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PUC प्रमाण-पत्र

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 30-Jul-2024

एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ एवं अन्य

“थर्ड पार्टी वाहन बीमा प्राप्त करने के लिये प्रदूषण नियंत्रण (PUC) प्रमाण-पत्र अब अनिवार्य आवश्यकता नहीं है”

न्यायमूर्ति ए.एस. ओका और ए.जी. मसीह 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने जनरल इंश्योरेंस काउंसिल की चिंताओं का उत्तर देते हुए थर्ड पार्टी वाहन बीमा के लिये प्रदूषण नियंत्रण (PUC) प्रमाण-पत्र की आवश्यकता वाले वर्ष 2017 के आदेश को स्थगित कर दिया है। महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि यह आवश्यकता दुर्घटना पीड़ितों को क्षतिपूर्ति प्राप्त करने में बाधा बन सकती है यदि वाहन मालिक, जो प्रायः भुगतान करने में असमर्थ होते हैं, सीधे उत्तरदायी ठहराए जाते हैं।

एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला जनरल इंश्योरेंस काउंसिल द्वारा 10 अगस्त 2017 के उच्चतम न्यायालय के आदेश के संबंध में दायर आवेदन से उत्पन्न हुआ है।
  • वर्ष 2017 के आदेश में वार्षिक वाहन बीमा को प्रदूषण नियंत्रण (PUC) प्रमाण-पत्रों के साथ जोड़ने के लिये 100% अनुपालन अनिवार्य किया गया था।
    • यह पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) की रिपोर्ट संख्या 73 पर आधारित था।
  • जनरल इंश्योरेंस काउंसिल का प्रतिनिधित्व कर रहे महाधिवक्ता ने बताया कि इस निर्देश के कारण 55% वाहन मालिक, थर्ड पार्टी बीमा नहीं ले रहे हैं।
    • इससे दुर्घटना के पीड़ितों को क्षतिपूर्ति प्राप्त होना कठिन हो रहा था।
  • उच्चतम न्यायालय ने अपनी प्रारंभिक सुनवाई में PUC अनुपालन सुनिश्चित करने और सभी वाहनों के लिये थर्ड पार्टी बीमा बनाए रखने के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को मान्यता दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने प्रथम दृष्टया पाया कि वाहनों में प्रदूषण नियंत्रण (PUC) मानदण्डों का अनुपालन सुनिश्चित करने तथा सभी वाहनों के लिये अनिवार्य थर्ड पार्टी बीमा बनाए रखने के बीच सही संतुलन बनाया जाना चाहिये।
  • न्यायालय ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उसके वर्ष 2017 के आदेश के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप लगभग 55% वाहनों ने थर्ड पार्टी बीमा प्राप्त नहीं किया, जिससे दुर्घटना पीड़ितों के क्षतिपूर्ति पाने के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • न्यायालय ने माना कि न तो मोटर वाहन अधिनियम, 1988 और न ही इसके अंतर्गत बनाए गए अन्य कोई वैधानिक अधिनियम या नियम, बीमा कंपनियों को वाहन बीमा पॉलिसी नवीनीकरण के लिये वैध PUC प्रमाण-पत्र को पूर्व शर्त के रूप में अनिवार्य बनाते हैं।
  • न्यायालय ने माना कि 2017 के निर्देश का कड़ाई से क्रियान्वयन "विनाशकारी परिणाम" उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में वाहनों का बिना थर्ड पार्टी बीमा के परिचालन कर सकते हैं।
  • न्यायालय ने माना कि वर्ष 2017 के आदेश में लगाई गई मूल शर्त का उद्देश्य वैध PUC प्रमाण-पत्र सुनिश्चित करके प्रदूषण को नियंत्रित करना था, परंतु इससे संयोगवश ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई, जो वाहन दुर्घटनाओं के मामले में क्षतिपूर्ति मांगने के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकती थी।
  • न्यायालय ने कहा कि दुर्घटना पीड़ितों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से वाहन मालिकों से क्षतिपूर्ति मांगने के लिये कहना, जो प्रायः भुगतान करने में असमर्थ होते हैं, न्याय और समता के सिद्धांतों के विरुद्ध होगा।
  • न्यायालय ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं के समाधान के लिये एक प्रभावी समाधान की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जिसके कारण वर्ष 2017 में मूल आदेश जारी किया गया था तथा दिल्ली-NCR क्षेत्र में वाहनों पर नज़र रखने के लिये रिमोट सेंसिंग तकनीक के उपयोग का सुझाव दिया गया था।
  • न्यायालय ने अपने विवेक से पर्यावरण संरक्षण की भावना को बनाए रखते हुए अनपेक्षित परिणामों को सुधारने के लिये अपने पिछले आदेश को संशोधित करना आवश्यक समझा।
  • न्यायालय ने सभी वाहनों के लिये पर्याप्त बीमा कवरेज बनाए रखने में पर्यावरणीय चिंताओं और जनहित के बीच संतुलन बनाए रखने के महत्त्व को दोहराया।
  • न्यायालय ने न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) और विद्वान महाधिवक्ता को ऐसे समाधान प्रस्तावित करने का निर्देश दिया, जो प्रदूषण नियंत्रण और बीमा अनुपालन दोनों को संबोधित करते हुए वर्ष 2017 के आदेश को प्रभावी ढंग से संशोधित कर सकें।

PUC क्या है?

  • PUC प्रमाण-पत्र एक आधिकारिक दस्तावेज़ है जो प्रमाणित करता है कि वाहन द्वारा उत्सर्जन निर्धारित पर्यावरणीय सीमाओं के अनुरूप है।
  • कोई भी वर्दीधारी प्राधिकृत पुलिस अधिकारी, ड्राइवर से वैध PUC प्रमाण-पत्र दिखाने का अनुरोध कर सकता है।
  • PUC प्रमाण-पत्र उन वाहनों को जारी किये जाते हैं जो परीक्षण के बाद निर्धारित उत्सर्जन मानदण्डों को पूरा करते हैं।
  • मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने सभी मोटर वाहनों के लिये PUC प्रमाण-पत्र अनिवार्य कर दिया है।
  • PUC प्रमाण-पत्र में वाहन का लाइसेंस प्लेट नंबर, उत्सर्जन परीक्षण परिणाम, परीक्षण तिथि और समाप्ति तिथि शामिल होती है।
  • केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 के तहत PUC प्रामाणीकरण विधिक रूप से आवश्यक है।
  • PUC प्रमाणन का प्राथमिक उद्देश्य वाहन प्रदूषण को नियंत्रित करना और कम करना है।
  • PUC प्रमाण-पत्र सामान्यतः वाहन के प्रकार एवं उम्र के आधार पर 6 महीने से 1 वर्ष तक वैध होते हैं।
  • PUC परीक्षण, वाहन द्वारा किये गये निकास में कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे प्रदूषकों के स्तर को मापते हैं।
  • केवल अधिकृत परीक्षण केंद्र ही PUC परीक्षण कर सकते हैं और प्रमाण-पत्र जारी कर सकते हैं।
  • PUC आवश्यकताओं का अनुपालन न करने पर यातायात पुलिस या परिवहन प्राधिकरण द्वारा अर्थदण्ड लगाया जा सकता है।
  • PUC प्रणाली अप्रत्यक्ष रूप से उत्सर्जन मानकों को पूरा करने के लिये उचित वाहन रखरखाव को प्रोत्साहित करती है।
  • कुछ भारतीय राज्यों ने इस प्रक्रिया को आधुनिक बनाने और कागज़ के उपयोग को कम करने के लिये ई-PUC प्रमाण-पत्र आरंभ किये हैं।
  • नियमित PUC जाँच का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों के वायु प्रदूषण में वाहनों के अत्यधिक योगदान को कम करना है।

PUC प्रमाण-पत्र किस अधिनियम द्वारा नियंत्रित होता है?

  • मोटर यान अधिनियम, 1988: यह प्राथमिक कानून है जो भारत में मोटर वाहनों को विनियमित करने के लिये रूपरेखा प्रदान करता है।
  • केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989: मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अंतर्गत तैयार किये गए ये नियम PUC प्रमाण-पत्रों के संबंध में विशिष्ट विनियम प्रदान करते हैं।
  • मोटर यान (संशोधन) अधिनियम, 2019: इस संशोधन ने PUC आवश्यकताओं को सुदृढ किया और गैर-अनुपालन के लिये दण्ड बढ़ा दिया।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: यह अधिनियम केंद्र सरकार को पर्यावरण की रक्षा और सुधार के लिये उपाय करने का अधिकार देता है, जिसमें वाहनों से होने वाले उत्सर्जन के लिये मानक निर्धारित करना भी शामिल है।
  • और, विभिन्न राज्य सरकारों ने इन केंद्रीय विधानों द्वारा प्रदान किये गए ढाँचे के भीतर काम करते हुए, अपने अधिकार क्षेत्र में PUC मानदण्डों को लागू करने और लागू करने के लिये अपने स्वयं के नियम और विनियम बनाए हैं।

PUC का अनुपालन न करने पर क्या अर्थदण्ड है?

  • भारत में प्रदूषण नियंत्रण (PUC) प्रमाणन आवश्यकताओं का पालन न करने पर अर्थदण्ड मुख्य रूप से मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा नियंत्रित होता है। मूल अर्थदण्ड: वैध PUC प्रमाण-पत्र के बिना वाहन चलाने पर अर्थदण्ड 10,000 रुपए है।
  • बार-बार अपराध करने पर: लगातार अपराध करने पर अर्थदण्ड 10,000 रुपए रहेगा।
  • अपराधों का शमन: कई राज्यों में यातायात पुलिस को मौके पर ही अपराध का शमन करने का अधिकार है।
  • अतिरिक्त दण्ड: कुछ मामलों में, अधिकारी वाहन को ज़ब्त भी कर सकते हैं या वाहन का पंजीकरण प्रमाण-पत्र निलंबित/रद्द भी कर सकते हैं।
  • अपराधों की गंभीरता में वृद्धि: ये अर्थदण्ड पहले अपराध करने वालों के लिये 1,000 रुपए और बार-बार अपराध करने वालों के लिये 2,000 रुपए के अर्थदण्ड से काफी अधिक हैं।
  • एक समान अनुप्रयोग: केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार, भारत के सभी राज्यों में अर्थदण्ड की राशि एक समान है।
  • राज्य स्तर पर भिन्नताएँ: कुछ राज्यों में कार्यान्वयन में मामूली भिन्नताएँ या अतिरिक्त स्थानीय दण्ड हो सकते हैं।

थर्ड पार्टी बीमा क्या है?

सांविधिक आधार और दायित्व

  • मोटर वाहन अधिनियम, 1988, मोटर वाहन दुर्घटनाओं में थर्ड पार्टी को हुए नुकसान के लिये मुआवज़ा देने का आदेश देता है।
  • बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 32-D, मोटर वाहनों के लिये थर्ड पार्टी के जोखिम बीमा के संबंध में बीमाकर्त्ताओं पर दायित्व डालती है।
  • मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 की धारा 146 के अनुसार, वाहन मालिकों के लिये सार्वजनिक स्थान पर संचालित किसी भी वाहन के लिये वैध थर्ड पार्टी बीमा रखना अनिवार्य है।

परिभाषा और दायरा

  • मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत परिभाषित थर्ड पार्टी बीमा, देयता बीमा का एक रूप है, जिसमें एक अधिकृत बीमाकर्त्ता किसी थर्ड पार्टी को हुई चोट या क्षति के लिये विधिक देयता के विरुद्ध बीमाधारक को क्षतिपूर्ति करने के लिये सहमत होता है।
  • मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 की धारा 145(i) के अनुसार "थर्ड पार्टी" शब्द में सरकार, चालक और परिवहन वाहन पर कोई अन्य सहकर्मी शामिल है।

मुख्य विशेषताएँ

  • यह पॉलिसी बीमाधारक को लगी चोटों के लिये कवरेज नहीं देती है, बल्कि बीमाधारक के कृत्य से घायल हुए लोगों के लिये कवरेज देती है।
  • पॉलिसी का लाभार्थी, घायल के रूप में तीसरा पक्ष है, पॉलिसीधारक नहीं।
  • थर्ड पार्टी के बीमा के लिये प्रीमियम दरें बीमित संपत्ति के मूल्य पर निर्भर नहीं हैं।

थर्ड पार्टी के अधिकार

  • थर्ड पार्टी को बीमाधारक की बीमा स्थिति के विषय में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।
  • बीमाधारक के विरुद्ध किसी भी निर्णय या पंचाट, पॉलिसी में विधिविरुद्ध प्रतिबंध या बीमाकर्त्ता और बीमाधारक के बीच करार से थर्ड पार्टी के अधिकार अप्रभावित रहते हैं।
  • बीमाधारक के दिवालिया होने की स्थिति में, पॉलिसी के अंतर्गत बीमाकर्त्ता के विरुद्ध उनके अधिकार थर्ड पार्टी को हस्तांतरित और निहित हो जाएंगे, जिसके लिये देयता थी।

बीमाकर्त्ता के बचाव पर सीमाएँ:

  • बीमाकर्त्ताओं को अधिनियम में उल्लिखित विशिष्ट बचावों तक ही सीमित रखा गया है, जिनमें शामिल हैं:
    • उचित परमिट के बिना वाहन को किराये और उपचार के लिये इस्तेमाल करना।
    • रेसिंग या स्पीड टेस्टिंग के लिये वाहन का इस्तेमाल करना।
    • परमिट द्वारा अनुमति न दिये गए परिवहन वाहन का इस्तेमाल करना।
    • वैध लाइसेंस के बिना या लाइसेंस रखने से अयोग्य चालक द्वारा वाहन चलाना।
    • महत्त्वपूर्ण तथ्यों का प्रकटन न करने के कारण पॉलिसी रद्द कर दी गई।
  • हालिया विधायी संशोधन
    • नई कारों के लिये तीन वर्ष की थर्ड पार्टी बीमा पॉलिसी एवं नए दोपहिया वाहनों के लिये पाँच वर्ष की पॉलिसी अनिवार्य कर दी गई है।
    • बीमाकर्त्ता की देयता पर सीमा हटाई गई।
    • हिट-एंड-रन मामलों में मृत्यु की स्थिति में न्यूनतम क्षतिपूर्ति बढ़ाकर 2 लाख रुपए एवं गंभीर चोट के लिये 50,000 रुपए किया गया।
    • 5 लाख रुपए तक के दावों के लिये 30 दिन की निपटान अवधि के साथ सरलीकृत दावा प्रक्रिया प्रावधानित की गई है।
  • संवैधानिक निहितार्थ
    • संविधान के अनुच्छेद 12 की परिधि में आने वाली बीमा कंपनियों को "राज्य" संस्थाएँ माना जाता है।
    • इस प्रकार, वे संविधान के अनुच्छेद 14 से बंधे हुए हैं तथा राज्य द्वारा संचालित वाहनों के लिये थर्ड पार्टी के बीमा कवरेज में भेदभाव नहीं कर सकते हैं या मना नहीं कर सकते हैं।

थर्ड पार्टी बीमा से संबंधित प्रासंगिक प्रावधान

  • मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अध्याय XI के अंतर्गत थर्ड पार्टी बीमा की अवधारणा- थर्ड पार्टी रिस्क के विरुद्ध मोटर वाहनों का बीमा, धारा 145 से 164 तक प्रावधानित है।
  • 2019 के अधिनियम के अंतर्गत अध्याय XI में शामिल किये गए नए प्रावधानों में शामिल हैं:
    • धारा 149- बीमा कंपनी द्वारा निपटान एवं उसकी प्रक्रिया
    • धारा 159- दुर्घटना के संबंध में दी जाने वाली सूचना
    • धारा 162- स्वर्णिम घंटे के लिये योजना
    • धारा 164- मृत्यु या गंभीर चोट के मामले में क्षतिपूर्ति का भुगतान
    • धारा 164(A)- दावेदारों के लिये अंतरिम राहत की योजना
    • धारा 164(B)- मोटर वाहन दुर्घटना निधि
    • धारा 164(D)- राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति

निर्णयज विधियाँ

के. गोपाल कृष्णन बनाम शंकर नारायणन (1968):

  • मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि स्कूटर स्वामी बिना किसी शुल्क के पीछे बैठे व्यक्ति के दावों को कवर करने के लिये थर्ड पार्टी रिस्क पॉलिसी क्रय नहीं कर सकता।
  • बीमा प्रदाता ऐसे पीछे बैठे व्यक्ति को लगी चोटों के लिये उत्तरदायी नहीं है, जब तक कि स्कूटर स्वामी विशेष रूप से उन जोखिमों को कवर करने वाली पॉलिसी प्राप्त न कर ले।
  • RTO के साथ पंजीकृत एवं बीमा पॉलिसी द्वारा कवर किये गए निजी वाहक को किराये पर या क्षतिपूर्ति के लिये यात्रियों या माल का परिवहन करने से प्रतिबंधित किया गया है।
  • यदि यात्रियों को किराये पर ले जाने के लिये निजी कार का उपयोग किया जाता है तथा दुर्घटना होती है, तो बीमा प्रदाता बीमित व्यक्ति की निजी कार का उपयोग करने वाले पक्ष के सदस्यों के दावों के लिये उत्तरदायी नहीं है।

एस. राजसीकरन बनाम भारत संघ (UOI) एवं अन्य (2014):

  • यह मामला एक आर्थोपेडिक सर्जन द्वारा प्रारंभ किया गया था, जो सड़क दुर्घटनाओं को रोकने एवं दुर्घटना के बाद की देखभाल में सुधार के लिये अधिक प्रभावी विधि की मांग कर रहा था।
  • याचिकाकर्त्ता ने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत एक रिट याचिका दायर की, जिसमें मौजूदा विधियों को लागू करने तथा नए विधायी उपायों को लागू करने में न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग की गई।
  • न्यायालय ने भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) को निर्देश दिया कि वह सामान्य बीमा कंपनियों को नई कारों के लिये केवल तीन वर्ष की मोटर थर्ड-पार्टी बीमा पॉलिसी प्रदान करने के लिये बाध्य करे।
  • न्यायालय ने नए दोपहिया वाहनों के लिये पाँच वर्ष की मोटर थर्ड-पार्टी बीमा पॉलिसी भी अनिवार्य कर दी है, जो 1 सितंबर, 2018 से प्रभावी होगी।
  • इस निर्णय में स्टैंड-अलोन स्वास्थ्य बीमा कंपनियों एवं विशेष बीमा कंपनियों को अनिवार्यता से बाहर रखा गया है।

गोविंदन बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, 1999:

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विधि के अंतर्गत थर्ड पार्टी बीमा अनिवार्य है।
  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि बीमा पॉलिसी में किसी भी खंड द्वारा थर्ड पार्टी बीमा की अनिवार्य प्रकृति को खत्म नहीं किया जाना चाहिये।
  • यह निर्णय बीमा पॉलिसियों में संविदात्मक शर्तों पर थर्ड पार्टी बीमा के लिये सांविधिक आवश्यकताओं की प्रधानता को पुष्ट करता है।
  • यह निर्णय दुर्घटना पीड़ितों के हितों की रक्षा करने एवं क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करने में थर्ड पार्टी बीमा के महत्त्व पर ज़ोर देता है।