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पारिवारिक कानून
वित्तीय सहायता देने से इनकार करना क्रूरता है
« »18-Jan-2024
X बनाम Y "एक पति जो पत्नी और बच्चों के साथ रहने में रुचि नहीं रखता है, उन्हें कोई वित्तीय सहायता नहीं देता और रेलवे सेवा रजिस्टर में उनका नाम शामिल नहीं करता है, तो यह क्रूरता होगी।" न्यायमूर्ति आर.एम. टी. टीका रमन और पी.बी. बालाजी |
स्रोत: मद्रास उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने माना है कि जो पति पत्नी और बच्चों के साथ रहने में रुचि नहीं रखता है, उन्हें कोई वित्तीय सहायता नहीं देता और रेलवे सेवा रजिस्टर में उनका नाम शामिल नहीं करता है, तो यह क्रूरता होगी।
इस मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, अपीलकर्त्ता पत्नी है, और प्रतिवादी पति है जो लगभग 12 वर्षों से अलग रह रहे हैं।
- पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13(1) (i-a) के तहत और क्रूरता के आधार पर विवाह-विघटन के लिये याचिका दायर की।
- पारिवारिक न्यायालय इस नतीजे पर पहुँचा है कि दोनों पक्ष 12 साल से अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं और अपीलकर्त्ता ने झूठा आरोप लगाया है कि पति का अपने एक सह-कर्मचारी के साथ अवैध संबंध है।
- पारिवारिक न्यायालय ने पाया कि पति या पत्नी के खिलाफ अवैध संबंध के आरोप लगाना, जैसा भी मामला हो, मानसिक क्रूरता के समान है और विवाह के अपरिवर्तनीय विघटन के आधार पर पत्नी को राहत दी गई।
- अपीलकर्त्ता ने कहा कि उसका पति उनके साथ रहने के लिये घर नहीं आ रहा है, और उसने कभी भी उसकी और यहाँ तक कि बच्चों की शिक्षा के लिये भी आर्थिक सहायता नहीं की, जिसके परिणामस्वरूप उसे भरण-पोषण का मुकदमा दायर करना पड़ा।
- हालाँकि पत्नी को भरण-पोषण प्रपात हुआ, लेकिन उसका भुगतान पति द्वारा नहीं किया गया।
- इसके बाद एक पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
- उच्च न्यायालय ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति आर.एम.टी. टीका रमन और न्यायमूर्ति पी.बी. बालाजी की पीठ ने कहा कि किसी भी आरोप को पति द्वारा क्रूरता के रूप में नहीं माना गया और न ही कानून द्वारा ज्ञात तरीके से साबित किया गया है।
- न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी ने कोई वित्तीय सहायता न देकर पति के हाथों क्रूरता का प्रदर्शन किया है कि वह पत्नी और बच्चों के साथ रहने में रुचि नहीं रखता है तथा उसने परिवार के सदस्य के रूप में सुविधाओं का आनंद लेने के लिये पत्नी और बच्चों को रेलवे सेवा रजिस्टर में शामिल नहीं किया है। इन स्वीकृत तथ्यों से पता चलता है कि यह पति ही है जिसने क्रूरता की है और इसलिये, पत्नी को अपने पिता के घर में रहने के लिये मजबूर होना पड़ा है।
इसमें कौन-से प्रासंगिक कानूनी प्रावधान शामिल हैं?
- HMA की धारा 13(1)(i-a):
- यह धारा विवाह-विच्छेद के आधार के रूप में क्रूरता से संबंधित है।
- HMA में वर्ष 1976 के संशोधन से पहले, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता विवाह-विच्छेद का दावा करने का आधार नहीं थी।
- यह अधिनियम की धारा 10 के तहत न्यायिक अलगाव का दावा करने का केवल एक आधार थी।
- वर्ष 1976 के संशोधन द्वारा क्रूरता को विवाह-विच्छेद का आधार बना दिया गया।
- इस अधिनियम में क्रूरता शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
- आमतौर पर, क्रूरता कोई भी ऐसा व्यवहार है जो शारीरिक या मानसिक रूप से किसी को प्रताड़ित कर सकता है, तथा जानबूझकर या अनजाने में होता है।
- उच्चतम न्यायालय द्वारा कई निर्णयों में निर्धारित कानून के अनुसार क्रूरता दो प्रकार की होती है:
- शारीरिक क्रूरता - पति/पत्नी को कष्ट पहुँचाने वाला हिंसक आचरण।
- मानसिक क्रूरता - पति/पत्नी को किसी प्रकार का मानसिक तनाव होता है या उसे लगातार मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है।
- शोभा रानी बनाम मधुकर रेड्डी (1988) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि क्रूरता शब्द की कोई निश्चित परिभाषा नहीं हो सकती।
- मायादेवी बनाम जगदीश प्रसाद (2007) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पति-पत्नी में से किसी एक द्वारा किसी भी प्रकार की मानसिक क्रूरता का सामना करने पर, न केवल महिला, बल्कि पुरुष भी क्रूरता के आधार पर विवाह-विच्छेद के लिये आवेदन कर सकते हैं।
- विवाह के अपरिवर्तनीय विघटन का सिद्धांत:
- यह अवधारणा वर्ष 1921 में लॉडर बनाम लॉड ( Lodder v. Lodde) के ऐतिहासिक निर्णय के माध्यम से न्यूज़ीलैंड में उत्पन्न हुई।
- विवाह का अपरिवर्तनीय विघटन एक ऐसी स्थिति है जिसमें पति व पत्नी काफी समय से अलग-अलग रह रहे हैं और उनके दोबारा साथ में रहने की कोई संभावना नहीं है।
- इस सिद्धांत को अनौपचारिक वैधता प्राप्त हो गई है क्योंकि इसे विवाह-विच्छेद देने वाले कई न्यायिक निर्णयों में लागू किया गया है।
- भारत में, HMA में विवाह-विच्छेद के लिये इस तरह के आधार को अभी तक शामिल नहीं किया है, लेकिन विभिन्न विधि आयोग की रिपोर्टों में इसकी अत्यधिक अनुशंसा की गई है और इस संबंध में संसद में विवाह विच्छेद कानून (संशोधन) विधेयक, 2010 नाम से एक विधेयक पेश किया गया।