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आपराधिक कानून
स्मृति ताज़ा करना
« »27-Feb-2024
शैलेश कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य “जब कोई पुलिस अधिकारी स्मृति को ताज़ा करने के लिये केस डायरी का हवाला देता है, तो आरोपी को IEA की धारा 145 या धारा 161 के तहत अधिकार प्राप्त हैं।” जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और एस.वी.एन. भट्टी |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत आरोपी केस डायरी के संदर्भ में पुलिस अधिकारी की प्रतिपरीक्षा करा सकता है यदि पुलिस अधिकारी ने उस केस डायरी का उपयोग अपनी स्मृति को ताज़ा करने के लिये किया है।
- उपरोक्त टिप्पणी शैलेश कुमार बनाम यू.पी. राज्य के मामले में की गई थी।
शैलेश कुमार बनाम यूपी राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला वित्तीय विवाद को लेकर अपीलकर्ता द्वारा हमला किये जाने के बाद 21 जून, 1992 को हुई गजेंद्र सिंह की दुखद मौत के इर्द-गिर्द घूमता है।
- अपीलकर्ता द्वारा गजेंद्र पर चाकू से हमला किया गया, जिससे उसकी छाती और पेट पर चोटें आईं।
- प्रारंभिक चिकित्सा उपचार और उसके बाद दूसरे अस्पताल में स्थानांतरण, साथ ही प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने में देरी से जाँच की शुचिता पर सवाल उठे।
- गवाहों की गवाही में विसंगतियों, केस डायरी (अभियोग दैनिकी) में हेरफेर और हमले के पीछे के उद्देश्यों के बारे में संदेह ने मुकदमे को और अधिक जटिल बना दिया।
- वाहन की बरामदगी और पोस्टमार्टम रिपोर्ट जैसे सबूतों पर निर्भरता के बावजूद, बचाव पक्ष ने अपीलकर्ता को बरी करने की वकालत करते हुए जाँच और गवाह विवरण में प्रमुख कमियों को उजागर किया।
- केस डायरी के संबंध में मुख्य विवाद समय, तारीख और पर्याप्त विवरण जैसे महत्त्वपूर्ण विवरणों की अनुपस्थिति के इर्द-गिर्द घूमता है, जिससे एक अपर्याप्त जाँच का संकेत मिलता है।
- अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि न्यायालयों ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1872 (CrPC) की धारा 172 तथा IEA की धारा 145, 161 और 165 के महत्त्व को नज़रअंदाज कर दिया, जिससे सही रिकॉर्ड बनाए रखने के महत्त्व को बल मिलता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब कोई पुलिस अधिकारी स्मृति को ताज़ा करने के लिये केस डायरी का हवाला देता है, तो आरोपी के पास IEA की धारा 145 या धारा 161 के तहत प्रासंगिक भागों के तहत कुछ अधिकार रहते हैं।
- CrPC की धारा 172(3) में स्पष्ट रूप से धारा 145 और 161 का उल्लेख है, जो आरोपियों को लाभ पहुँचाती है।
- इस प्रकार, आरोपी को स्मृति ताज़ा करने के लिये उपयोग की जाने वाली केस डायरी की सामग्री के संबंध में पुलिस अधिकारी की प्रतिपरीक्षा (cross-examine) करने का अधिकार है।
- हालाँकि, डायरी अवलोकन तक सीमित नहीं है, लेकिन धारा 161 इसकी अनुमति देती है।
- इसी तरह, यदि न्यायालय पुलिस अधिकारी का खंडन करने के लिये केस डायरी का उपयोग करता है, तो आरोपी प्रासंगिक बयानों की जाँच और प्रतिपरीक्षा कर सकता है।
- यह अधिकार साक्ष्य अधिनियम की धारा 145, 161 और CrPC की धारा 172(3) के अनुरूप है।
- न्यायालय ने बालकराम बनाम उत्तराखंड राज्य (2017) का हवाला दिया जहाँ उच्चतम न्यायालय ने कहा,
- यदि पुलिस अधिकारी अपनी स्मृति को ताज़ा करने के लिये डायरी की प्रविष्टियों का उपयोग करता है या यदि न्यायालय ऐसे पुलिस अधिकारी का खंडन करने के उद्देश्य से उनका उपयोग करता है, तो IEA की धारा 145 और 161 के प्रावधान, जैसा भी मामला हो, लागू होंगे।
- इसलिये, यह देखा जा सकता है कि पुलिस डायरी में प्रविष्टियों के संदर्भ में पुलिस अधिकारी की प्रतिपरीक्षा करने का आरोपी का अधिकार बहुत सीमित है और वह सीमित दायरा केवल तभी उत्पन्न होता है जब न्यायालय पुलिस अधिकारी का खंडन करने के लिये प्रविष्टियों का उपयोग करता है या जब पुलिस अधिकारी अपनी स्मृति को ताज़ा करने के लिये इसका उपयोग करता है।
कानून के तहत स्मृति ताज़ा करने से संबंधित प्रावधान क्या हैं?
- IEA की धारा 159:
- कोई साक्षी जबकि वह परीक्षा के अधीन है, किसी ऐसे लेख को देख कर, जो कि स्वयं उसने उस संव्यवहार के समय जिसके संबंध में उससे प्रश्न किया जा रहा है, या कुछ समय बाद जब तक न्यायालय इसे संभाव्य समझता हो कि वह संव्यवहार उस समय उसकी स्मृति में ताज़ा था, अपनी स्मृति को ताज़ा कर सकेगा।
- साक्षी उपर्युक्त प्रकार के किसी ऐसे लेख को भी देख सकेगा जो किसी अन्य व्यक्ति द्वारा तैयार किया गया हो और उस साक्षी द्वारा उपर्युक्त समय के भीतर पढ़ा गया हो, यदि वह उस लेख का उस समय जबकि उसने उसे पढ़ा था, सही होना जानता था।
- साक्षी स्मृति को ताज़ा करने के लिये दस्तावेज़ की प्रतिलिपि का उपयोग कब कर सकेगा– जब कभी कोई साक्षी अपनी स्मृति किसी दस्तावेज़ को देखने से ताज़ा कर सकता है, तब वह न्यायालय की अनुज्ञा से ऐसी दस्तावेज़ की प्रतिलिपि को देख सकेगा :
- परंतु यह तब जबकि न्यायालय का समाधान हो गया हो कि मूल को पेश न करने के लिये पर्याप्त कारण है।
- विशेषज्ञ अपनी स्मृति वृत्तिक पुस्तकों को देख कर ताज़ा कर सकेगा।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 162 इसे कवर करती है।
- IEA की धारा 160:
- कोई साक्षी किसी ऐसी दस्तावेज़ में, जैसी धारा 159 में वर्णित है, वर्णित तथ्यों का भी, चाहे उसे स्वयं उन तथ्यों का विनिर्दिष्ट स्मरण नहीं हो, परिसाक्ष्य दे सकेगा, यदि उसे विश्वास है कि वे तथ्य उस दस्तावेज़ में ठीक-ठीक अभिलिखित थे।
- उदाहरण: कोई लेखाकार कारबार के अनुक्रम में नियमित रूप से रखी जाने वाली बहियों में उसके द्वारा अभिलिखित तथ्यों का परिसाक्ष्य दे सकेगा, यदि वह जानता हो कि बहियाँ ठीक-ठीक रखी गई थीं, यद्यपि वह प्रविष्ट किये गए विशिष्ट संव्यवहारी को भूल गया हो।
- IEA की धारा 161:
- पूर्ववर्ती अन्तिम दो धाराओं के उपबंधों के अधीन देखा गया कोई लेख पेश करना और प्रतिपक्षी को दिखाना होगा, यदि वह उसकी अपेक्षा करे। ऐसा पक्षकार, यदि वह चाहे, उस साक्षी से उसके बारे में प्रतिपरीक्षा कर सकेगा ।
- BSA की धारा 164 इस धारा को कवर करती है।