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व्यवहार विधि

स्थायी निषेधाज्ञा

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 04-Oct-2023

डोमिनोज़ आईपी होल्डर एलएलसी एवं अन्य बनाम मैसर्स डोमिनिक पिज्जा और अन्य।

"किसी ज्ञात ब्रांड के चिह्न के समान चिह्न का उपयोग करके उसकी प्रतिष्ठा से फायदा उठाने के आशय को अनियंत्रित नहीं छोड़ा जा सकता है।"

न्यायाधीश सी. हरि शंकर

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायाधीश सी. हरि शंकर ने कहा कि किसी प्रसिद्ध ब्रांड के समान चिह्न का उपयोग करके उसकी प्रतिष्ठा से फायदा उठाने का आशय, नकल करने वाले की गुणवत्ता से समझौता करने की आशंका को जन्म दे सकता है।

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी डोमिनोज आईपी होल्डर एलएलसी और अन्य बनाम मैसर्स डोमिनिक पिज्जा और अन्य के मामले में दी।

डोमिनोज आईपी होल्डर एलएलसी और अन्य बनाम मैसर्स डोमिनिक पिज्जा और अन्य मामले की पृष्ठभूमि

  • डोमिनोज़ (वादी) ने डोमिनिक पिज्जा के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की, जिसके तीन आउटलेट हैं, यानी दो गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में और एक पंजाब में।
  • डोमिनोज़ ने न्यायालय के समक्ष अपने पंजीकृत चिह्न 'डोमिनोज़ पिज़्ज़ा' और उसके साथ आने वाले चिह्नों 'चीज़ बर्स्ट' और 'पास्ता इटालियनो' के संरक्षण की गुहार लगाई।
  • उक्त पंजीकृत चिह्नों के स्वामी, वादी ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 28(1) के तहत उक्त चिह्नों के उल्लंघन के विरुद्ध स्वयं को बचाने के हकदार हैं।
  • डोमिनोज़ ने न्यायालय के समक्ष दलील दी कि इससे ग्राहकों के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
  • पहले दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश प्रतिभा एम. सिंह की पीठ ने वादी को अंतरिम निषेधाज्ञा दी थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि डोमिनिक पिज़्ज़ा को "डोमिनिक पिज़्ज़ा", "चीज़ बर्स्ट" और "पास्ता इटलाइआनो" या वादी के पंजीकृत ट्रेडमार्क "डोमिनोज़" के समान या भ्रामक समान किसी अन्य चिह्न का उपयोग करके किसी भी उत्पाद, पैकेजिंग, मेनू कार्ड और विज्ञापन सामग्री का विज्ञापन, बिक्री या विपणन करने से रोका गया है।

स्थायी निषेधाज्ञा

  • परिचय:
    • स्थायी निषेधाज्ञा एक न्यायालयी आदेश होता है, जो किसी पक्ष को कुछ आचरण में शामिल होने से रोकता है या उन्हें विशिष्ट कार्य करने के लिये मज़बूर करता है।
    • इसे अंतिम और स्थायी उपाय माना जाता है, जो प्रारंभिक निषेधाज्ञाओं से पृथक है, जिसे विधिक कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान अस्थायी आधार पर जारी किया जाता है।
  • उद्देश्य:
    • यह वादी द्वारा मांगा गया एक उपाय है, जब वह किसी आसन्न क्षति को रोकने का प्रयास करता है, जिसे अकेले मौद्रिक मुआवज़े के माध्यम से पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया जा सकता है।
    • स्थायी निषेधाज्ञा का उद्देश्य गलत आचरण की पुनरावृत्ति को रोककर या सकारात्मक दायित्व लागू करके विधिक विवाद का स्थायी समाधान प्रदान करना है।
  • विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963:
    • विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 (SRA) की धारा 38 के तहत स्थायी या शाश्वत निषेधाज्ञा दी जाती है।
    • विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 (SRA) की धारा 38 की उप-धारा (1) में कहा गया है कि वादी को उसके पक्ष में मौज़ूदा दायित्व के उल्लंघन को रोकने के लिये एक स्थायी निषेधाज्ञा दी जा सकती है, चाहे वह स्पष्ट रूप से या निहितार्थ हो।
  • स्वरूप:
    • स्थायी निषेधाज्ञा का स्वरूप निर्णायक होता है, जो मामले की योग्यताओं को सुनने के बाद डिक्री के रूप में प्रदान की जाती है।
    • आदेश पारित करने वाले न्यायालय द्वारा इसे रद्द नहीं किया जा सकता; हालाँकि, इसे अपीलीय चरण में रद्द किया जा सकता है।

विधिक प्रावधान

व्यापार चिह्न अधिनियम, 1999 की धारा 28(1)  - रजिस्ट्रीकरण से प्रदत्त अधिकार -- (1) इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी व्यापार चिह्न का 'रजिस्ट्रीकरण, यदि वह विधिमान्य हो, तो उस व्यापार चिह्न के रजिस्ट्रीकृत स्वत्वधारी को, उस माल या उन सेवाओं के संबंध में, जिनकी बाबत वह व्यापार चिह्न रजिस्ट्रीकृत है, उस व्यापार चिह्न के उपयोग का और इस अधिनियम द्वारा उपबंधित रीति में उस व्यापार चिह्न के अतिलंघन के बाबत अनुतोष अभिप्राप्त करने का अन्य अधिकार प्रदान करेगा।

(2) उपघारा (1) के अधीन प्रदत्त व्यापार चिह्न के उपयोग का अनन्य अधिकार उन्हीं शर्तों और मर्यादाओं के अधीन होगा जिनके अधीन रजिस्ट्रीकरण होता है।

(3) जहाँ दो या अधिक व्यक्ति ऐसे व्यापार चिह्नों के रजिस्ट्रीकृत स्वत्वधारी हैं, जो एक दूसरे के तदुपरांत हैं या निकटत: सदृश हैं, वहाँ केवल व्यापार चिह्नों के रजिस्ट्रीकरण से यह नहीं समझा जाएगा कि उनमें से किसी एक व्यक्ति ने उनमें से किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध (जहाँ तक उनके पृथक्‌ अधिकार रजिस्टर में प्रविष्ट शर्तों या मर्यादाओं के अधीन हैं) उन व्यापार चिह्नों के उपयोग का अनन्य अधिकार अर्जित कर लिया है, किंतु उनमें से प्रत्येक व्यक्ति के अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध (जो अनुज्ञात उपयोग के रूप में उपयोग करने वाले रजिस्ट्रीकृत उपयोक्ता नहीं हैं) अन्यथा, वहीं अधिकार होंगे, जो उसके होते हैं, यदि वह एकमात्र रजिस्ट्रीकृत स्वत्वधारी होता है।