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पारिवारिक कानून
प्रसांत कुमार साहू बनाम चारुलता साहू 2023 INSC 319
« »16-Jul-2024
परिचय:
इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने सभी पक्षों द्वारा हस्ताक्षर न किये जाने के कारण निपटान विलेख को अवैध घोषित कर दिया।
तथ्य:
- इस मामले में, स्वर्गीय श्री प्रसांत कुमार साहू के तीन संतान थे, सुश्री चारुलता (बेटी), सुश्री शांतिलाल (बेटी) एवं श्री प्रफुल्ल (पुत्र)।
- सुश्री चारुलता ने अपने पिता की पैतृक संपत्ति के बँटवारे के लिये ट्रायल कोर्ट में वाद संस्थित किया, जिसमें ट्रायल कोर्ट ने आदेश दिया।
- श्री साहू की पैतृक संपत्ति का 1/6वाँ हिस्सा और स्व-अर्जित संपत्ति का 1/3 हिस्सा दोनों बेटियों के पक्ष में अंतःकालीन लाभ के साथ।
- श्री साहू की पैतृक संपत्ति का 4/6वाँ हिस्सा और स्व-अर्जित संपत्ति का 1/3 हिस्सा बेटे के पक्ष में अंतःकालीन लाभ के साथ।
- ट्रायल कोर्ट के निर्णय के अनुपालन में याचिकाकर्त्ता (पुत्र) ने उड़ीसा उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष एक अपील दायर की जिसमें कहा गया कि श्री प्रशांत कुमार साहू की सभी संपत्तियाँ केवल पैतृक संपत्ति थीं।
- अपील के लंबित रहने के दौरान वादी एवं सुश्री शांतिलाल ने एक समझौता किया, जिसमें सुश्री शांतिलाल ने संयुक्त संपत्ति में अपना पूरा हिस्सा 50,000 रुपए के बदले में वादी के पक्ष में छोड़ दिया।
- हालाँकि प्रतिवादी (बेटी: सुश्री चारुलता) द्वारा समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये गए थे।
- प्रतिवादी ने समझौता विलेख की वैधता पर प्रश्न करते हुए उच्च न्यायालय के समक्ष समानांतर अपील दायर की।
- वादी ने समझौता याचिका दायर की तथा उच्च न्यायालय ने समझौता विलेख को वैध ठहराया।
- वादी द्वारा उड़ीसा उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष एक लेटर्स पेटेंट अपील इसी मुद्दे के साथ दायर की गई थी कि श्री साहू की सभी संपत्तियाँ केवल पैतृक संपत्ति थीं, जिसका पहले की अपीलों में निपटान नहीं किया गया था।
- उच्च न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया तथा निपटान विलेख को अमान्य कर दिया।
- उच्च न्यायालय के निर्णय से असंतुष्ट वादी ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
शामिल मुद्दे:
- क्या हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की प्रतिस्थापित धारा 6 उन मामलों में लागू होगी जहाँ संशोधन अधिनियम, 2005 के लागू होने से पहले ही पुरुष सहदायिक की मृत्यु हो चुकी थी?
- क्या संयुक्त संपत्ति में सभी पक्षों को विलेख पर हस्ताक्षर करना आवश्यक है, भले ही केवल दो पक्षों के मध्य अधिकार का अंतरण या निपटान हो?
टिप्पणी:
- उच्चतम न्यायालय ने विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा एवं अन्य (2020) के निर्णय पर ज़ोर दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि अपील के लंबित रहने के दौरान या प्रारंभिक डिक्री या अंतिम डिक्री पारित होने के बीच प्रचलित विधि में कोई संशोधन किया जाता है तो न्यायालय द्वारा अंतिम डिक्री बनाते समय संशोधन प्रावधानों पर विचार किया जा सकता है।
- उच्चतम न्यायालय ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XXIII नियम 3 के अनुसार देखा कि कोई भी समझौता या निपटान लिखित रूप में होना चाहिये तथा सभी पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिये।
निष्कर्ष:
- उच्चतम न्यायालय ने 2005 के संशोधन के आधार पर अंतिम निर्णय में बदलाव किया।
- उच्चतम न्यायालय ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XXIII नियम 3 के अनुसार संयुक्त संपत्ति में सभी सह-स्वामियों द्वारा हस्ताक्षर न किये जाने पर विलेख को अविधिक माना।