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सिविल कानून

भुगतान एवं वसूली सिद्धांत

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 06-Jun-2024

प्रदीप सिंह परिहार बनाम श्रीमती रुबीना एवं अन्य

यदि वाहन मालिक, चालक की योग्यता सत्यापित करने में विफल रहता है तो बीमाकर्त्ता उत्तरदायी नहीं होगा: भुगतान एवं वसूली सिद्धांत”।

न्यायमूर्ति अचल कुमार पालीवाल

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?    

प्रदीप सिंह परिहार बनाम श्रीमती रुबीना एवं अन्य के मामले में हाल ही में दिये गए निर्णय में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस तथ्य की पुनः पुष्टि की कि जब वाहन मालिक अपने द्वारा नियुक्त चालकों की योग्यता को सत्यापित करने में विफल रहते हैं तो बीमा कंपनियों को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

  • रीवा स्थित मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण के निर्णय को यथावत् रखते हुए उच्च न्यायालय ने 'भुगतान एवं वसूली' सिद्धांत पर आधारित अधिकरण के निर्णय का समर्थन किया।
  • यह निर्णय इस निष्कर्ष पर आधारित था कि घटना में शामिल चालक के पास उस समय वैध लाइसेंस नहीं था, इस प्रकार उक्त सिद्धांत के अंतर्गत बीमित पक्ष को उत्तरदायी माना गया।

प्रदीप सिंह परिहार बनाम श्रीमती रुबीना एवं अन्य की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अपीलकर्त्ता ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (MV Act) की धारा 173(1) के अंतर्गत यह अपील दायर की है।
  • रीवा में द्वितीय मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) द्वारा MACC संख्या 629/2018 में दिये गए 15 नवंबर 2022 के निर्णय को चुनौती दी गई।
  • अपीलकर्त्ता अधिकरण द्वारा "भुगतान एवं वसूली" के सिद्धांत को लागू करने को रद्द करना चाहता है।
  • अधिकरण ने भुगतान और वसूली के सिद्धांत को इस आधार पर लागू किया कि दुर्घटना के समय वाहन चलाते समय चालक के पास कोई वैध तथा प्रभावी ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था।
  • दुर्घटना की तिथि अर्थात् 24 जून 2017 को दोषी वाहन चालक के पास कोई वैध एवं प्रभावी ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था।
  • अपीलकर्त्ता ने तर्क दिया कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन के चालक ने उसे अपने ड्राइविंग लाइसेंस की फोटोकॉपी दी थी तथा उसे इस लाइसेंस का सत्यापन कराने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वह चालक, वाहन चलाने के लिये सक्षम था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति अचल कुमार पालीवाल ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण के निर्णय की पुष्टि की। अधिकरण ने प्रारंभ में यह निर्धारित किया था कि दुर्घटना के समय विचाराधीन वाहन के चालक के पास वैध और प्रभावी लाइसेंस नहीं था। परिणामस्वरूप, बीमाधारक को 'भुगतान एवं वसूली' सिद्धांत के तहत उत्तरदायी ठहराया गया।
  • न्यायालय ने कहा कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन के मालिक ने अपनी गवाही में कहीं भी उल्लेख/बयान नहीं दिया है तथा यह सिद्ध करने के लिये कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है कि वाहन के चालक के रूप में सुखनंदन को नियुक्त करने से पूर्व, उसने चालक सुखनंदन के कौशल को सत्यापित किया था तथा इस प्रकार स्वयं को संतुष्ट किया था कि सुखनंदन वाहन चलाने के लिये सक्षम है। न्यायालय ने माना कि अपीलकर्त्ता-बस ऑपरेटर पर दायित्व का भार उचित था क्योंकि ऋषि पाल सिंह बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य, 2022 में यह सिद्धांत निर्धारित किये गए थे।
  • न्यायालय ने यह भी पाया कि साक्षियों के बयान एवं विलेखों की जाँच के समय, यह प्रकट हुआ कि घटना में शामिल वाहन के चालक के पास दुर्घटना की तिथि यानी 24 जून, 2017 को वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था। यह भी ज्ञात हुआ कि चालक की नियुक्ति से पूर्व, वाहन मालिक ने कथित तौर पर 5 नवंबर, 2015 से 4 नवंबर, 2018 तक वैध ड्राइविंग लाइसेंस की एक छायाप्रति प्राप्त की थी, जिसे बाद में नकली पाया गया।
    • वाहन मालिक ने एकल न्यायाधीश की पीठ के समक्ष तर्क दिया कि प्रस्तुत ड्राइविंग लाइसेंस की प्रामाणिकता को प्रमाणित करने का कोई विधिक दायित्व उस पर नहीं है, उन्होंने ऋषि पाल सिंह मामले का उदाहरण दिया।
    • उच्च न्यायालय ने पाया कि मालिक या बीमाकृत बस ऑपरेटर ने ड्राइवर को नियुक्त करने से पूर्व उचित आवश्यकताओं का पालन नहीं किया।
  • मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 173(1) के अंतर्गत अपील अस्वीकार करने से पूर्व , जबलपुर में गठित पीठ ने इस दुर्घटना से पूर्व की घटना में शामिल प्रतिवादी चालक की नियुक्ति तिथि के संबंध में वाहन मालिक द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य की अनुपस्थिति पर भी गौर किया।

मोटर वाहन अधिनियम, 1988 क्या है?

परिचय:

  • मोटर वाहन अधिनियम के स्थान पर यह अधिनियम 1 जुलाई 1989 को लागू हुआ।
  • इस अधिनियम में चालकों/उप-चालकों के लाइसेंस, मोटर वाहनों के पंजीकरण, परमिट के माध्यम से मोटर वाहनों के नियंत्रण, राज्य परिवहन उपक्रमों से संबंधित विशेष प्रावधान, यातायात विनियमन, बीमा, दायित्व, अपराध एवं दण्ड आदि के संबंध में विधायी प्रावधानों का विस्तार से उल्लेख किया गया है।

मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 149(2):

  • बीमाकर्त्ता दायित्व से तभी बच सकता है जब यह सिद्ध हो जाए कि बीमित व्यक्ति ने लापरवाही या उचित देखभाल के अभाव के कारण बीमा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन किया है, जैसे कि अयोग्य या बिना लाइसेंस वाले चालक को नियुक्त करना।
  • बीमाकर्त्ताओं को उपलब्ध बचाव और मालिक द्वारा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन, दोनों को स्थापित करना होगा तथा साक्ष्य प्रस्तुत करने का भार उन पर होगा।
  • न्यायालय इस दायित्व से मुक्ति के लिये कोई सार्वभौमिक तरीका निर्धारित नहीं कर सकती; क्योंकि यह हर मामले में अलग-अलग होता है।
  • यदि बीमाकर्त्ता चालक के लाइसेंस के संबंध में उल्लंघन सिद्ध भी कर देता है, तो भी दायित्व से बचा नहीं जा सकता, जब तक कि इस उल्लंघन ने दुर्घटना में महत्त्वपूर्ण योगदान न दिया हो।
  • प्रत्येक मामले में ड्राइविंग लाइसेंस की प्रामाणिकता और वैधता की पुष्टि करने में वाहन मालिक की तत्परता का व्यक्तिगत रूप से मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
  • यदि दुर्घटना के समय चालक के पास प्रशिक्षण लाइसेंस था, तो बीमाकर्त्ता क्षतिपूर्ति आदेश का पालन करने के लिये उत्तरदायी हैं।

मोटर दुर्घटना के अंतर्गत भुगतान एवं वसूली के लिये उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देश क्या हैं?

  • नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम स्वर्ण सिंह एवं अन्य (2004):
    • इस मामले में भुगतान एवं वसूली के सिद्धांत को संबोधित किया गया था, जिसके अनुसार तीसरे पक्ष के जोखिम के मामले में, बीमाकर्त्ता को तीसरे पक्ष को देय क्षतिपूर्ति राशि की भरपाई करनी चाहिये।
    • यह स्थापित किया गया कि यह सिद्ध करने का दायित्व सदैव बीमा कंपनी का होता है कि चालक के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था तथा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन हुआ था।
    • यदि यह सिद्ध हो जाता है कि चालक के पास वैध लाइसेंस नहीं था और पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन हुआ है, तो तीसरे पक्ष के जोखिम के मामले में "भुगतान एवं वसूली" सिद्धांत लागू किया जा सकता है।
    • न्यायालय ने तीसरे पक्ष को क्षतिपूर्ति देने के लिये बीमाकर्त्ता के दायित्व पर ज़ोर दिया तथा ऐसे मामलों के लिये दिशा-निर्देशों की रूपरेखा तैयार की, जहाँ पॉलिसी शर्तों के उल्लंघन या चालक की अयोग्यता के कारण बीमाधारक से ऐसी क्षतिपूर्ति मांगी जाती है।
    • यह सिद्ध करने का दायित्व बीमा कंपनी का है कि चालक के पास वैध लाइसेंस नहीं था तथा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन हुआ था।
    • यदि ये शर्तें पूरी होती हैं, तो तीसरे पक्ष के जोखिमों के लिये "भुगतान एवं वसूली" सिद्धांत को लागू किया जा सकता है। अधिकरण को यह आकलन करना चाहिये कि क्या मालिक ने मामले-दर-मामला आधार पर चालक के लाइसेंस की वैधता को सत्यापित करने में उचित सावधानी बरती है।
  • शामन्ना बनाम डिवीज़नल मैनेजर (2018):
    • उच्चतम न्यायालय ने इस मुद्दे पर विचार किया है कि क्या बीमाकर्त्ता मोटर वाहन अधिनियम की धारा 149(2) के तहत दायित्व से बच सकता है।

मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 173 क्या है?

  • धारा 173 अपील से संबंधित है।
  • उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन, दावा अधिकरण के किसी निर्णय से व्यथित कोई व्यक्ति, निर्णय की तिथि से नब्बे दिन के भीतर उच्च न्यायालय में अपील कर सकेगा:
    • परंतु ऐसे पंचाट के अंतर्गत किसी राशि का भुगतान करने के लिये अपेक्षित व्यक्ति की कोई अपील उच्च न्यायालय द्वारा तब तक ग्रहण नहीं की जाएगी जब तक कि उसने उच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित तरीके से पच्चीस हज़ार रुपए या इस प्रकार पंचाट की गई राशि का पचास प्रतिशत, दोनों में से जो भी कम हो, जमा नहीं कर दिया हो:
    • आगे यह भी प्रावधान है कि यदि उच्च न्यायालय यह स्वीकार कर लेता है कि अपीलकर्त्ता पर्याप्त कारणों से समय पर अपील नहीं कर पाया था, तो वह नब्बे दिन की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात भी अपील पर विचार कर सकेगा।
  • यदि अपील में विवादित राशि एक लाख रुपए से कम है तो दावा अधिकरण के किसी निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जाएगी।