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निरसित उपबंध
« »26-Apr-2024
पेरनोड रिकार्ड इंडिया (P) लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश राज्य “वैधानिक प्रावधान के निरसन या प्रतिस्थापन का संचालन इस प्रकार स्पष्ट है; एक निरस्त प्रावधान निरसन की तिधि से संचालित होना बंद हो जाएगा और प्रतिस्थापित प्रावधान इसके प्रतिस्थापन की तिथि से संचालित होना शुरू हो जाएगा”। न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय किया कि "वैधानिक प्रावधान के निरसन या प्रतिस्थापन का संचालन इस प्रकार स्पष्ट है, एक निरस्त प्रावधान निरसन की तिधि से संचालित होना बंद हो जाएगा और प्रतिस्थापित प्रावधान इसके प्रतिस्थापन की तिथि से संचालित होना शुरू हो जाएगा”।
- न्यायालय ने पेरनोड रिकार्ड इंडिया (P) लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले के संबंध में यह टिप्पणी की।
पेरनोड रिकॉर्ड इंडिया (P) लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ता मध्य प्रदेश विदेशी मदिरा नियम, 1996 के तहत विनियमित विदेशी मदिरा के निर्माण, आयात और बिक्री के लिये मध्य प्रदेश आबकारी अधिनियम, 1915 के तहत एक उप-लाइसेंसी था।
- विदेशी मदिरा का आयात करने वाले उप-लाइसेंसधारियों को आयातित शराब की उत्पत्ति, गुणवत्ता, मात्रा और वितरण केंद्र जैसे विवरण दर्ज करने के लिये अभिवहन परमिट प्रदान किये गए थे। गंतव्य स्थान पर, खेप की गुणवत्ता तथा मात्रा का सत्यापन किया गया एवं नियम 13 के तहत एक प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। नियम 16 में उत्पाद शुल्क के अवैध अपयोजन और चोरी को रोकने के लिये रिसाव, वाष्पीकरण, बर्बादी आदि के कारण होने वाले नुकसान की अनुमेय सीमा निर्धारित की गई है।
- अनुमेय सीमा से अधिक होने की दशा में नियम 19 में वर्ष 2009-2010 लाइसेंस अवधि के दौरान देय अधिकतम शुल्क का चार गुना तक ज़ुर्माना अधिरोपित करने का उपबंध है।
- वर्ष 2009-2010 के दौरान अपीलकर्त्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू नहीं की गई थी। 29 मार्च 2011 को, नियम 19 को प्रतिस्थापित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप, ज़ुर्माने को अधिकतम देय शुल्क से चार गुना घटाकर विदेशी शराब पर देय शुल्क से अधिक नहीं किया गया।
- संशोधन के आठ माह पश्चात्, 22 नवंबर 2011 को अपीलकर्त्ता को एक डिमांड नोटिस जारी किया गया जिसमें वर्ष 2009-2010 में अनुमेय सीमा से अधिक के लिये विगत नियम 19 के अनुसार ज़ुर्माने का भुगतान करने की मांग की गई।
- अपीलकर्त्ता ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि प्रतिस्थापित नियम 19 कार्यान्वित किया जाना चाहिये।
- अपीलकर्त्ता की आपत्तियों को विधिक अधिकारियों द्वारा खारिज कर दिया गया।
- एकल न्यायाधीश ने लंबित कार्यवाही पर कार्यान्वित प्रतिस्थापित नियम को बरकरार रखते हुए इन आदेशों को रद्द कर दिया।
- हालाँकि, डिवीज़न खंडपीठ ने इसे पलट दिया और निर्णय किया कि लाइसेंस वर्ष के दौरान मौजूद नियम कार्यान्वित किया जाना चाहिये क्योंकि ज़ुर्माना निर्धारण एक मौलिक विधि है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या हैं?
- न्यायालय ने माना कि विधि की व्याख्या न्यायालय का विशेष क्षेत्र है, इसे कानूनी अथवा कार्यकारी अभिकरणों द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है।
- यह जाँचने में कि क्या मदिरा लाइसेंस दंड पर निरस्त नियम कार्यान्वित होना चाहिये, न्यायालय ने विषय और संदर्भ पर ध्यान दिया।
- यदि शुल्क के चार गुना कठोर दंड को निरस्त करने से बेहतर विनियमन के उद्देश्य को आगे बढ़ाया जाता है तो न्यायालय निरसन के प्रभाव को आगे नहीं बढ़ाएगी।
- न्यायालय ने पाया कि वर्ष 2011 के प्रतिस्थापन में ज़ुर्माना को घटाकर केवल शुल्क राशि तक सीमित करने का उद्देश्य विदेशी मदिरा के प्रशासन और प्रबंधन में सुधार करना था।
- कठोर निरस्त दंड लागू करने से यह उद्देश्य पूरा नहीं हुआ। प्रतिस्थापित पूर्व का दंड लंबित कार्यवाहियों पर पूर्वव्यापी रूप से लागू होता है, अनुचित रूप से पूर्वव्यापी रूप से नहीं।
- न्यायालय ने अपील स्वीकार की, उच्च न्यायालय के निर्णय को रद्द कर दिया और वर्ष 2009-10 लाइसेंस वर्ष के लिये अपीलकर्त्ताओं पर लागू दंड के रूप में प्रतिस्थापित नियम 19 को बरकरार रखा।
इस मामले में उद्धृत महत्त्वपूर्ण निर्णय क्या थे?
- कोटेश्वर विट्ठल कामत बनाम के. रंगप्पा बालिगा एंड कंपनी (1969):
- उच्चतम न्यायालय ने एक नियम के अधिक्रमण और एक नियम के प्रतिस्थापन के बीच अंतर को उजागर किया तथा माना कि प्रतिस्थापन की प्रक्रिया में दो चरण होते हैं- पहला, विगत नियम निरस्त किया जाना और अगला, उसके स्थान पर एक नया नियम संचालन में लाया जाता है।
- पुष्पा देवी बनाम मिल्खी राम (1990):
- उच्चतम न्यायालय ने किसी परिभाषा अथवा व्याख्या को वाक्यांश के साथ प्रस्तुत करने के उद्देश्य की व्याख्या की, जब तक कि विषय या संदर्भ में कुछ भी प्रतिकूल न हो।
- न्यायालय ने निर्णय किया कि अधिनियम के उद्देश्य और उस उद्देश्य के प्रकाश में संदर्भ और संयोजन की जाँच की जानी चाहिये जिसके लिये विधायिका द्वारा एक विशेष प्रावधान तैयार किया गया था।
- ज़िले सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2004):
- उच्चतम न्यायालय ने प्रतिस्थापन द्वारा संशोधन की विधायी प्रथा का उल्लेख किया और स्वीकार किया कि प्रतिस्थापन का प्रभाव उस अवधि के दौरान कानून के संचालन में संशोधन करने जैसा होगा जिसमें यह कार्यान्वित था।
- गोट्टुमुक्कला वेंकट कृष्णम राजू बनाम भारत संघ (2019):
- उच्चतम न्यायालय ने निर्णय किया कि प्रायः जब विधायिका द्वारा "प्रतिस्थानी" अथवा "प्रतिस्थापन" शब्द का उपयोग किया जाता है, यह पुराने प्रावधान को प्रतिस्थापित करने और नए प्रावधान को लागू करने में प्रभावी होता है।
- हालाँकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि कुछ स्थितियों में, वह "प्रतिस्थापन" शब्द का उपयोग संभावित "संशोधन" के रूप में कर सकता है।