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आपराधिक कानून

आदेशिका जारी करने का स्थगन

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 29-Feb-2024

शिव जटिया बनाम जियान चंद मलिक एवं अन्य

एक बार जब मजिस्ट्रेट ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 202 के तहत पुलिस रिपोर्टकी मांग की है, तो मजिस्ट्रेट तब तक समन जारी नहीं कर सकता जब तक कि पुलिस द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जाती है।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्जल भुइयाँ

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने शिव जटिया बनाम ज्ञान चंद मलिक एवं अन्य के मामले में माना है कि एक बार जब मजिस्ट्रेट ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 202 के तहत पुलिस रिपोर्ट मांगी है, तो मजिस्ट्रेट तब तक समन जारी नहीं कर सकता जब तक कि पुलिस द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जाती है।

शिव जटिया बनाम जियान चंद मलिक एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, अपीलकर्त्ता एक गैस आपूर्तिकर्ता कंपनी है, जबकि प्रतिवादी एक गैस वितरक कंपनी है।
  • मजिस्ट्रेट ने प्रतिवादी द्वारा दर्ज की गई शिकायत के विरुद्ध अपीलकर्त्ता को समन जारी किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अपीलकर्त्ता ने प्रतिभूति निक्षेप वापस न करके और प्रतिवादी से खाली सिलेंडर स्वीकार न करके न्यासभंग किया है।
  • अपीलकर्त्ता ने आरोप लगाया कि मजिस्ट्रेट का समन आदेश पूरी तरह से अवैध था।
  • अपीलकर्त्ता के अनुसार, शिकायत को पढ़ने से पता चलता है कि अपीलकर्त्ता के विरुद्ध किसी ऐसे कार्य को करने या छोड़ने का कोई आरोप नहीं है जो किसी अपराध का गठन करता हो।
  • अपीलकर्त्ता के अनुसार, पुलिस द्वारा CrPC की धारा 202 के तहत एक रिपोर्ट कभी प्रस्तुत नहीं की गई थी।
  • चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने शिकायत को रद्द कर दिया।
  • इसके बाद उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई जिसे बाद में न्यायालय ने अनुमति दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्जल भुइयाँ की पीठ ने कहा कि मजिस्ट्रेट बिना विचार किये अभियुक्त को आदेशिका जारी नहीं कर सकता और उसे पुलिस से रिपोर्ट मिलने तक अभियुक्त के विरुद्ध आदेशिका जारी करने की प्रतीक्षा करनी चाहिये थी।
  • न्यायालय ने यह भी माना कि गवाहों के साक्ष्य दर्ज करने और रिकॉर्ड पर दस्तावेज़ों का अवलोकन करने के बाद, संबंधित मजिस्ट्रेट ने CrPC की धारा 202 के तहत रिपोर्ट मांगने का आदेश पारित किया। उसने आदेशिका जारी करना स्थगित कर दिया। संबंधित मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट प्राप्त होने तक प्रतीक्षा करनी चाहिये थी।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि मजिस्ट्रेट तब तक समन जारी नहीं कर सकता जब तक कि यह संतुष्टि न हो जाए कि तथ्य समन आदेश पारित करने के लिये पर्याप्त है।

CrPC की धारा 202 क्या है?

परिचय:

  • CrPC की धारा 202 मजिस्ट्रेट की ओर से आदेशिका के जारी किये को स्थगित करने से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि -
    (1) यदि कोई मजिस्ट्रेट ऐसे अपराध का परिवाद प्राप्त करने पर, जिसका संज्ञान करने के लिये वह प्राधिकृत है या जो धारा 192 के अधीन उसके हवाले किया गया है, ठीक समझता है तो और ऐसे मामले में जहाँ अभियुक्त ऐसे किसी स्थान में निवास कर रहा है जो उस क्षेत्र से परे है, जिसमें वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है अभियुक्त के विरुद्ध आदेशिका का जारी किया जाना मुल्तवी कर सकता है और यह विनिश्चित करने के प्रयोजन से कि कार्यवाही करने के लिये पर्याप्त आधार है अथवा नहीं, या तो स्वयं ही मामले की जाँच कर सकता है या किसी पुलिस अधिकारी द्वारा या अन्य ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसको वह ठीक समझे अन्वेषण किये जाने के लिये निदेश दे सकता है।
  • परंतु अन्वेषण के लिये ऐसा कोई निदेश वहाँ नहीं दिया जाएगा-
    (a) जहाँ मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि वह अपराध जिसका परिवाद किया गया है अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है; अथवा
    (b) जहाँ परिवाद किसी न्यायालय द्वारा नहीं किया गया है जब तक कि परिवादी की या उपस्थित साक्षियों की (यदि कोई हो) धारा 200 के अधीन शपथ पर परीक्षा नहीं कर ली जाती है।
    (2) उपधारा (1) के अधीन किसी जाँच में यदि मजिस्ट्रेट ठीक समझता है तो साक्षियों का शपथ पर साक्ष्य ले सकता है।
    (3) यदि उपधारा (1) के अधीन अन्वेषण किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो पुलिस अधिकारी नहीं है तो उस अन्वेषण के लिये उसे वारंट के बिना गिरफ्तार करने की शक्ति के सिवाय पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को इस संहिता द्वारा प्रदत्त सभी शक्तियाँ होंगी।

CrPC की धारा 202 के आवश्यक तत्व:

  • मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध का संज्ञान लेने के बाद धारा 202 लागू होती है।
  • मजिस्ट्रेट के पास CrPC की धारा 192 या धारा 202 के तहत प्राप्त शिकायत के तहत विचार के लिये रखे गए मामले की जाँच करने या पुलिस अधिकारी को जाँच करने का निर्देश देने की शक्ति है।
  • शिकायत प्राप्त होने पर, मजिस्ट्रेट अभियुक्त को समन या गिरफ्तारी वारंट जारी करने को स्थगित कर सकता है और इस दौरान, वे या तो स्वयं जाँच कर सकते हैं या पुलिस को जाँच करने का निर्देश दे सकते हैं।

निर्णयज विधि:

  • वाडीलाल पांचाल बनाम दत्ताराय दुलाजी घडीगांवकर एवं अन्य (1960) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 202 का उद्देश्य आदेशिका के मुद्दे को उचित ठहराने के उद्देश्य से शिकायत की प्रकृति का निर्धारण करना है।