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सप्तपदी का पालन

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 24-Jan-2024

अजय कुमार जैन एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य

हिंदू विधि के अनुसार, विवाह तब तक मान्य विवाह नहीं माना जाता जब तक कि सप्तपदी का पालन नहीं किया जाता है।
न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अजय कुमार जैन एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में यह माना है कि हिंदू विधि में विवाह को तब तक मान्य विवाह नहीं माना जाता है जब तक कि  इस दौरान सप्तपदी का पालन नहीं किया जाता है।

अजय कुमार जैन एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में शिकायत दर्ज कराई गई है कि याचिकाकर्त्ताओं ने पीड़िता का अपहरण किया और उसे जबरन जबलपुर लाया गया।
  • इसके बाद वे उसे उच्च न्यायालय परिसर में ले गए और याचिकाकर्त्ताओं में से एक के साथ पीड़िता के विवाह से संबंधित विशिष्ट दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करने के लिये उसे मजबूर किया गया।
  • इसके बाद याचिकाकर्त्ताओं ने कार्यवाही को रद्द करने के लिये भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका दायर की है।
  • याचिकाकर्त्ताओं के अधिवक्ता ने कहा कि माला (वरमाला) के आदान-प्रदान और मांग में सिंदूर भरने की रस्म का पालन करते हुए विवाह किया गया था।
  • उच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज़ कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने कहा कि हिंदू विधि में विवाह एक संविदा नहीं है और जब तक सप्तपदी नहीं हो जाता, तब तक इसे मान्य विवाह नहीं कहा जा सकता है। इसलिये, न्यायालय ने मान्य हिंदू विवाह के लिये सप्तपदी के पालन के महत्त्व पर बल दिया।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि याचिकाकर्त्ताओं के अधिवक्ता, कानून के किसी भी प्रावधान को इंगित नहीं कर सके जिससे माला (वरमाला) के आदान-प्रदान द्वारा विवाह की इस रस्म के पालन को स्वीकार किया जाए।

सप्तपदी क्या है?
परिचय:

  • सप्तपदी, जिसका सामान्य अर्थ विवाह के समय मंडप के नीचे पवित्र अग्नि के चारों ओर सात कदम चलना है, विभिन्न हिंदू समुदायों के बीच किया जाने वाला एक मौलिक और सामान्य समारोह है।
  • पवित्र अग्नि के चारों ओर सातवाँ फेरा पूरा होने पर विवाह पूर्ण और मान्य माना जाएगा।

प्रासंगिक कानूनी प्रावधान:

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 7, हिंदू विवाह के समारोहों से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि -

(1) एक हिंदू विवाह उसके पक्षकारों में से किसी के भी द्वारा रूढ़िगत रीतियों और कर्मकांड के अनुसार अनुष्ठापित किया जा सकेगा।

(2) जहाँ कि ऐसी रीतियों और कर्मकांड के अंतर्गत सप्तपदी (अर्थात् अग्नि के समक्ष वर और वधू द्वारा संयुक्ततः सात पद चलना) का प्रावधान हो वहाँ विवाह पूर्ण और अबाद्धकर तब होता है जब सातवाँ पद चल लिया जाता है।

निर्णयज विधि:

  • स्मृति सिंह एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2023) मामले में , इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सप्तपदी के महत्त्व पर प्रकाश डाला, जहाँ वर और वधू संयुक्त रूप से पवित्र अग्नि के चारों ओर सात कदम चलते हैं, सातवाँ कदम उठाने पर विवाह पूर्ण होता है और वे बंधन में बंधते हैं।