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वाणिज्यिक विधि

समझौता विलेख के पश्चात् धारा 138 की शिकायत को रद्द करना

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 09-Jan-2024

घनश्याम गौतम बनाम उषा रानी (मृतक) L.R.S रविशंकर के माध्यम से

"एक बार जब पार्टियों के बीच समझौता विलेख निष्पादित हो जाता है, तो चेक के अनादरण की शिकायत को रद्द कर दिया जाना चाहिये।"

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और सतीश चंद्र शर्मा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने उस स्थिति का अवलोकन किया जहाँ परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI अधिनियम) की धारा 138 के तहत एक शिकायत को रद्द किया जा सकता है।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी घनश्याम गौतम बनाम उषा रानी (मृतक), L.R.S रविशंकर के माध्यम से, के मामले में दी।

घनश्याम गौतम बनाम उषा रानी (मृतक) L.R.S रविशंकर के माध्यम से मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • NI एक्ट की धारा 138 के तहत कार्यवाही कर अपीलकर्त्ता को दोषी ठहराया गया।
  • इस बीच, पक्षकारों ने अपना हिसाब बराबर कर लिया था और 16 जनवरी, 2018 को एक समझौता विलेख दायर किया था, जिसके अनुसार, प्रतिवादी-शिकायतकर्त्ता चेक राशि और ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए ज़ुर्माने के पूर्ण व अंतिम निपटान के रूप में 1,14,000/- रुपए (एक लाख और चौदह हज़ार रुपए) की राशि स्वीकार करने के लिये सहमत हुए, जिसकी पुष्टि उच्च न्यायालय ने की थी।
  • फिर भी, प्रतिवादी पक्ष की ओर से किसी ने भी न्यायालय को जानकारी प्रस्तुत नहीं की क्योंकि मामला 2018 से अभी भी लंबित है।

न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि “एक बार जब समझौता हो जाता है तथा शिकायतकर्त्ता द्वारा डिफॉल्ट राशि और ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई ज़ुर्माना राशि के पूर्ण और अंतिम निपटान में एक विशेष राशि स्वीकार करते हुए विलेख पर हस्ताक्षर कर दिया जाता है, तो NI अधिनियम की धारा 138 के तहत कार्यवाही को रद्द करना चाहिये।”
  • न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली।

परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 क्या है?

  • परिचय:
    • NI अधिनियम की धारा 138 विशेष रूप से अपर्याप्त धनराशि के कारण या लेखीवाल के खाते से भुगतान की जाने वाली राशि से अधिक होने पर चेक का अनादरण करने के अपराध से संबंधित है।
    • यह उस प्रक्रिया से संबंधित है जहाँ किसी ऋण को पूरी तरह या आंशिक रूप से चुकाने के लिये लेखीवाल द्वारा जारी किया जाता है और चेक बैंक को वापस कर दिया जाता है।
  • महत्त्वपूर्ण तत्त्व:
    • लेखीवाल का दायित्व:
      • चेक बाउंस/अस्वीकृत चेक होने पर लेखीवाल आपराधिक रूप से उत्तरदायी हो जाता है।
      • अंतर्निहित लेनदेन की प्रकृति से परे आपराधिक दायित्व स्थापित किया जाता है।
    • अपराध के लिये शर्तें:
      • आवश्यक शर्तों में ऋण या अन्य देनदारी का अस्तित्व, चेक जारी करना और उसके बाद उसका अनादरण शामिल है।
      • यदि लेखीवाल के पास पर्याप्त धनराशि है, लेकिन किसी अन्य कारण से चेक अनादरित हो गया है, तो यह अपराध लागू नहीं होता है।
  • अभियोजन की प्रक्रिया:
    • लेखीवाल को नोटिस:
      • भुगतान प्राप्तकर्त्ता को अनादरण के 30 दिनों के भीतर भुगतान की मांग करते हुए एक नोटिस जारी करना चाहिये।
      • स्थिति को सुधारने के लिये लेखीवाल के पास 15 दिन का समय होता है, अन्यथा कानूनी कार्रवाई शुरू की जा सकती है।
    • शिकायत दर्ज करने की समय सीमा:
      • धारा 138 के तहत शिकायत 15 दिन की नोटिस अवधि समाप्त होने के एक महीने के भीतर दर्ज की जानी चाहिये।
    • शिकायत दर्ज करने का क्षेत्राधिकार:
      • शिकायत उस न्यायालय में दायर की जा सकती है जिसके स्थानीय क्षेत्राधिकार में भुगतान प्राप्तकर्त्ता का बैंक स्थित है।
  • सज़ा:
    • कारावास:
      • धारा 138 के तहत दोषसिद्धि होने पर दो वर्ष तक का कारावास हो सकता है।
    • ज़ुर्माना:
      • लेखीवाल को ज़ुर्माना देना पड़ सकता है जो चेक या ऋण की राशि का दोगुना तक हो सकता है।
  • ऐतिहासिक मामला:
    • डालमिया सीमेंट (भारत) लिमिटेड बनाम गैलेक्सी ट्रेडर्स एंड एजेंसीज़ लिमिटेड (2001):
      • उच्चतम न्यायालय ने माना कि जिस तिथि को फैक्स द्वारा भेजा गया नोटिस चेक लेखीवाल के पास पहुँचा, उस दिन 15 दिनों की अवधि (जिसके भीतर उसे भुगतान करना होता है) शुरू हो गई थी और अवधि की समाप्ति पर अपराध हो गया था, जब तक कि इस अवधि में राशि का भुगतान न कर दिया गया हो।