोते समय, अप्राप्तवय होने पर, आदि), अपराध दण्डनीय है।
  • केरल राज्य बनाम हम्सा (1988):
    • लज्जा भंग करना समाज के रीति-रिवाज़ों एवं प्रथाओं पर निर्भर करता है। यहाँ तक ​​कि इस तरह के आशय से किये गए संकेत भी IPC की धारा 354 के अधीन अपराध सिद्ध हो सकते हैं।
  • राम मेहर बनाम हरियाणा राज्य (1998):
    • किसी महिला को पकड़ना, उसे एकांत स्थान पर ले जाना, तथा उसके कपड़े उतारने का प्रयास करना, लज्जा भंग करने के समान है।