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आपराधिक कानून

दस्तावेज़ों को पेश करना

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 21-Dec-2023

डॉ. सुबलेंदु प्रकाश दिवाकर बनाम महाराष्ट्र राज्य

"CrPC की धारा 91 के अनुसार, आरोप तय करने के चरण में एक अभियुक्त अन्वेषण अधिकारी को स्वेच्छा से प्रस्तुत संभावित दोषमुक्ति दस्तावेज़ों को पेश करने की मांग कर सकता है।"

न्यायमूर्ति भारती डांगरे

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में डॉ. सुबलेंदु प्रकाश दिवाकर बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code- CrPC) की धारा 91 के प्रावधानों के अनुसार, आरोप तय करने के चरण में अभियुक्त स्वेच्छा से अन्वेषण अधिकारी को सौंपे गए संभावित दोषमुक्ति दस्तावेज़ों को पेश करने की मांग कर सकता है, भले ही उसके पास दस्तावेज़ हों।

डॉ. सुबलेंदु प्रकाश दिवाकर बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • इस मामले में, याचिकाकर्त्ता को भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code- IPC) की धारा 376 506 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) की धारा 66 (E) के तहत दंडनीय अपराधों के लिये अभियुक्त के रूप में दोषी ठहराया गया है।
  • याचिकाकर्त्ता की शिकायत यह है कि 7 जनवरी, 2022 को जब ट्रायल कोर्ट के समक्ष चार्ज-शीट दायर की गई थी, तो अन्वेषण अधिकारी ने जानबूझकर जाँच के दौरान उनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ों को रोक दिया था और याचिकाकर्ता को निष्पक्ष जाँच तथा चार्ज-शीट के साथ न्यायालय के समक्ष इन दस्तावेज़ों को पेश करने की उम्मीद थी।
  • इसके बाद, CrPC की धारा 91 r/w 165 भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act- IEA) के तहत अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया था, जिसमें जाँच के दौरान अन्वेषण अधिकारी द्वारा ज़ब्त किये गए दस्तावेज़ों को पेश करने की मांग की गई थी।
  • इस अर्ज़ी को अपर सत्र न्यायाधीश ने खारिज़ कर दिया।
  • इससे व्यथित होकर, याचिकाकर्त्ता ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को रद्द करने और खारिज़ करने के लिये बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की है।
  • उच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने कहा कि CrPC की धारा 91 के तहत, एक अभियुक्त आरोप तय करने के चरण में, स्वेच्छा से अन्वेषण अधिकारी को सौंपे गए संभावित दोषमुक्ति दस्तावेज़ों को पेश करने की मांग कर सकता है, भले ही उसके पास दस्तावेज़ हों और उसने अन्वेषण अधिकारी को प्रतियाँ सौंपी हों।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि इस चरण में इस बारे में स्पष्टीकरण दिया जाएगा कि अभियुक्त द्वारा कौन-से दस्तावेज़ प्रस्तुत किये गए हैं क्योंकि परीक्षण के समय, अन्वेषण अधिकारी दस्तावेज़/सामग्री तथा उसकी विषय-वस्तु पर विवाद कर सकता है और इसलिये यदि अभियुक्त/याचिकाकर्त्ता का आशय है तो आरोप तय करते समय प्रस्तुत किये गए ये दस्तावेज़, बशर्ते कि न्यायालय मुकदमे के उद्देश्य के लिये इसकी आवश्यकता और वांछनीयता के बारे में संतुष्ट हो, ऐसा आवेदन मंज़ूर किया जाना चाहिये।

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

CrPC की धारा 91:

  • यह धारा दस्तावेज़ या अन्य चीज़ पेश करने के लिये समन से संबंधित है। यह प्रकट करती है कि -
    (1) जब कभी कोई न्यायालय या पुलिस थाने का कोई भारसाधक अधिकारी यह समझता है कि किसी ऐसे अन्वेषण, जाँच, विचारण, या अन्य कार्यवाही के प्रयोजनों के लिये, जो इस संहिता के अधीन ऐसे न्यायालय या अधिकारी के द्वारा या समक्ष हो रही है, किसी दस्तावेज़ या अन्य चीज़ का पेश किया जाना आवश्यक या वांछनीय है तो जिस व्यक्ति के कब्ज़े या शक्ति में ऐसी दस्तावेज़ या चीज़ के होने का विश्वास है उसके नाम ऐसा न्यायालय एक समन या ऐसा अधिकारी एक लिखित आदेश उससे यह अपेक्षा करते हुए जारी कर सकता है कि उस समन या आदेश में उल्लिखित समय और स्थान पर उसे पेश करे अथवा हाजिर हो और उसे पेश करे।
    (2) यदि कोई व्यक्ति, जिससे इस धारा के अधीन दस्तावेज़ या अन्य चीज़ पेश करने की ही अपेक्षा की गई है उसे पेश करने के लिये स्वयं हाज़िर होने के बजाय उस दस्तावेज़ या चीज़ को पेश करवा दे तो यह समझा जाएगा कि उसने उस अपेक्षा का अनुपालन कर दिया है।
    (3) इस धारा की कोई भी बात -
    (a) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और धारा 124 या बैंककार बही साक्ष्य अधिनियम, 1891 (1891 का 13) पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी, अथवा
    (b) डाक या तार प्राधिकारी की अभिरक्षा में किसी पत्र, पोस्टकार्ड, तार या अन्य दस्तावेज़ या किसी पार्सल या चीज़ को लागू होने वाली नही समझी जाएगी।

IEA की धारा 165

  • यह धारा न्यायाधीश की प्रश्न करने या पेश करने का आदेश देने की न्यायाधीश की शक्ति से संबंधित है। यह प्रकट करती है कि -
  • न्यायाधीश सुसंगत तथ्यों का पता चलाने के लिये या उनका उचित सबूत अभिप्राप्त करने के लिये, किसी भी रूप में किसी भी समय किसी भी साक्षी या पक्षकारों से किसी भी सुसंगत या विसंगत तथ्य के बारे में कोई भी प्रश्न, जो वह चाहे, पूछ सकेगा, तथा किसी भी दस्तावेज़ या चीज़ को पेश करने का आदेश दे सकेगा ; और न तो पक्षकार और न उनके अभिकर्त्ता हकदार होंगे कि वह किसी भी ऐसे प्रश्न या आदेश के प्रति कोई भी आक्षेप करें, न ऐसे किसी भी प्रश्न के प्रत्युत्तर में दिये गए किसी भी उत्तर पर किसी भी साक्षी की न्यायालय की इजाज़त के बिना प्रतिरीक्षा करने के हकदार होंगे :
  • परंतु निर्णय को उन तथ्यों पर, जो इस अधिनियम द्वारा सुसंगत घोषित किये गए हैं और जो सम्यक् रूप से साबित किये गए हों, आधारित होना होगा :
  • परंतु यह भी कि न तो यह धारा न्यायाधीश को किसी साक्षी को किसी ऐसे प्रश्न का उत्तर देने के लिये या किसी ऐसी दस्तावेज़ को पेश करने को विवश करने के लिये प्राधिकृत करेगी, जिसका उत्तर देने से या जिसे पेश करने से, यदि प्रतिपक्षी द्वारा वह प्रश्न पूछा गया होता या वह दस्तावेज़ मंगाया गया होती, तो ऐसा साक्षी दोनों धाराओं को सम्मिलित करते हुए धारा 121 से धारा 131 पर्यन्त धाराओं के अधीन इनकार करने का हकदार होता; और न न्यायाधीश कोई ऐसा प्रश्न पूछेगा जिसका पूछना किसी अन्य व्यक्ति के लिये धारा 148 और 149 के अधीन अनुचित होता; और न वह एतस्मिन्पूर्व अपवादित दशाओं के सिवाय किसी भी दस्तावेज़ के प्राथमिक साक्ष्य का दिया जाना अभिमुक्त करेगा ।

IT अधिनियम की धारा 66(E):

  • यह धारा निजता के उल्लंघन पर दंड से संबंधित है। यह प्रकट करती है कि -
  • जो कोई जानबूझकर किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन करने वाली परिस्थितियों में उसकी सहमति के बिना उसके निजी क्षेत्र की छवि को कैप्चर, प्रकाशित या प्रसारित करता है, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जो तीन वर्ष तक बढ़ सकता है या ऐसे व्यक्ति को दो लाख रुपए से अधिक का ज़ुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
  • स्पष्टीकरण– इस अनुभाग के प्रयोजनों के लिये--
    (a) ट्रांसमिट (Transmit) का अर्थ इलेक्ट्रॉनिक रूप से एक दृश्य छवि को इस आशय से भेजना है कि इसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा देखा जाए।
    (b) किसी छवि के संबंध में कैप्चर करने का अर्थ किसी भी माध्यम से वीडियोटेप, फोटोग्राफ, फिल्म या रिकॉर्ड करना है।
    (c) ‘गुप्तांग’ का अर्थ है नग्न या अंडरवियर पहने हुए जननांग, जघन क्षेत्र, नितंब या महिला का स्तन।
    (d) प्रकाशन (Publishes) का अर्थ है मुद्रित या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रत्युत्पादन और इसे जनता के लिये उपलब्ध कराना।
    (e) निजता का उल्लंघन करने वाली परिस्थितियों का अर्थ है ऐसी परिस्थितियाँ जिनमें कोई व्यक्ति उचित अपेक्षा कर सकता है कि–
    (i) वह निजता में अपने परिधान बदल सकता है, बिना इस चिंता के कि उसके निजी अंग के चित्र खींचे जा रहे हैं; या
    (ii) उसके निजी अंग का कोई भी हिस्सा जनता को दिखाई नहीं देगा, भले ही वह व्यक्ति सार्वजनिक या निजी स्थान पर हो।