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आपराधिक कानून

वीडियोग्रा फी और फोटोग्राफी का प्रयोग

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 11-Jul-2024

बंटू बनाम राज्य सरकार NCT दिल्ली  

“बदलते समय की आवश्यकता को समझते हुए विधायिका ने अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) पारित कर दी है। अब फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के प्रयोग को अनिवार्य कर दिया गया है”।

न्यायमूर्ति अमित महाजन

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अंतर्गत अब फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी अनिवार्य कर दी गई है।

बंटू बनाम राज्य सरकार, NCT दिल्ली मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • अभियोजन का मामला यह है कि संबंधित पुलिस अधिकारी को सूचना मिली थी कि आवेदक हिमाचल प्रदेश से ला कर दिल्ली में ‘चरस’ की आपूर्ति करता था।
  • छापेमारी की गई और आवेदक को गिरफ्तार कर लिया गया।
  • आरोपी को स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS) की धारा 50 के अंतर्गत नोटिस दिया गया।
  • आरोप है कि तलाशी के दौरान आवेदक के कब्ज़े से एक बैग चरस बरामद किया गया।
  • वर्तमान आवेदन दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 439 के तहत नियमित ज़मानत प्रदान करने की मांग करते हुए दायर किया गया था।
  • ट्रायल कोर्ट ने नियमित ज़मानत आवेदन और वर्तमान आवेदन को अस्वीकार कर दिया।
  • अभियोजन पक्ष का मामला:
    • आवेदक का मामला यह था कि NDPS अधिनियम की धारा 50 के तहत आवेदक को दिये गए नोटिस में 'निकटतम' शब्द नहीं था।
    • आवेदक ने कहा कि स्वतंत्र साक्षियों से पूछताछ नहीं की गई।
    • आवेदक ने यह भी कहा कि पुलिस ने तलाशी की वीडियोग्राफी या फोटोग्राफी भी नहीं कराई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने पहली दलील को स्वीकार नहीं किया और कहा कि राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के समक्ष तलाशी लेने के संदिग्ध व्यक्ति के अधिकार के विषय में सूचित करते समय ‘निकटतम’ शब्द का उल्लेख न करना किसी भी तरह से इस अधिकार को समाप्त नहीं करता है।
  • स्वतंत्र साक्षियों से पूछताछ न करने के संबंध में न्यायालय ने कई निर्णयों का उदाहरण दिया।
    • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि यद्यपि पुलिस अधिकारियों की विश्वसनीय साक्षी दोषसिद्धि का आधार बन सकती है, किंतु स्वतंत्र गवाहों से पुष्टि न मिलने के कारण न्यायालय पर सावधानी बरतने का दायित्व आ जाता है।
  • अंत में, अंतिम तर्क पर न्यायालय ने माना कि मात्र वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी का अभाव अभियोजन पक्ष के मामले को निरस्त नहीं करता है, परंतु इससे अभियोजन पक्ष के मामले की सत्यता पर संदेह पैदा हो सकता है।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि विधानमंडल ने अब BNSS पारित कर दिया है, जिसके अधीन वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी अनिवार्य है।
    • फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी को साक्ष्यों की बेहतर समझ तथा मूल्यांकन के लिये सर्वोत्तम पद्धतियों के रूप में सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाता है।
    • इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि अभियोजन पक्ष जाँच के दौरान बरामदगी का बेहतर दस्तावेज़ीकरण करने में सक्षम हो।
    • BNSS में प्रावधान है कि तलाशी और ज़ब्ती की कार्यवाही ऑडियो-वीडियो माध्यम से, अधिमान रूप में, मोबाइल फोन के माध्यम से रिकॉर्ड की जाएगी।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि आवेदक के वाद में काफी विलंब हुआ है।
  • अतः न्यायालय ने अंततः आवेदक को ज़मानत दे दी।

CrPC की धारा 439 के अधीन ज़मानत

  • CrPC की धारा 439 में उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय को ज़मानत देने के लिये विशेष शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
  • उपधारा (1) में प्रावधान है कि उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय निर्देश दे सकता है-
    • किसी अपराध के आरोपी और अभिरक्षा में लिये गए किसी व्यक्ति को ज़मानत पर रिहा किया जाएगा और यदि अपराध धारा 437 की उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट प्रकृति का है तो वह कोई भी शर्त लगा सकेगा जिसे वह उस उपधारा में उल्लिखित प्रयोजनों के लिये आवश्यक समझे;
    • किसी व्यक्ति को ज़मानत पर रिहा करते समय मजिस्ट्रेट द्वारा लगाई गई किसी भी शर्त को रद्द या संशोधित किया जाए :
    • परंतु उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो किसी ऐसे अपराध का अभियुक्त है जो अनन्यतः सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है या जो यद्यपि इस प्रकार विचारणीय नहीं है, तथापि आजीवन कारावास से दण्डनीय है, ज़मानत देने के पूर्व, ज़मानत के लिये आवेदन की सूचना लोक अभियोजक को देगा जब तक कि लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से उसकी यह राय न हो कि ऐसी सूचना देना साध्य नहीं है।
    • आगे यह भी प्रावधान है कि उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 की उपधारा (3) या धारा 376 AB या धारा 376 DA या धारा 376 DB के अधीन विचारणीय अपराध का आरोपी है, ज़मानत देने से पूर्व, ज़मानत के लिये आवेदन की सूचना ऐसे आवेदन की सूचना प्राप्त होने की तिथि से पंद्रह दिन की अवधि के भीतर लोक अभियोजक को देगा।
    • उप-धारा (1A) में यह प्रावधान है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 की उप-धारा (3) या धारा 376 AB या धारा 376 DA या धारा 376 DB के अधीन व्यक्ति को ज़मानत के लिये आवेदन की सुनवाई के समय सूचना देने वाले या उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति की उपस्थिति अनिवार्य होगी।
  • उपधारा (2) में यह प्रावधान है कि उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय यह निर्देश दे सकता है कि इस अध्याय के अंतर्गत ज़मानत पर रिहा किये गए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए तथा उसे अभिरक्षा में सौंपा जाए।
  • BNSS की धारा 483 के अधीन भी यही प्रावधान है।

CrPC के तहत तलाशी और ज़ब्ती के प्रावधान क्या हैं?

  • CrPC की धारा 100 में बंद स्थान के प्रभारी व्यक्ति को तलाशी लेने की अनुमति देने से संबंधित प्रावधान दिये गए हैं।
  • यह प्रावधान BNSS की धारा 103 के अंतर्गत रखा गया है।
    • उपधारा (1) में यह उपबंध है कि जब कभी इस अध्याय के अधीन तलाशी या निरीक्षण के योग्य कोई स्थान बंद कर दिया जाता है, तो ऐसे स्थान में निवास करने वाला या उसका भारसाधक कोई व्यक्ति, वारंट निष्पादित करने वाले अधिकारी या अन्य व्यक्ति की मांग पर और वारंट प्रस्तुत किये जाने पर, उसे वहाँ अबाध प्रवेश देगा तथा वहाँ तलाशी के लिये सभी युक्तियुक्त सुविधाएँ प्रदान करेगा।
    • उपधारा (2) में यह प्रावधान है कि यदि ऐसे स्थान में प्रवेश इस प्रकार प्राप्त नहीं किया जा सकता है, तो वारंट निष्पादित करने वाला अधिकारी या अन्य व्यक्ति धारा 47 की उपधारा (2) द्वारा प्रदान की गई रीति से कार्यवाही कर सकता है।
    • उपधारा (3) में यह प्रावधान है कि जहाँ किसी ऐसे स्थान में या उसके आस-पास किसी व्यक्ति के विषय में यह उचित संदेह हो कि उसने अपने पास कोई वस्तु छिपा रखी है, जिसकी तलाशी ली जानी चाहिये, तो ऐसे व्यक्ति की तलाशी ली जा सकेगी और यदि वह व्यक्ति महिला है, तो तलाशी उसकी शालीनता का पूरा ध्यान रखते हुए किसी अन्य महिला द्वारा की जाएगी।
    • उपधारा (4) में यह उपबंध है कि इस अध्याय के अधीन तलाशी लेने से पूर्व, तलाशी लेने वाला अधिकारी या अन्य व्यक्ति उस स्थान के, जिसमें तलाशी लिया जाने वाला स्थान स्थित है, दो या अधिक स्वतंत्र और प्रतिष्ठित निवासियों को या किसी अन्य स्थान के दो या अधिक स्वतंत्र तथा प्रतिष्ठित निवासियों को, यदि उक्त स्थान का ऐसा कोई निवासी उपलब्ध नहीं है या तलाशी का साक्षी होने के लिये सहमत नहीं है, तलाशी में उपस्थित होने एवं उसे देखने के लिये बुलाएगा और उन्हें या उनमें से किसी को ऐसा करने के लिये लिखित आदेश जारी कर सकेगा।
    • उपधारा (5) में यह उपबंध है कि तलाशी उनकी उपस्थिति में की जाएगी और ऐसी तलाशी के दौरान अभिगृहीत सभी चीज़ों की तथा उन स्थानों की, जहाँ वे क्रमशः पाई गई हैं, सूची ऐसे अधिकारी या अन्य व्यक्ति द्वारा तैयार की जाएगी तथा ऐसे साक्षियों द्वारा हस्ताक्षरित की जाएगी; किंतु इस धारा के अधीन तलाशी का साक्षी होने वाले किसी व्यक्ति से यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह तलाशी के साक्षी के रूप में न्यायालय में उपस्थित हो, जब तक कि न्यायालय द्वारा उसे विशेष रूप से नहीं बुलाया जाए।
    • उपधारा (6) में यह प्रावधान है कि जिस स्थान की तलाशी ली जा रही है, उसके अधिभोगी को या उसकी ओर से किसी व्यक्ति को प्रत्येक दशा में तलाशी के दौरान उपस्थित रहने की अनुमति दी जाएगी और इस धारा के अधीन तैयार की गई सूची की एक प्रति, उक्त साक्षियों द्वारा हस्ताक्षरित, ऐसे अधिभोगी या व्यक्ति को दी जाएगी।
    • उपधारा (7) में यह प्रावधान है कि जब किसी व्यक्ति की उपधारा (3) के अधीन तलाशी ली जाती है तो कब्ज़े में ली गई सभी चीज़ों की सूची तैयार की जाएगी और उसकी एक प्रति ऐसे व्यक्ति को दी जाएगी।
    • उप-धारा (8) में यह प्रावधान है कि कोई व्यक्ति जो बिना किसी उचित कारण के, इस धारा के अधीन तलाशी में उपस्थित होने और उसे देखने से प्रतिषेध करता है या उपेक्षा करता है, जब उसे लिखित आदेश द्वारा ऐसा करने के लिये कहा जाता है, तो उसे भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 187 के अधीन अपराध किया हुआ समझा जाएगा।
  • CrPC की धारा 165 में पुलिस अधिकारी द्वारा तलाशी का प्रावधान-
    • उपधारा (1) में यह उपबंध है कि जब कभी किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के पास यह विश्वास करने के लिये युक्तियुक्त आधार हों कि किसी अपराध के अन्वेषण के प्रयोजनों के लिये आवश्यक कोई बात, जिसका अन्वेषण करने के लिये वह प्राधिकृत है, उस पुलिस थाने की सीमाओं के भीतर किसी स्थान में मिल सकती है जिसका वह भारसाधक है या जिससे वह संबद्ध है, और उसकी राय में ऐसी बात बिना असम्यक् विलंब के अन्यथा प्राप्त नहीं की जा सकती, तो ऐसा अधिकारी अपने विश्वास के आधारों को लेखबद्ध करने के पश्चात् और जहाँ तक ​​संभव हो, उस बात को ऐसे लेख में विनिर्दिष्ट करने के पश्चात्, जिसके लिये तलाशी की जानी है, ऐसे थाने की सीमाओं के भीतर किसी स्थान में ऐसी बात के लिये तलाशी ले सकता है या तलाशी करा सकता है।
    • उपधारा (2) में यह प्रावधान है कि उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही करने वाला पुलिस अधिकारी, यदि साध्य हो, स्वयं तलाशी लेगा।
    • उपधारा (3) में यह उपबंध है कि यदि वह स्वयं तलाशी लेने में असमर्थ है और उस समय तलाशी लेने के लिये सक्षम कोई अन्य व्यक्ति उपस्थित नहीं है, तो वह ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करने के पश्चात् अपने अधीनस्थ किसी अधिकारी से तलाशी लेने की अपेक्षा कर सकेगा तथा वह ऐसे अधीनस्थ अधिकारी को लिखित आदेश देगा, जिसमें तलाशी लेने का स्थान एवं जहाँ तक ​​संभव हो, वह चीज़ जिसके लिये तलाशी ली जानी है, विनिर्दिष्ट किया जाएगा व ऐसा अधीनस्थ अधिकारी तत्पश्चात् ऐसी चीज़ के लिये ऐसे स्थान में तलाशी ले सकेगा।
    • उपधारा (4) में यह प्रावधान है कि तलाशी वारंट के संबंध में इस संहिता के प्रावधान तथा धारा 100 में निहित तलाशी के संबंध में साधारण प्रावधान, जहाँ तक ​​हो सके, इस धारा के अधीन की गई तलाशी पर लागू होंगे।
    • उपधारा (5) में यह प्रावधान है कि उपधारा (1) या उपधारा (3) के अधीन बनाए गए किसी अभिलेख की प्रतियाँ, अपराध का संज्ञान लेने के लिये सक्षम निकटतम मजिस्ट्रेट को तत्काल भेजी जाएंगी और तलाशी लिये गए स्थान के स्वामी या अधिभोगी को आवेदन किये जाने पर मजिस्ट्रेट द्वारा उसकी एक प्रति निशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी।

CrPC की धारा 165 और BNSS की धारा 185 के बीच तुलना?

  • दोनों प्रावधानों का तुलनात्मक विश्लेषण निम्न प्रकार है:

CrPC की धारा 165

BNSS की धारा 185

(1) जब कभी किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के पास यह विश्वास करने के लिये उचित आधार हों कि किसी अपराध के अन्वेषण के प्रयोजनों के लिये आवश्यक कोई बात, जिसका अन्वेषण करने के लिये वह प्राधिकृत है, उस पुलिस थाने की सीमाओं के भीतर किसी स्थान में मिल सकती है जिसका वह भारसाधक है या जिससे वह संबद्ध है, और ऐसी बात उसकी राय में बिना अनुचित विलंब के अन्यथा प्राप्त नहीं की जा सकती, तो ऐसा अधिकारी अपने विश्वास के आधारों को लेखबद्ध करने के पश्चात् और जहाँ तक ​​संभव हो, उस बात को लेखबद्ध करके, जिसके लिये तलाशी की जानी है, विनिर्दिष्ट करने के पश्चात्, ऐसे थाने की सीमाओं के भीतर किसी स्थान में ऐसी बात के लिये तलाशी ले सकता है या तलाशी करवा सकता है।

(1) जब कभी किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के पास यह विश्वास करने के लिये युक्तियुक्त आधार हों कि किसी अपराध के अन्वेषण के प्रयोजनों के लिये आवश्यक कोई बात, जिसका अन्वेषण करने के लिये वह प्राधिकृत है, उस पुलिस थाने की सीमाओं के भीतर किसी स्थान में मिल सकती है जिसका वह भारसाधक है या जिससे वह संबद्ध है, और उसकी राय में ऐसी बात बिना असम्यक् विलंब के अन्यथा प्राप्त नहीं की जा सकती, तो ऐसा अधिकारी अपने विश्वास के आधारों को केस डायरी में लेखबद्ध करने के पश्चात् और जहाँ तक ​​संभव हो, उस बात को लेखबद्ध करके, जिसके लिये तलाशी की जानी है, उस थाने की सीमाओं के भीतर किसी स्थान में ऐसी बात के लिये तलाशी ले सकता है या तलाशी करा सकता है।

(2) उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही करने वाला पुलिस अधिकारी, यदि संभव हो, स्वयं तलाशी लेगा।

(2) उप-धारा (1) के अधीन कार्यवाही करने वाला पुलिस अधिकारी, यदि संभव हो, तो स्वयं तलाशी लेगा:

बशर्ते कि इस धारा के अधीन की गई तलाशी ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों, अधिमानतः मोबाइल फोन द्वारा रिकॉर्ड की जाएगी।

 दोनों में खंड (3) समान है

खंड (4) दोनों में समान है

(5) उपधारा (1) या उपधारा (3) के अधीन बनाए गए किसी अभिलेख की प्रतियाँ तुरंत निकटतम मजिस्ट्रेट को भेजी जाएंगी, जो अपराध का संज्ञान लेने के लिये सक्षम हो, और तलाशी लिये गए स्थान के स्वामी या अधिभोगी को, आवेदन किये जाने पर, मजिस्ट्रेट द्वारा उसकी एक प्रति निशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी।

(5) उपधारा (1) या उपधारा (3) के अधीन बनाए गए किसी अभिलेख की प्रतियाँ तुरंत, किंतु अड़तालीस घंटे के भीतर, अपराध का संज्ञान लेने के लिये सक्षम निकटतम मजिस्ट्रेट को भेजी जाएंगी और तलाशी लिये गए स्थान के स्वामी या अधिभोगी को, आवेदन किये जाने पर, मजिस्ट्रेट द्वारा उसकी एक प्रति निशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी।

BNSS के अंतर्गत जाँच और परीक्षण के लिये ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों के संबंध में क्या प्रावधान हैं?

  • BNSS की धारा 105 में प्रावधान है कि ‘ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से तलाशी और ज़ब्ती की रिकॉर्डिंग’ के साथ-साथ ज़ब्त की गई वस्तुओं की सूची अधिकारियों को भेजी जानी चाहिये:
    • इस अध्याय या धारा 185 के अधीन किसी स्थान की तलाशी लेने या किसी संपत्ति, वस्तु या चीज़ को कब्ज़े में लेने की प्रक्रिया, जिसके अंतर्गत ऐसी तलाशी और ज़ब्ती के दौरान ज़ब्त की गई सभी चीज़ों की सूची तैयार करना और साक्षियों द्वारा ऐसी सूची पर हस्ताक्षर करना भी है, किसी भी ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम, अधिमानतः मोबाइल फोन के माध्यम से रिकॉर्ड की जाएगी और पुलिस अधिकारी बिना विलंब किये ऐसी रिकॉर्डिंग को ज़िला मजिस्ट्रेट, सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजेगा।
  • BNSS की धारा 183 (जो स्वीकारोक्ति को रिकॉर्ड करने का प्रावधान करती है) के प्रावधान में 'हो सकता है' शब्द शामिल है, जो मजिस्ट्रेट के लिये ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से स्वीकारोक्ति और बयान रिकॉर्ड करना वैकल्पिक बनाता है।
  • BNSS की धारा 176(3) में सात वर्ष या उससे अधिक के दण्ड वाले सभी अपराधों में फोरेंसिक साक्ष्य एकत्र करने और मोबाइल फोन या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पर प्रक्रिया की वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया गया है।
  • BNSS की धारा 180 के अधीन पुलिस के समक्ष साक्षियों के बयान की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग का प्रावधान है, परंतु पुलिस अधिकारी के पास यह विकल्प विवेकाधीन रहता है।
  • BNSS की धारा 54 के अंतर्गत परीक्षण पहचान परेड की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग का प्रावधान किया गया है।
  • आरोपी व्यक्ति को आरोपों के विषय में बताने और समझाने के लिये ऑडियो-वीडियो माध्यम का उपयोग BNSS की धारा 251(2) द्वारा किया गया है।
  • BNSS की धारा 254, सत्र मामलों में साक्ष्य जमा करने या साक्षियों, पुलिस अधिकारियों, लोक सेवकों या विशेषज्ञों के बयानों के लिये ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों के उपयोग की अनुमति देती है।
  • BNSS की धारा 265 और 266 राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित निर्दिष्ट स्थान पर ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से साक्षी की जाँच की अनुमति देती है।
  • BNSS की धारा 308 इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से अभियुक्तों की जाँच करने का अधिकार देती है, विशेष रूप से राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट किसी भी स्थान पर सुलभ ऑडियो-वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (VC) सुविधाओं का उपयोग करके।
  • BNSS की धारा 336, लोक सेवक की साक्षी के लिये ऑडियो-वीडियो माध्यमों के उपयोग की अनुमति देती है।