प्रबीर पुरकायस्थ निर्णय का पूर्वव्यापी प्रभाव
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प्रबीर पुरकायस्थ निर्णय का पूर्वव्यापी प्रभाव

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 23-Jul-2024

साहिर ई. पी. बनाम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी

"इस मामले के उपरांत, धारा 43B (1) में निहित प्रावधान, आरोपी को गिरफ्तारी के आधार के विषय में लिखित रूप से सूचित करने वाले प्रावधान के रूप में समझा जाएगा।"

न्यायमूर्ति पी. बी. सुरेश एवं न्यायमूर्ति एम. बी. स्नेहलता

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने साहिर ई.पी. बनाम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी के मामले में माना है कि वैध गिरफ्तारी हेतु सभी न्यायालयों के लिये गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार बताना अनिवार्य है।

साहिर ई.पी. बनाम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में याचिकाकर्त्ता विधि विरुद्ध क्रिया कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) मामले का चौथा आरोपी था।
  • द्वितीय आरोपी को शरण देने के कारण याचिकाकर्त्ता द्वारा प्रस्तुत ज़मानत के आवेदन को विशेष न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया था।
  • दूसरा आरोपी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) का सक्रिय सदस्य था, वह इंडियन फ्रेटरनिटी फोरम (IFF) से भी जुड़ा था।
  • पहले आरोपी ने दूसरे आरोपी के साथ मिलकर केरल में ISIS मॉड्यूल स्थापित किया तथा युवाओं की भर्ती की।
  • ये सभी आरोपी चौथे आरोपी के साथ मिलकर अपनी आतंकवादी गतिविधियों के लिये धन जुटाने के लिये विभिन्न आपराधिक गतिविधियों में शामिल थे।
  • वे भारत की अखंडता एवं राष्ट्रीय सुरक्षा को हानि पहुँचाने के लिये विभिन्न आतंकवादी गतिविधियों की योजना बना रहे थे।
  • याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि उसे इस तथ्य की कोई सूचना नहीं थी कि दूसरा आरोपी आतंकवादी है तथा उसने कहा कि वह दूसरे आरोपी को स्टॉक ट्रेडिंग के लिये प्रशिक्षित कर रहा था।
  • याचिकाकर्त्ता ने केरल उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की क्योंकि उसे उसकी गिरफ्तारी के आधार नहीं बताए गए थे तथा इसलिये उसे प्रबीर पुरकायस्थ बनाम राज्य (NCT दिल्ली) (2024) के उदाहरण का हवाला देकर ज़मानत दी जानी चाहिये।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि यह सिद्ध नहीं किया जा सकता कि चौथा आरोपी दूसरे आरोपी को केवल इसलिये शरण दे रहा था क्योंकि उसका नाम अखबार में छपा था।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि UAPA की धारा 19 में स्पष्ट रूप से प्रावधानित है कि आरोपी को यह अवश्य ज्ञात होगा कि उसने एक आतंकवादी को शरण दिया है।
  • इन प्रावधानों से यह अनुमान लगाया गया कि यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्त्ता को दूसरे आरोपी के विषय में कोई सूचना नहीं थी, क्योंकि उसके साथ उसके परिचित हैं तथा ट्रायल कोर्ट में भी यह तथ्य मिथ्या सिद्ध नहीं हुई है।
  • उच्च न्यायालय ने UAPA की धारा 43D (5) के अधीन यह भी कहा कि यदि ज़मानत के आवेदन का विरोध किया जाता है तथा यह मानने के लिये उचित आधार हैं कि आरोप प्रथम दृष्टया सत्य है, तो विशेष न्यायालय ज़मानत नहीं देगी।
  • हालाँकि संवैधानिक न्यायालयों में ऐसा नहीं होता है जबकि वर्तमान मामले में आरोपी को हाल ही में दोषी ठहराया गया था तथा इसलिये संवैधानिक न्यायालय में अपील करने के लिये उसके मौलिक अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं है।
  • इसलिये न्यायालय ने याचिका को अपास्त कर दिया कि उसे प्रबीर पुरकायस्थ बनाम राज्य (NCT दिल्ली) (2024) के उदाहरण के अनुसार उसकी गिरफ्तारी के आधारों के विषय में सूचित नहीं किया गया था जबकि उसे गिरफ्तारी के आधारों के विषय में मौखिक रूप से सूचित किया गया था इसलिये गिरफ्तारी वैध थी।

प्रबीर पुरकायस्थ बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) का निर्णय क्या था?

संक्षिप्त तथ्य:

  • इस मामले में PS स्पेशल सेल, नई दिल्ली के अधिकारियों ने विधि विरुद्ध क्रिया कलाप (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) एवं भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धाराओं के अधीन दण्डनीय अपराधों के लिये दर्ज FIR के संबंध में अपीलकर्त्ता एवं कंपनी अर्थात् मेसर्स PPK न्यूज़क्लिक स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड (कंपनी) के आवासीय एवं कार्यालय परिसरों में व्यापक स्तर पर छापे मारे, जिसमें अपीलकर्त्ता निदेशक है।
  • अपीलकर्त्ता को उक्त FIR के संबंध में 3 अक्तूबर, 2023 को गिरफ्तार किया गया था तथा गिरफ्तारी का ज्ञापन कम्प्यूटरीकृत प्रारूप में था एवं इसमें अपीलकर्त्ता की गिरफ्तारी के आधार के विषय में कोई कॉलम नहीं है।
    • यही मामला मुख्य रूप से अपीलकर्त्ता पक्षकारों के मध्य विवाद का विषय है।
  • अपीलकर्त्ता को संबंधित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में प्रस्तुत किया गया तथा दिनांक 4 अक्तूबर, 2023 के आदेश के अधीन अपीलकर्त्ता को सात दिनों की पुलिस अभिरक्षा में भेज दिया गया।
  • अपीलकर्त्ता ने तुरंत दिल्ली उच्च न्यायालय में आपराधिक अपील दायर करके अपनी गिरफ्तारी तथा दी गई पुलिस अभिरक्षा की रिमांड पर प्रश्न किया, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय के संबंधित एकल न्यायाधीश ने अपास्त कर दिया।

न्यायालय का विश्लेषण एवं निष्कर्ष:

  • न्यायालय ने गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के विषय में सूचित करने के संबंध में PMLA की धारा 19(1) एवं UAPA की धारा 43B (1) में प्रयुक्त भाषा में कोई महत्त्वपूर्ण अंतर नहीं पाया।
  • न्यायालय ने कहा कि पंकज बंसल के मामले (जो PMLA से संबंधित था) में "ऐसी गिरफ्तारी के आधार के विषय में उसे सूचित करें" वाक्यांश की व्याख्या UAPA के अधीन मामलों पर भी लागू की जानी चाहिये।
  • न्यायालय ने कहा कि UAPA एवं PMLA दोनों में गिरफ्तारी के आधार के विषय में संचार के प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) के अंतर्गत प्रदान की गई संवैधानिक सुरक्षा में अपना स्रोत पाते हैं।
  • न्यायालय ने माना कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के विषय में लिखित रूप में सूचित करने के संबंध में पंकज बंसल के मामले में निर्धारित व्याख्या UAPA के अधीन गिरफ्तार व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होनी चाहिये।
  • न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि PMLA एवं UAPA के समग्र प्रावधानों में भिन्नताएँ हैं जो गिरफ्तारी के आधार को सूचित करने के वैधानिक आदेश को प्रभावित करेंगी।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि दोनों संविधियों में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 167 का एक सामान्य संशोधित अनुप्रयोग है।
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि पंकज बंसल के मामले में गिरफ्तार व्यक्ति को लिखित रूप में गिरफ्तारी के आधार की जानकारी देने के लिये निर्धारित सांविधिक अधिदेश की व्याख्या UAPA के अधीन गिरफ्तार व्यक्तियों पर "समान स्तर पर" लागू की जानी चाहिये।
  • न्यायालय ने कहा कि यह सिद्धांत उत्तरोत्तर लागू होगा न कि पूर्वव्यापी रूप से।

निष्कर्ष एवं आदेश:

  • गिरफ्तारी एवं रिमांड के आदेश को अवैध घोषित किया जाता है तथा उसे अपास्त किया जाता है।
  • अपीलकर्त्ता को अधीनस्थ न्यायालय की संतुष्टि के लिये ज़मानत बॉण्ड प्रस्तुत करने पर रिहा करने का निर्देश दिया गया।
  • अपील स्वीकार कर ली गई।

निर्णयज विधियाँ:

  • पंकज बंसल बनाम भारत संघ (2023): इस मामले में यह माना गया कि गिरफ्तारी के लिये आधार बताना अनिवार्य है, भले ही यह धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के प्रावधानों के अधीन स्पष्ट रूप से नहीं दिया गया हो।