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कार्यवाही साथ-साथ जारी रह सकती हैं

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 30-Nov-2023

न्यूटन इंजीनियरिंग एंड केमिकल्स लिमिटेड और अन्य बनाम यूईएम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड।

NI अधिनियम की धारा 138 के तहत मध्यस्थता कार्यवाही और कार्यवाही कार्रवाई के अलग-अलग कारणों से उत्पन्न होती है और एक के लंबित रहने से दूसरे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।"

न्यायमूर्ति अमित बंसल

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यूटन इंजीनियरिंग एंड केमिकल्स लिमिटेड और अन्य बनाम यूईएम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि मध्यस्थता की कार्यवाही और परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI अधिनियम) की धारा 138 के तहत कार्यवाही कार्रवाई के अलग-अलग कारणों से उत्पन्न होती है और एक के लंबित रहने से दूसरे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

न्यूटन इंजीनियरिंग एंड केमिकल्स लिमिटेड और अन्य बनाम यूईएम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी कंपनी के बीच 19 जून, 2014 को समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए।
  • प्रतिवादी कंपनी को तकनीकी सहयोगी के रूप में भाग लेना था और याचिकाकर्ता को अपनी विशेषज्ञता प्रदान करनी थी।
  • याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रतिवादी कंपनी को एक पोस्ट-डेटेड चेक की तिथि दी गई थी।
  • याचिकाकर्ताओं ने ई-मेल के जरिये प्रतिवादी कंपनी से उपर्युक्त चेक जमा नहीं करने को कहा। हालाँकि प्रतिवादी कंपनी ने उक्त चेक जमा कर दिया।
  • चूँकि उपर्युक्त चेक बाउंस हो गया था, प्रतिवादी कंपनी द्वारा NI अधिनियम की धारा 138 के तहत एक शिकायत दायर की गई थी जिसमें संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा याचिकाकर्ताओं को समन जारी किये गए थे।
  • इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष NI अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत को रद्द करने की मांग करते हुए याचिका दायर की गई, जिसे बाद में खारिज़ कर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति अमित बंसल ने कहा कि NI अधिनियम की धारा 138 के तहत मध्यस्थता कार्यवाही और कार्यवाही कार्रवाई के अलग-अलग कारणों से उत्पन्न होती है और एक के लंबित रहने से दूसरे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि याचिकाकर्ताओं के इस तर्क में कोई दम नहीं है कि पार्टियों के बीच चल रही मध्यस्थता कार्यवाही को ध्यान में रखते हुए NI अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है।

NI अधिनियम की धारा 138 क्या है?

  • यह धारा खाते में धनराशि की कमी आदि के लिये चेक की अस्वीकृति से संबंधित है। यह प्रकट करती है कि-
  • जहाँ किसी व्यक्ति द्वारा किसी बैंकर के पास रखे गए खाते पर किसी ऋण या अन्य देनदारी के पूर्ण या आंशिक भुगतान के लिये उस खाते से किसी अन्य व्यक्ति को किसी भी राशि का भुगतान करने के लिये निकाला गया चेक वापस कर दिया जाता है। बैंक द्वारा अवैतनिक, या तो उस खाते में जमा धनराशि चेक का भुगतान करने के लिये अपर्याप्त है या यह उस बैंक के साथ किये गए समझौते द्वारा उस खाते से भुगतान की जाने वाली राशि से अधिक है, ऐसे व्यक्ति को अपराध किया गया माना जाएगा व इस अधिनियम के किसी भी अन्य प्रावधान पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या ज़ुर्माना जो चेक की राशि से दोगुना तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों:
  • बशर्ते कि इस धारा में निहित कोई भी बात तब तक लागू नहीं होगी जब तक-
    (a) चेक को निकाले जाने की तिथि से छह महीने की अवधि के भीतर या उसकी वैधता की अवधि के भीतर, जो भी पहले हो, बैंक में प्रस्तुत किया गया हो;
    (b) चेक प्राप्तकर्त्ता या धारक, जैसा भी मामला हो, चेक के अवैतनिक रूप में वापस आने के संबंध में बैंक से उसे सूचना प्राप्त होने के तीस दिनों के भीतर, चेक जारीकर्त्ता को लिखित रूप में एक नोटिस देकर उक्त धनराशि के भुगतान की मांग करता है; और
    (c) ऐसे चेक को जारी करने वाला, उक्त नोटिस की प्राप्ति के पंद्रह दिनों के भीतर, चेक के उचित क्रम में प्राप्तकर्त्ता को या, जैसा भी मामला हो, धारक को उक्त राशि का भुगतान करने में विफल रहता है।
  • स्पष्टीकरण: इस धारा के प्रयोजनों के लिये ऋण या अन्य दायित्व का अर्थ विधिक रूप से लागू करने योग्य ऋण या अन्य दायित्व है।