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सांविधानिक विधि

प्रजनन स्वास्थ्य एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता

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 13-Feb-2024

XYZ और ABC बनाम भारत संघ

"भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के प्रावधानों के तहत प्रजनन स्वास्थ्य, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक पहलू है।"

जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी और फिरदोस पूनीवाला

स्रोत:  बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में, XYZ & ABC बनाम भारत संघ के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने माना कि प्रजनन स्वास्थ्य, भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 21 के प्रावधानों के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक आवश्यक पहलू है।

XYZ और ABC बनाम भारत संघ मामले की पृष्ठभूमि:

  • इस मामले में, याचिकाकर्त्ता पति-पत्नी हैं, जिनका विवाह 29 अप्रैल, 2013 को संपन्न हुआ था।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि पत्नी की गंभीर चिकित्सा समस्याओं के कारण वे माता-पिता नहीं बन सके। जबकि वर्ष 2011 से 2023 के बीच पत्नी की सर्जरी हुई थी।
  • याचिकाकर्त्ताओं का आशय सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के प्रावधानों और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत सरोगेसी की प्रक्रिया का सहारा लेना था।
  • केंद्र सरकार ने सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 के नियम 7 के तहत फॉर्म 2 के खंड 1 (d) में संशोधन किया, जो दाता युग्मकों को प्रतिबंधित करता है।
  • याचिकाकर्त्ताओं का तर्क है कि नियमों में ऐसी शर्त निर्धारित करना गैरकानूनी है क्योंकि ऐसी स्थिति सरोगेसी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करती है या असंगत है।
  • इससे व्यथित होकर बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है, जिसे बाद में न्यायालय द्वारा अनुमति प्रदान कर दी गई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी और फिरदोस पूनीवाला ने कहा कि हमारी स्पष्ट राय है कि यदि याचिकाकर्त्ताओं को प्रार्थना के अनुसार सुरक्षा नहीं दी गई तो यह निश्चित रूप से सरोगेसी के माध्यम से माता-पिता बनने के उनके कानूनी अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
  • आगे कहा गया कि COI के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन स्वास्थ्य, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक आवश्यक पहलू है।

इसमें कौन-से प्रासंगिक कानूनी प्रावधान शामिल हैं?

COI का अनुच्छेद 21:

परिचय:

  • इस अनुच्छेद में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
  • यह मौलिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति, नागरिकों और विदेशियों के लिये समान रूप से उपलब्ध है।
  • भारत के उच्चतम न्यायालय ने इस अधिकार का वर्णन मौलिक अधिकारों के हृदय के रूप में किया है।
  • यह अधिकार केवल राज्य के विरुद्ध प्रदान किया गया है।
  • अनुच्छेद 21 दो अधिकार सुरक्षित करता है:
    • जीवन का अधिकार
    • व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार

निर्णयज विधि:  

  • फ्राँसिस कोरली मुलिन बनाम प्रशासक (1981) मामले में, न्यायमूर्ति पी. भगवती ने कहा था कि COI का अनुच्छेद 21 एक लोकतांत्रिक समाज में सर्वोच्च महत्त्व के संवैधानिक मूल्यों का प्रतीक है।
  • खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1963) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जीवन शब्द का तात्पर्य पशु अस्तित्व से कहीं अधिक है। इसके अभाव के विरुद्ध निषेध उन सभी अंगों और क्षमताओं तक विस्तृत है, जिनके द्वारा जीवन का आनंद लिया जाता है। यह प्रावधान समान रूप से बख्तरबंद पैर को काटकर या एक आँख निकालकर, या शरीर के किसी अन्य अंग को नष्ट करके शरीर के क्षत-विक्षत होने पर रोक लगाता है जिसके माध्यम से मनुष्य बाहरी दुनिया के साथ संचार करता है।

सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021:

  • यह अधिनियम 25 जनवरी, 2021 को लागू हुआ।
  • इस अधिनियम के तहत, एक महिला जो विधवा है या 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच उम्र वाली तलाकशुदा महिला है या एक जोड़ा, जिसे कानूनी रूप से विवाहित महिला और पुरुष के रूप में परिभाषित किया गया है, सरोगेसी का लाभ उठा सकते हैं, यदि उनके पास इस विकल्प की आवश्यकता वाली चिकित्सीय परिस्थितियाँ हैं।
  • यह व्यावसायिक सरोगेसी पर भी प्रतिबंध लगाता है, जिसके तहत 10 वर्ष के कारावास की सज़ा और 10 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
  • यह कानून केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है, जहाँ रुपयों का आदान-प्रदान नहीं होता है और जहाँ सरोगेट माँ आनुवंशिक रूप से बच्चा चाहने वालों से संबंधित होती है।

सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022:

  • यह एक सरोगेसी क्लिनिक के लिये पंजीकरण एवं शुल्क हेतु फॉर्म और तरीके तथा एक पंजीकृत सरोगेसी क्लिनिक में नियोजित व्यक्तियों के लिये आवश्यकता, एवं योग्यता प्रदान करता है।