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व्यवहार विधि

माध्यस्थम् का स्थान

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 19-Oct-2023

इंस्टाकार्ट सर्विसेज बनाम मेगास्टोन लॉजिपार्क्स प्राइवेट लिमिटेड

जब कोई विरोधाभासी अनन्य क्षेत्राधिकार खंड होता है तो माध्यस्थम् का स्थान ‘वेन्यु’ होता है न कि माध्यस्थम् का स्थान ‘सीट’।

गुजरात उच्च न्यायालय

स्रोत: गुजरात उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

इंस्टाकार्ट सर्विसेज बनाम मेगास्टोन लॉजिपार्क्स प्राइवेट लिमिटेड के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय ने माना है कि एक विरोधाभासी विशेष क्षेत्राधिकार खंड की उपस्थिति में, माध्यस्थम् का स्थान माध्यस्थम् की सीट के बजाय वेन्यु को माना जाता है।

माध्यस्थम् कार्यवाही में "सीट" और "वेन्यू" शामिल होते हैं। वेन्यू से तात्पर्य उस स्थान से है जहाँ भौतिक स्थान पर माध्यस्थम् आयोजित की जाती है, जबकि सीट इस बात से संबंधित है कि क्या क्षेत्राधिकार के कानून लागू होते हैं।

इंस्टाकार्ट सर्विसेज बनाम मेगास्टोन लॉजिपार्क्स प्राइवेट लिमिटेड मामले की पृष्ठभूमि

  • पक्षकारों ने एक पट्टा समझौता किया; इस समझौते के खंड संख्या 25 में माध्यस्थम् के माध्यम से विवाद के समाधान का प्रावधान है।
  • पक्षकारों ने बाद में पट्टे के लिये इच्छित परिसर के संबंध में एक रखरखाव और सुविधा (एम एंड ई) समझौता स्थापित किया, जैसा कि पट्टा समझौते में उल्लिखित है।
  • याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि पट्टा समझौते का खंड 25 (ii) इंगित करता है कि दोनों पक्षकार इस बात पर सहमत हुए थे कि माध्यस्थम् की कार्यवाही बंगलोर, कर्नाटक में आयोजित की जाएगी।
    • उच्चतम न्यायालय (SC) के फैसले पर भरोसा करते हुए बीजीएस एसजीएस कोमा जेवी बनाम एनपीएचसी (2020), मेसर्स देवयानी इंटरनेशनल लिमिटेड बनाम सिद्धिविनायक बिल्डर्स एंड डेवलपर्स (2017) मामले में याचिकाकर्त्ता ने आगे तर्क दिया:
    • माध्यस्थम् की सीट पर सहमति होने के बाद, (माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996) अधिनियम, 1996 की धारा 11 के तहत याचिका पर विचार करने का क्षेत्राधिकार केवल कर्नाटक उच्च न्यायालय के पास है।
    • प्रतिवादी की ओर से तर्क दिया गया कि गुजरात स्थित परिसर को पट्टे पर देने के लिये पट्टा विलेख निष्पादित किया गया था।
    • तात्कालिक याचिका, दो मुद्दों पर अधिनियम, 1996 की धारा 11(6) के तहत माध्यस्थम् की नियुक्ति की मांग करती है:
      • रखरखाव एवं सुविधा समझौते से उत्पन्न विवाद पर मध्यस्थ की नियुक्ति के संबंध में।
      • अधिनियम, 1996 की धारा 11 के तहत याचिका पर विचार करने के लिये न्यायालय (HC) के क्षेत्राधिकार के संबंध में।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायालय ने कहा कि दोनों समझौतों को पक्षकारों द्वारा एक ही संव्यवहार के हिस्से के रूप में निष्पादित किया गया था। इसमें आगे कहा गया है कि उनकी समाप्ति तिथि एक ही है, और पट्टा समझौते का निष्पादन एम एंड ई समझौते की पूर्ति पर निर्भर करता है।
  • न्यायालय ने निर्धारित किया कि जब दो समझौतों की समाप्ति तिथि समान होती है और उनका निष्पादन एक-दूसरे पर निर्भर करता है, तो एक समझौते में माध्यस्थम् खंड का उपयोग दूसरे के लिये भी किया जा सकता है।
  • आगे यह कहा गया कि पट्टा समझौते के खंड 25 में प्रावधान है कि समझौते से उत्पन्न होने वाले सभी मामलों में अहमदाबाद के न्यायालय के पास विशेष क्षेत्राधिकार होगा।
  • अंततः यह माना गया कि माध्यस्थम् की घोषणा बंगलोर में आयोजित की जाएगी, जो केवल माध्यस्थम् के स्थान को इंगित करती है न कि माध्यस्थम् की सीट को।

माध्यस्थम्

  • माध्यस्थम् पारंपरिक न्यायालय प्रणाली के बाहर विवादों को हल करने की एक विधि है यानी, यह वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र के अनुसार वैकल्पिक विवाद समाधान के तरीकों में से एक है:

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 89 न्यायालय के बाहर विवादों के निपटारे का भी प्रावधान करती है–

  • न्यायालय के बाहर विवादों का निपटारा (1) जहाँ न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि किसी समझौते के ऐसे तत्त्व विद्यमान हैं, जो पक्षकारों को स्वीकार्य हो सकते हैं वहाँ न्यायालय समझौते के निबंधन बनाएगा और उन्हें पक्षकारों को उनकी टीका- टिप्पणी के लिये देगा और पक्षकारों की टीका-टिप्पणी प्राप्त करने के पश्चात् न्यायालय संभव समझौते के निबंधन पुनः बना सकेगा और उन्हें

(क) माध्यस्थम्.
(ख) सुलह,
(ग) न्यायिक समझौते जिसके अंतर्गत लोक अदालत के माध्यम से समझौता भी है : या
(घ) बीच-बचाव के लिये निर्दिष्ट करेगा।

(2) जहाँ कोई विवाद—

(क) माध्यस्थम् या सुलह के लिये निर्दिष्ट किया गया है वहाँ माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (1996 का 26) के उपबंध ऐसे लागू होंगे मानो माध्यस्थम् या सुलह के लिये कार्यवाहियाँ उस अधिनियम के उपबंधों के अधीन समझौते के लिये निर्दिष्ट की गई थीं

(ख) लोक अदालत को निर्दिष्ट करेगा, जबकि न्यायालय उसे विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 (1987 का 39) की धारा 20 की उपधारा (1) के उपबंधों के अनुसार लोक अदालत को निर्दिष्ट करेगा और उस अधिनियम के सभी अन्य उपबंध लोक अदालत को इस प्रकार निर्दिष्ट किये गए विवाद के संबंध में लागू होंगे:

(ग) न्यायिक समझौते के लिये निर्दिष्ट करेगा, वहाँ न्यायालय उसे किसी उपयुक्त संस्था या व्यक्ति को निर्दिष्ट करेगा और ऐसी संस्था या व्यक्ति को लोक अदालत समझा जाएगा तथा विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 (1987 का 39) के सभी उपबंध ऐसे लागू होंगे मानो वह विवाद लोक अदालत को उस अधिनियम के उपबंधों के अधीन निर्दिष्ट किया गया था:

  • इसमें विवाद में शामिल पक्ष न्यायालय में जाने के बजाय अपने मामले को एक या अधिक तटस्थ तृतीय पक्षकारों, जिन्हें मध्यस्थ के रूप में जाना जाता है, को सौंपने के लिये सहमत होते हैं।
  • ये मध्यस्थ तर्क सुनते हैं और दोनों पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य लेते हैं और फिर विवाद को निपटाने के लिये एक बाध्यकारी निर्णय लेते हैं, जिसे प्रायः माध्यस्थम् पंचाट के रूप में जाना जाता है।

शामिल कानूनी प्रावधान

माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996

धारा 11(6): मध्यस्थों की नियुक्ति -  जहाँ पक्षकारों द्वारा करार पाई गई किसी नियुक्ति की प्रक्रिया के अधीन –

(क) कोई पक्षकार उस प्रक्रिया के अधीन अपेक्षित रूप में कार्य करने में असफल रहता है, या

(ख) पक्षकार अथवा दो नियुक्त मध्यस्थ, उस प्रक्रिया के अधीन उनसे अपेक्षित किसी करार पर पहुँचने में असफल रहते हैं, या

(ग) कोई व्यक्ति, जिसके अंतर्गत कोई संस्था है, उस प्रक्रिया के अधीन उसे सौंपे गए किसी कृत्य का निष्पादन करने में असफल रहता है,

वहाँ कोई पक्षकार मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा पदाभिहित किसी व्यक्ति या संस्था से, जब तक कि नियुक्ति प्रक्रिया के किसी करार में नियुक्ति सुनिश्चित कराने के अन्य साधनों के लिये उपबंध न किया गया हो, आवश्यक उपाय करने के लिये अनुरोध कर सकता है।