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सिविल कानून

व्यक्तित्व का अधिकार

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 11-Jun-2024

इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम रवींद्र कुमार चौधरी एवं अन्य

न्यायालय ने ‘बाप की अदालत’ ट्रेडमार्क के उल्लंघन के विरुद्ध रजत शर्मा के व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा की।”

 न्यायमूर्ति अनीश दयाल

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इंडिपेंडेंट न्यूज सर्विस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम रवींद्र कुमार चौधरी एवं अन्य मामले में वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा के पक्ष में निर्णय दिया, जिसमें "बाप की अदालत" ट्रेडमार्क और इंडिया टीवी लोगो के अनधिकृत उपयोग के विरुद्ध उनके व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा की गई।

  • न्यायालय ने रवींद्र कुमार चौधरी को , जो "झांडिया टीवी" नाम का उपयोग कर रहे थे, रजत शर्मा की तस्वीर, वीडियो या नाम का किसी भी प्रकार से उपयोग करने से रोक दिया, जिससे उनके व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन होता हो।

इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम रवींद्र कुमार चौधरी एवं अन्य की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • रजत शर्मा ने कई वर्षों से टीवी समाचार साक्षात्कार शो "आप की अदालत" के प्रसारण से जनता के साथ एक महत्त्वपूर्ण जुड़ाव बनाया है और इसे एक पहचान योग्य ब्रांड के रूप में स्थापित किया है जो उनके नाम तथा इंडिया टीवी के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है।
  • वादी (इंडिया टीवी और रजत शर्मा) ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी (रविंद्र कुमार चौधरी) ने इंडिया टीवी और "आप की अदालत" से मिलते-जुलते ट्रेडमार्क तथा लोगो का अवैध रूप से उपयोग किया।
  • चौधरी के "झांडिया टीवी" ने समान लोगो और "बाप की अदालत" नाम का उपयोग किया, जो वादी के ट्रेडमार्क और शो के नाम से काफी मिलता-जुलता था।
  • वादी के अनुसार, इससे जनता में भ्रम उत्पन्न हुआ तथा उनके बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन हुआ।
  • यह विधिक विवाद ट्रेडमार्क, लोगो और शो के नाम के अनधिकृत उपयोग के आरोपों के इर्द-गिर्द घूमता है।
  • वादी ने ट्रेडमार्क उल्लंघन, व्यक्तित्व अधिकारों के उल्लंघन और बौद्धिक संपदा के अनधिकृत उपयोग का दावा किया है।
  • वादी ने प्रतिवादी द्वारा अनाधिकृत उपयोग को रोकने के लिये निषेधाज्ञा और कथित उल्लंघन के लिये संभावित क्षतिपूर्ति की मांग की है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?  

  • न्यायालय ने अगली सुनवाई तक वादी के पक्ष में एकपक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा जारी कर दी, यह पाते हुए कि उन्होंने प्रथम दृष्टया मामला प्रस्तुत किया है और अन्यथा उन्हें अपूरणीय क्षति होने की संभावना है।
    • यह निषेधाज्ञा वादी और उनकी कंपनी द्वारा दायर वाद में जारी की गई थी।
  • प्रतिवादी को वादी के नाम, फोटो या वीडियो का किसी भी प्रकार से उपयोग करने से प्रतिबंधित किया गया है, जिससे वादी के व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन हो सकता हो।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को उल्लंघनकारी सामग्री हटाने का आदेश दिया गया है, जिसमें विशिष्ट ट्रेडमार्क वाले सोशल मीडिया पोस्ट भी शामिल हैं।

व्यक्तित्व अधिकार क्या है?

  • व्यक्तित्व अधिकार, जिसे प्रचार का अधिकार भी कहा जाता है।
  • यह व्यक्तियों के अपनी पहचान, समानता, नाम या व्यक्तित्व के अन्य आयामों के व्यावसायिक उपयोग को नियंत्रित करने तथा उससे लाभ कमाने के विधिक अधिकारों को संदर्भित करता है।
  • ये अधिकार व्यक्तियों को अनधिकृत व्यावसायिक शोषण से बचाते हैं, जैसे कि उनकी सहमति के बिना विज्ञापन या प्रचार प्रयोजनों के लिये उनकी छवि या नाम का उपयोग करना।
    • प्रसिद्ध हस्तियों/सेलिब्रिटीज़ के लिये अपने व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा के लिये अपना नाम पंजीकृत कराना आवश्यक है।
  • व्यक्तित्व अधिकार क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होते हैं, परंतु सामान्यतः इनमें यह नियंत्रित करने का अधिकार शामिल होता है कि किसी की पहचान का उपयोग वाणिज्यिक संदर्भों में कैसे किया जाता है तथा किसी भी अनधिकृत उपयोग के लिये मुआवज़ा पाने का अधिकार भी शामिल होता है।
    • किसी व्यक्ति की पहचान को बनाने में, अद्वितीय व्यक्तिगत विशेषताओं की एक बड़ी सूची का योगदान होता है।
    • इन सभी विशेषताओं को संरक्षित किया जाना आवश्यक है, जैसे नाम, उपनाम, मंच का नाम, चित्र, समानता, छवि और कोई भी पहचान योग्य व्यक्तिगत संपत्ति, जैसे कि उस व्यक्ति द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली विशिष्ट रेस कार।

व्यक्तित्व अधिकार के प्रकार क्या हैं?

  • व्यक्तित्व अधिकार दो प्रकार के होते हैं
    • प्रचार का अधिकार
    • गोपनीयता का अधिकार।
  • प्रचार का अधिकार किसी सेलिब्रिटी की छवि और विशेषताओं को अनधिकृत व्यावसायिक उपयोग से सुरक्षित रखता है, ठीक उसी तरह जैसे ट्रेडमार्क ब्रांडों की रक्षा करते हैं।
    • यह अधिकार व्यक्ति की मृत्यु तक बना रहता है, जिसके उपरांत न्यायालय इसका नियंत्रण अपने हाथ में ले लेता है।
  • गोपनीयता का अधिकार मशहूर हस्तियों को उनके निजी जीवन में अवांछित हस्तक्षेप से बचाता है, जैसे अनधिकृत फोटोग्राफी या निजी जानकारी का सार्वजनिक होना।
  • दोनों अधिकार भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (गोपनीयता का अधिकार) के अंतर्गत निहित हैं।

व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिये उपलब्ध विधिक उपाय क्या हैं?

  • अपने व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिये, प्रसिद्ध लोग एवं सेलिब्रिटी, विधि के समक्ष विधिक सहायता ले सकते हैं।
  • भारत में, व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा के लिये उपलब्ध विधिक उपाय भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत गोपनीयता एवं प्रचार सहित जीवन और सम्मान के अधिकार के अंतर्गत उपलब्ध है।
  • व्यक्तित्व अधिकारों की रक्षा करने वाले अन्य वैधानिक प्रावधानों में कॉपीराइट अधिनियम, 1957 शामिल है।
    • अधिनियम के अनुसार, नैतिक अधिकार केवल लेखकों एवं कलाकारों को दिये जाते हैं, जिनमें अभिनेता, गायक, संगीतकार एवं नर्तक शामिल हैं।
    • अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार लेखकों या कलाकारों को अपने कार्य का श्रेय पाने या उसके लेखक होने का दावा करने का अधिकार है तथा साथ ही उन्हें दूसरों को अपने काम को किसी भी तरह की क्षति पहुँचाने से रोकने का भी अधिकार है।
    • भारतीय ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 की धारा 14 के अंतर्गत व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा की जाती है, जो व्यक्तिगत नामों एवं अभ्यावेदनों के उपयोग को प्रतिबंधित करती है।

इसमें शामिल प्रासंगिक मामले क्या हैं?

  • अरुण जेटली बनाम नेटवर्क सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य (2011)
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि किसी व्यक्ति की लोकप्रियता या प्रसिद्धि इंटरनेट पर वास्तविकता से भिन्न नहीं होगी।
    • न्यायालय ने यह भी कहा था कि यह नाम उस श्रेणी में आता है जिसमें व्यक्तिगत नाम होने के अतिरिक्त इसने अपनी विशिष्ट पहचान भी प्राप्त कर ली है।
  • गौतम गंभीर बनाम A.P & कंपनी एवं अन्य, (2017)
    • एक भारतीय क्रिकेटर ने दावा किया कि भोजनालयों की एक शृंखला के लिये टैगलाइन के रूप में उनके नाम का उपयोग करना, उनकी प्रसिद्धि के कारण उनके व्यक्तित्व के अधिकारों एवं ट्रेडमार्क संरक्षण का उल्लंघन है।
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनके निषेधाज्ञा के आवेदन को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि दोषपूर्ण बयानी के प्रयास का कोई साक्ष्य नहीं है, क्योंकि प्रतिवादी के सोशल मीडिया पेजों पर गंभीर के सार्वजनिक बयानों की कोई सूचना नहीं है।
    • न्यायालय ने निर्णय दिया कि गंभीर के नाम का कोई व्यवसायीकरण नहीं किया गया था तथा वाद को खारिज कर दिया तथा सफल, व्यक्तित्व के अधिकार दावे के लिये अनुचित संवर्धन स्थापित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।