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बच्चों का पितृत्व

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 30-Apr-2024

SS बनाम SR

“पिता द्वारा बच्चों के पितृत्व पर प्रश्न करना तथा पत्नी पर विवाहेतर संबंध के तर्कहीन आरोप लगाना पत्नी के प्रति मानसिक क्रूरता का कृत्य है”।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत एवं नीना बंसल कृष्णा

स्रोत:  दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में SS बनाम SR के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है किपिता द्वारा बच्चों के पितृत्व पर प्रश्न करना तथा पत्नी पर विवाहेतर संबंध के तर्कहीन आरोप लगाना पत्नी के प्रति मानसिक क्रूरता का कृत्य है।

 SS बनाम SR मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, प्रतिवादी और अपीलकर्त्ता का वर्ष 2005 में विवाह हुआ।
  • इसके बाद, प्रतिवादी ने प्रकटन किया कि वह गर्भवती नहीं थी तथा उसने केवल उसे विवाह हेतु विवश करने के लिये अपनी गर्भावस्था के बारे में मिथ्या दावे किये थे।
  • अपीलकर्त्ता ने आगे कहा है कि 24 जनवरी 2008 को बेटे के जन्म के बाद, अपीलकर्त्ता के माता-पिता ने प्रतिवादी को स्वीकार कर लिया तथा अपीलकर्त्ता एवं प्रतिवादी को अपने घर में शामिल होने के लिये कहा, लेकिन प्रतिवादी ने पूर्णतः अस्वीकार कर दिया
  • अपीलकर्त्ता ने दावा किया कि उसके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया तथा उसने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13 (1) (i-a) के अधीन क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद की मांग की।
  • कुटुंब न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश ने दोनों पक्षों के साक्ष्यों पर व्यापक रूप से विचार किया तथा निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्त्ता ने प्रतिवादी के चरित्र के विरुद्ध गंभीर आरोप लगाए थे, यहाँ तक कि, उसने अपने बच्चों के प्रति पितृत्व से भी मना कर दिया तथा अपने साक्ष्य में स्वीकार किया कि वह बच्चों के साथ नहीं रहना चाहता था।
  • कुटुंब न्यायालय ने विवाह विच्छेद की याचिका खारिज कर दी।
  • इससे व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की
  • उच्च न्यायालय ने अपील खारिज कर दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत एवं नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने विवाहित व्यक्ति के साथ अनैतिकता एवं अशोभनीय परिचय के घृणित आरोप व विवाहेतर संबंध के आरोप, चरित्र, सम्मान, प्रतिष्ठा, स्थिति के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर हमला है। जीवनसाथी का इस तरह के निंदनीय, पति-पत्नी पर लगाए गए विश्वासघात के निराधार आरोप और यहाँ तक कि बच्चों को भी नहीं छोड़ना, अपमान एवं क्रूरता का सबसे विकृत रूप होगा, जो अपीलकर्त्ता को विवाह-विच्छेद मांगने से वंचित करने के लिये पर्याप्त है।

HMA की धारा 13(1)(i-a) क्या है?

परिचय:

  • यह धारा विवाह विच्छेद के आधार के रूप में क्रूरता से संबंधित है।
  • HMA में 1976 के संशोधन से पहले, हिंदू विवाह अधिनियम के अधीन क्रूरता, विवाह-विच्छेद का दावा करने का आधार नहीं थी।
  • यह अधिनियम की धारा 10 के अधीन न्यायिक पृथक्करण का दावा करने का केवल एक आधार था।
  • वर्ष 1976 के संशोधन द्वारा क्रूरता को विवाह विच्छेद का आधार बना दिया गया।
  • इस अधिनियम में क्रूरता शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है
  • आम तौर पर, क्रूरता कोई भी ऐसा व्यवहार है, जो शारीरिक या मानसिक, जानबूझकर या अनजाने में होता है।

क्रूरता के प्रकार:

  • उच्चतम न्यायालय द्वारा कई निर्णयों में दिये गए विधि के अनुसार क्रूरता दो प्रकार की होती है।
    • शारीरिक क्रूरता- जीवनसाथी को पीड़ा पहुँचाने वाला हिंसक आचरण।
    • मानसिक क्रूरता- जीवनसाथी को किसी प्रकार का मानसिक तनाव होता है या उसे लगातार मानसिक पीड़ा से गुज़रना पड़ता है।

निर्णयज विधि:

  • शोभा रानी बनाम मधुकर रेड्डी (1988) में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि क्रूरता शब्द की कोई निश्चित परिभाषा नहीं हो सकती।
  • मायादेवी बनाम जगदीश प्रसाद (2007) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पति-पत्नी में से किसी एक द्वारा झेली गई किसी भी प्रकार की मानसिक क्रूरता के कारण न केवल महिला, बल्कि पुरुष भी क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद के लिये आवेदन कर सकते हैं