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सांविधानिक विधि

सातवीं अनुसूची में क राधान शक्ति की स्थिति

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 26-Jul-2024

मिनरल एरिया डेवलपमेंट बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एवं अन्य   

“संविधान की 7वीं अनुसूची की नियमित प्रविष्टियों में  कर लगाने की शक्तियों को शामिल करने के लिये प्रविष्टियों की व्यापक रूप से व्याख्या नहीं की जा सकती”।

9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने मिनरल एरिया डेवलपमेंट बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एवं अन्य मामले में निर्णय दिया कि राज्यों को भारतीय संविधान, 1950 (COI) की सूची II की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत खनिज संबंधी अधिकारों पर कर अध्यारोपित करने का अधिकार है, जबकि सूची I की प्रविष्टि 54 के अंतर्गत संघ के पास नियामक शक्तियाँ हैं। न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कर अध्यारोपित करने की शक्तियाँ स्पष्ट रूप से दी जानी चाहिये और सामान्य नियामक प्रविष्टियों से इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता।

  • न्यायालय ने यह पुष्टि भी की कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) खनिज संबंधी अधिकारों या भूमि पर राज्यों की कराधान शक्तियों को प्रतिबंधित नहीं करता है, बल्कि विधायी क्षमताओं के संवैधानिक वितरण को बनाए रखता है।
  • यह निर्णय 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा सुनाया गया है जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय वाई चंद्रचूड़, माननीय न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, माननीय न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, माननीय न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला, माननीय न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, माननीय न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ, माननीय न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और माननीय न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह के द्वारा निर्णय प्रदान किया गया है।

मिनरल एरिया डेवलपमेंट बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • ये अपीलें खनिज संबंधी अधिकारों पर कराधान के संबंध में संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों के वितरण से संबंधित हैं।
  • विचाराधीन मुख्य विधायी प्रविष्टि, संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II की प्रविष्टि 50 है, जो खनिज संबंधी अधिकारों पर कराधान से संबंधित है।
  • संसद ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) को संविधान के अनुच्छेद 246 के अंतर्गत अधिनियमित किया।
  • इंडिया सीमेंट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य (1990) मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि रॉयल्टी एक कर है और राज्य विधानसभाओं में खनिज संबंधी अधिकारों पर कर लगाने की क्षमता का अभाव है।
  • पश्चिम बंगाल राज्य बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (2004) में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि रॉयल्टी कोई कर नहीं है, जो कि इंडिया सीमेंट मामले पर दिये गए पूर्वनिर्णय का खंडन करता है।
  • इन निर्णयों के उपरांत, कुछ राज्य विधानसभाओं ने खनिज मूल्य या रॉयल्टी को कर के मापक के रूप में उपयोग करते हुए, सूची II की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत खनिज युक्त भूमि पर कर लगाया।
  • इन राज्य करों की संवैधानिक वैधता को विभिन्न उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई।
  • सिविल अपील में पटना उच्च न्यायालय ने इंडिया सीमेंट मामले में लिये गए निर्णय का उदहारण देते हुए खनन हेतु उपयोग की जाने वाली भूमि पर कर लगाने वाले बिहार राज्य के विधान को रद्द कर दिया।
  • अपील पर, उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने इंडिया सीमेंट और केसोराम निर्णयों के बीच मतभेद को देखा तथा कई विधिक प्रश्नों को नौ न्यायाधीशों की पीठ को अंतरित कर दिया।
  • नौ न्यायाधीशों की पीठ अब इन संदर्भित विधिक प्रश्नों पर विचार कर रही है, जिन्हें निम्नलिखित मुख्य मुद्दों में बदल दिया गया है:
    • रॉयल्टी की प्रकृति के विषय में।
    • विधायी प्रविष्टियों का दायरा
    • खनिज कराधान के संबंध में संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि सातवीं अनुसूची की सूची I और II के अंतर्गत नियमित प्रविष्टियों में विशिष्ट कर प्रविष्टियों के अंतर्गत आने वाली कराधान शक्तियों को शामिल करने के लिये व्यापक व्याख्या नहीं दी जा सकती।
  • न्यायालय ने नियमित प्रविष्टियों की सीमा का विस्तार कर उसमें कराधान शक्ति को भी शामिल कर दिया है, जिससे संघ और राज्यों दोनों को स्वेच्छाचारी तथा असंवैधानिक अधिकार प्राप्त हो जाएगा।
  • न्यायालय ने कहा कि सूची I की प्रविष्टि 54 सामान्य होने के कारण इसमें कराधान शक्ति शामिल नहीं है।
  • संसद खनिज संबंधी अधिकारों पर कर लगाने के लिये विधायी क्षमता प्राप्त करने हेतु अवशिष्ट शक्तियों का उपयोग नहीं कर सकती।
    • कर लगाने की शक्ति प्रविष्टि में स्पष्ट रूप से उपस्थित होनी चाहिये तथा इसे नियामक शक्तियों से निहित नहीं किया जा सकता।
    • प्रविष्टि 50 सूची II, सुंदररामियर सिद्धांत का अपवाद नहीं है, जिसमें कहा गया है कि कर प्रविष्टियों को 7वीं अनुसूची में सामान्य प्रविष्टियों से अलग सूचीबद्ध किया गया है।
  • न्यायालय का मानना ​​है कि राज्यों को सूची II की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत खनिज संबंधी अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार है।
  • सूची II की प्रविष्टि 50 और सूची I की प्रविष्टि 54 नियामक प्रविष्टियाँ हैं तथा स्पष्ट रूप से 'कर प्रविष्टियों' के अंतर्गत नहीं आती हैं।
  • खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) की धारा 9 के अंतर्गत खनिज अधिकारों पर कर लगाने की राज्यों की शक्ति को सीमित नहीं किया गया है।
  • राज्यों को सूची II की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का अधिकार है, जिसमें भूमि और भवनों पर कर शामिल है।
  • सूची II की प्रविष्टि 49 में "भूमि" शब्द में सभी प्रकार की भूमि शामिल है, चाहे उनका उपयोग कुछ भी हो, जिसमें खनिज युक्त भूमि भी शामिल है।
  • राज्य विधानसभाओं को सूची II की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत कराधान प्रयोजनों के लिये भूमि को वर्गीकृत करने में व्यापक विवेकाधिकार प्राप्त है।
  • अपनी प्राकृतिक अवस्था में खनिज भूमि का भाग हैं और सूची II की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत कराधान प्रयोजनों के लिये सतह के ऊपर तथा नीचे की सभी चीज़ें इसमें शामिल हैं।
    • MMDRअधिनियम, सूची II की प्रविष्टि 49 के अंतर्गत भूमि पर कर लगाने की राज्य की शक्ति को सीमित नहीं करता है।
    • MMDR अधिनियम, 1957 की धाराएँ 9, 9A और 25 सूची II की प्रविष्टि 50 के विस्तार को समाप्त या सीमित करती हैं।
    • केसोराम मामले में बहुमत से लिये गए निर्णय को इस सीमा तक अस्वीकार कर दिया गया है कि रॉयल्टी कोई कर नहीं है।
    • सूची II की प्रविष्टि 50, सुंदररामियर सिद्धांत का अपवाद नहीं है, जिसमें कहा गया है कि संविधान में कर प्रविष्टियों को सामान्य प्रविष्टियों से अलग सूचीबद्ध किया गया है।

संविधान की सातवीं अनुसूची क्या है?

परिचय:

  • सातवीं अनुसूची को संविधान के अनुच्छेद 246 के साथ पढ़ा जाता है, जो संसद और राज्य विधानमंडल को उनके विधायी क्षेत्र में आने वाले किसी भी मामले पर विधि बनाने का अधिकार देता है।
  • सातवीं अनुसूची, संघ और राज्यों के बीच शक्तियों तथा उत्तरदायित्वों के वितरण को निर्दिष्ट करती है। इसमें तीन सूचियाँ हैं:
    • संघ सूची: इस सूची में संघीय सरकार के अनन्य अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विषय सम्मिलित हैं। वर्तमान में संघ सूची में 100 विषय हैं।
    • राज्य सूची: इस सूची में राज्य सरकार के विशेष अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विषय सम्मिलित हैं। वर्तमान में राज्य सूची में 61 विषय हैं।
    • समवर्ती सूची: इस सूची में संघ और राज्य सरकारों के संयुक्त अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विषय सम्मिलित हैं। वर्तमान में समवर्ती सूची में 52 विषय हैं।

सातवीं अनुसूची के लागू होने के बाद इसमें कौन-से बड़े परिवर्तन हुए हैं?

  • संसद को संघ सूची के 100 विषयों पर विधान बनाने का विशेष अधिकार है।
  • राज्य विधानमंडलों को राज्य सूची के 61 विषयों पर विधान बनाने का विशेष अधिकार है।
  • संसद और राज्य विधानमंडल दोनों समवर्ती सूची के 52 विषयों पर विधान बना सकते हैं।
  • 42वें संशोधन अधिनियम (1976) द्वारा पाँच विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • संसद, राज्य सूची के विषयों पर केंद्रशासित प्रदेशों के लिये विधान बना सकती है।
  • 101वें संशोधन अधिनियम (2018) ने GST पर संसद और राज्यों को साझा शक्ति प्रदान की, जिसमें संसद को अंतर्राज्यीय GST पर विशेष शक्ति प्राप्त है।
  • संसद को उन अवशिष्ट विषयों पर भी अधिकार है जो किसी सूची में नहीं हैं।
  • संविधान, राज्य और समवर्ती सूचियों पर संघ सूची की प्रधानता तथा राज्य सूची पर समवर्ती सूची की प्रधानता सुनिश्चित करता है।
  • कुछ अपवादों को छोड़कर, संघर्ष की स्थिति में केंद्रीय विधान सामान्यतः राज्य विधानों पर प्रभावी होते हैं।
  • सरकारिया आयोग (1983) और वेंकटचलैया आयोग (2002) ने शक्तियों के मौजूदा वितरण को एक स्थिति तक यथावत् रखा।
  • समवर्ती सूची के अंतर्गत विधान बनाने के लिये संघ और राज्यों के बीच कोई अनिवार्य परामर्श प्रक्रिया नहीं है।

सातवीं अनुसूची में संशोधन की आवश्यकता क्यों हुई?

  • संवैधानिक संशोधनों ने आमतौर पर विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची या समवर्ती सूची से संघ सूची में स्थानांतरित करके केंद्रीकरण को बढ़ावा दिया है।
  • वर्ष 1976 के संशोधन से केंद्रीकरण में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  • राजमन्नार समिति (1971) ने सातवीं अनुसूची की सूची 1 और 3 की प्रविष्टियों की समीक्षा तथा पुनर्वितरण के लिये एक उच्च-शक्ति आयोग की अनुशंसा की थी।
  • इस बात पर सामान्य सहमति है कि भारत को शासन में अधिक विकेंद्रीकरण की आवश्यकता है।
  • सातवीं अनुसूची के व्यापक पुनर्निरीक्षण की आवश्यकता है।
  • विकास में क्षेत्रीय अंतर के कारण बाज़ार सुधार कारक (भूमि, श्रम, प्राकृतिक संसाधन) राज्य स्तरीय नियंत्रण से लाभान्वित हो सकते हैं।
  • राज्य-विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए श्रम विधियों को समवर्ती सूची से राज्य सूची में स्थानांतरित किया जा सकता है।
  • संघ-राज्य संबंधों पर गठित पिछले आयोगों ने सातवीं अनुसूची पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है।
  • प्रथम सिद्धांतों के आधार पर सातवीं अनुसूची का स्वतंत्र निरीक्षण आवश्यक है।

भारत के संविधान में संबंधित प्रावधान क्या हैं?

अनुच्छेद

विषय

व्याख्या

245

संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए विधानों का विस्तार

विधानों के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र को परिभाषित करता है

246

संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए विधानों की विषय-वस्तु

सातवीं अनुसूची द्वारा सूचियों के आधार पर विधायी शक्तियों का वितरण

246A

 GST के लिये विशेष प्रावधान

वस्तु एवं सेवा कर विधि से संबंधित

247

अतिरिक्त न्यायालय स्थापित करने की संसद की शक्ति

संघ और समवर्ती सूची के अंतर्गत विधियों के बेहतर प्रशासन के लिये

248

विधान की अवशिष्ट शक्तियाँ

संसद को राज्य या समवर्ती सूची में शामिल न होने वाले मामलों पर अधिकार देता है

249

राज्य सूची के मामलों पर विधि बनाने की संसद की शक्ति

यदि राज्यसभा प्रस्ताव पारित करती है तो यह संभव है

250

आपातकाल के दौरान विधान बनाने की संसद की शक्ति

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान राज्य सूची के मामलों पर विधान बना सकते हैं

 

251

संघ और राज्य विधियों के बीच असंगतता

संघीय विधियों की व्यापकता स्थापित करता है

 

252

दो या अधिक राज्यों के लिये सहमति से विधान बनाने की संसद की शक्ति

सहमति देने वाले राज्यों में एक समान विधि की अनुमति देता है

 

253

अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के कार्यान्वयन के लिये विधान

संसद को संधियों को लागू करने की शक्ति प्रदान करता है

254

समवर्ती सूची पर संघ और राज्य विधियों के बीच असंगतता

समवर्ती सूची विधान में विवादों को संबोधित करती है

 क्या रॉयल्टी एक कर है अथवा नहीं?

  • खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) संघीय नियंत्रण के अंतर्गत खानों तथा खनिज विकास को विनियमित करता है।
  • धारा 9, खनन पट्टों के लिये रॉयल्टी से संबंधित है, जो निकाले गए या उपभोग किये गए खनिजों पर देय है।
  • रॉयल्टी दरें द्वितीय अनुसूची में निर्दिष्ट हैं, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
  • यदि प्रसंस्करण, पट्टे पर दिये गए क्षेत्र के भीतर किया जाता है तो प्रसंस्कृत खनिजों पर रॉयल्टी ली जाती है, अन्यथा अप्रसंस्कृत खनिजों पर रॉयल्टी ली जाती है।
  • धारा 9A के अंतर्गत डेड रेंट देय है तथा डेड रेंट या रॉयल्टी में से जो अधिक हो, वह लिया जाएगा।
  • ज़िला खनिज फाउंडेशन और राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट के लिये अतिरिक्त भुगतान की आवश्यकता है।
  • यह अधिनियम बकाया राशि को भू-राजस्व बकाया के रूप में वसूलने का अधिकार देता है।
  • खनन पट्टा समझौते, राज्य सरकारों और पट्टाधारकों के बीच निष्पादित किये जाते हैं।
  • MMDR अधिनियम का उद्देश्य पुराने खनन समझौतों को संशोधित करना और निजी क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करना था।
  • धारा 9, केंद्र सरकार को रॉयल्टी दरों की समय-समय पर समीक्षा और समायोजन करने की अनुमति देती है, जो पिछले विधान के अंतर्गत संभव नहीं था।
  • रॉयल्टी दर निर्धारण को केंद्रीकृत करने का उद्देश्य पूरे भारत में एकरूपता बनाए रखना और घरेलू उद्योग की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना है।