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सांविधानिक विधि

ज़ब्त वाहन की रिहाई

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 10-Apr-2024

खेंगरभाई लाखाभाई डंभाला बनाम गुजरात राज्य

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 451 के अधीन मजिस्ट्रेट से संपर्क किये बिना उच्च न्यायालय में अपील करना उचित उपाय नहीं होगा।

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी एवं न्यायमूर्ति पंकज मिथल

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय  ने माना कि ज़ब्त किये गए वाहन की रिहाई के लिये भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 226/227 के अंतर्गत उच्च न्यायालय में सीधे अपील करना दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 451 के अधीन मजिस्ट्रेट से संपर्क किये बिना उचित उपाय नहीं होगा।

  • उपरोक्त टिप्पणी खेंगरभाई लाखाभाई डंभाला बनाम गुजरात राज्य के मामले में की गई थी।

खेंगरभाई लाखाभाई डंभाला बनाम गुजरात राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में अपीलकर्त्ता का वाहन ज़ब्त कर लिया गया और आरोपी लाखाभाई खेंगारभाई (वर्तमान अपीलकर्त्ता का बेटा) तथा अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
  • उक्त वाहन का चालक बिना किसी पास या परमिट के उक्त वाहन में 7 लाख रुपए मूल्य की अंग्रेज़ी शराब ले जा रहा था।
  • अपीलकर्त्ता ने CrPC की धारा 451 के अधीन मजिस्ट्रेट से संपर्क किये बिना उक्त वाहन को रिहा करने के उद्देश्य से अपने रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग करके सीधे गुजरात उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
  • उक्त आवेदन को उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था।
  • उसी से व्यथित होकर, वर्तमान अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर की गई है जिसे बाद में न्यायालय ने खारिज कर दिया था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी एवं न्यायमूर्ति पंकज मिथल की खंडपीठ ने कहा कि जब CrPC में एक विशिष्ट वैधानिक प्रावधान है जो आपराधिक न्यायालय को जाँच या मुकदमे के लंबित रहने तक संपत्ति की उचित हिरासत एवं निपटान के लिये उचित आदेश पारित करने का अधिकार देता है, तो अपीलकर्त्ता ऐसा नहीं कर सकता है। अपने वाहन की रिहाई की मांग करते हुए COI के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के असाधारण क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल किया है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि जब जब्त की गई संपत्ति/वाहन को संबंधित आपराधिक न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है, तो संबंधित न्यायालय का दायित्व है कि वह विचारण के लंबित रहने तक वाहन को उचित हिरासत में रखने के लिये उचित आदेश पारित करे

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

COI का अनुच्छेद 226

परिचय:

यह अनुच्छेद कुछ रिट जारी करने की उच्च न्यायालयों की शक्ति से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि-

(1)अनुच्छेद 32 में किसी भी प्रावधान के बावजूद, प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन सभी प्रदेशों के संबंध में, जिनके संबंध में वह अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है, भाग III द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी के प्रवर्तन के लिये और किसी अन्य उद्देश्य के लिये बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध, को वारंटो तथा उत्प्रेषण या उनमें से किसी की प्रकृति में रिट किसी भी व्यक्ति या प्राधिकारी को, उचित मामलों में, किसी भी सरकार को, निर्देश, आदेश या रिट जारी करने की शक्ति होगी।

(2) किसी भी सरकार, प्राधिकारी या व्यक्ति को निर्देश, आदेश या रिट जारी करने के लिये खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग उन क्षेत्रों के संबंध में अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाले किसी भी उच्च न्यायालय द्वारा भी किया जा सकता है, जिसके भीतर कार्रवाई का कारण, पूर्ण या आंशिक रूप से उत्पन्न होता है। ऐसी शक्ति के प्रयोग के लिये, इस बात के बावजूद कि ऐसी सरकार या प्राधिकारी का स्थान या ऐसे व्यक्ति का निवास उन क्षेत्रों के भीतर नहीं है।

(3) जहाँ कोई भी पक्ष जिसके विरुद्ध अंतरिम आदेश, चाहे निषेधाज्ञा या स्थगन के माध्यम से या किसी अन्य तरीके से, खंड (1) के तहत याचिका पर या उससे संबंधित किसी भी कार्यवाही में दिया जाता है, बिना-

(a) ऐसे पक्ष को ऐसी याचिका की प्रतियाँ और ऐसे अंतरिम आदेश के लिये याचिका के समर्थन में सभी दस्तावेज़ उपलब्ध कराना, तथा

(b) ऐसे पक्ष को सुनवाई का अवसर देते हुए, ऐसे आदेश को रद्द करने के लिये उच्च न्यायालय में आवेदन करता है और ऐसे आवेदन की एक प्रति उस पक्ष को देता है जिसके पक्ष में ऐसा आदेश दिया गया है या ऐसे पक्ष के अधिवक्ता को, उच्च न्यायालय द्वारा आवेदन का निपटान उस तारीख से दो सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाएगा जिस तारीख को यह प्राप्त हुआ है या उस तारीख से जिस दिन ऐसे आवेदन की प्रति प्रस्तुत की गई है, जो भी बाद में हो, या जहाँ अंतिम दिन उच्च न्यायालय बंद है वह अवधि, जिसके अगले दिन की समाप्ति से पहले उच्च न्यायालय खुला है; और यदि आवेदन का निपटान इस प्रकार नहीं किया जाता है, तो अंतरिम आदेश, उस अवधि की समाप्ति पर, या, जैसा भी मामला हो, उक्त अगले दिन की समाप्ति पर, रद्द हो जाएगा।

(4) इस अनुच्छेद द्वारा उच्च न्यायालय को प्रदत्त शक्ति अनुच्छेद 32 के खंड (2) द्वारा उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त शक्ति का अनादर नहीं होगा

निर्णयज विधि

  • जगदीश प्रसाद शास्त्री बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1970), उच्चतम न्यायालय ने माना कि यदि किसी रिट याचिका में गलत तथ्यात्मक मैट्रिक्स शामिल है तथा उच्च न्यायालय इसे अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च विशेषाधिकार रिट की मांग करने वाली याचिका के माध्यम से समाधान के लिये अनुपयुक्त मानता है, तो वह ऐसे मामलों को संबोधित करने से मना करने का अधिकार यथावत रखता है।

COI का अनुच्छेद 227

Article 227 of the COI

यह अनुच्छेद उच्च न्यायालय द्वारा सभी न्यायालयों पर अधीक्षण की शक्ति से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि-

(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय के पास उन सभी क्षेत्रों में सभी न्यायालयों एवं न्यायाधिकरणों पर अधीक्षण होगा, जिसके संबंध में वह क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है।

(2) पूर्वगामी प्रावधान की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उच्च न्यायालय-

(a) ऐसी न्यायलयों से रिटर्न की मांग करें,

(b) ऐसे न्यायालयों की प्रैक्टिस एवं कार्यवाहियों को विनियमित करने के लिये सामान्य नियम बनाना और जारी करना तथा प्रपत्र निर्धारित करना,

(c) ऐसे प्रपत्र निर्धारित करें जिनमें ऐसी किसी भी न्यायालय के अधिकारियों द्वारा पुस्तकें, प्रविष्टियाँ और खाते रखे जाएंगे।

(3) उच्च न्यायालय अपने शासनाधिकारी एवं ऐसी न्यायालयों के सभी लिपिक व अधिकारियों तथा वहाँ विधिक व्यवसाय करने वाले अधिवक्ताओं और इनको को दी जाने वाली शुल्क की तालिका भी तय कर सकता है।

(4) इस लेख में किसी भी प्रावधान को सशस्त्र बलों से संबंधित किसी भी विधि के अधीन या उसके अधीन गठित किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण पर अधीक्षण की उच्च न्यायालय की शक्ति प्रदान करने वाला नहीं माना जाएगा।

CrPC की धारा 451

CrPC की धारा 451 कुछ मामलों में विचारण के दौरान लंबित संपत्ति की हिरासत एवं निपटान के आदेश से संबंधित है। यह प्रकट करता है कि-

जब किसी जाँच या मुकदमे के दौरान किसी भी संपत्ति को किसी आपराधिक न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो न्यायालय जाँच या मुकदमे के निष्कर्ष तक ऐसी संपत्ति की उचित हिरासत के लिये ऐसा आदेश दे सकती है, जैसा वह उचित समझती है तथा यदि संपत्ति शीघ्र नष्ट होने वाली, प्राकृतिक क्षय, या यदि ऐसा करना अन्यथा समीचीन है, तो न्यायालय, ऐसे साक्ष्य दर्ज करने के बाद, जैसा वह आवश्यक समझे, इसे बेचने या अन्यथा निपटाने का आदेश दे सकता है।

स्पष्टीकरण- इस धारा के प्रयोजनों के लिये, "संपत्ति" में शामिल हैं-

(a) किसी भी प्रकार की संपत्ति या दस्तावेज़ जो न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया हो या जो उसकी हिरासत में हो,

(b) कोई भी संपत्ति जिसके संबंध में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है या जिसका उपयोग किसी अपराध के लिये किया गया प्रतीत होता है।