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पारिवारिक कानून
दाम्पत्य अधिकारों की बहाली का आदेश
« »23-Oct-2023
XYZ और ABC वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश का पालन करने में पत्नी की विफलता तलाक का आधार है। न्यायमूर्ति एस. आर. कृष्ण कुमार और जी. बसवराज |
स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने XYZ और ABC के मामले में कहा कि पत्नी द्वारा वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश का पालन करने में विफलता तलाक का आधार है।
XYZ और ABC मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ता की शादी 12 जून, 2009 को प्रतिवादी से हुई और 10 अगस्त, 2011 को एक बेटे आदित्य का जन्म हुआ जो वर्तमान में प्रतिवादी/मां की अभिरक्षा में है यानी मां के पास रहता है।
- प्रतिवादी ने अपीलकर्त्ता को छोड़ दिया था और वर्ष 2013 से अलग रह रहा है।
- अपीलकर्त्ता/पति ने 3 अगस्त, 2016 को कानूनी नोटिस जारी कर प्रतिवादी/पत्नी को अपने साथ रहने के लिये कहा और चूँकि उसने ऐसा नहीं किया, इसलिये अपीलकर्त्ता ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग करते हुए ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की।
- ट्रायल कोर्ट द्वारा वैवाहिक अधिकारों की बहाली का एक आदेश दिया गया था जिसमें प्रतिवादी को अपीलकर्त्ता के साथ रहने का निर्देश दिया गया था।
- उपरोक्त निर्णय और अपीलकर्त्ता के पक्ष में पारित वैवाहिक अधिकारों की बहाली के आदेश के बावजूद, प्रतिवादी उसके साथ नहीं रही।
- इससे व्यथित होकर, अपीलकर्त्ता ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की, जिसमें परित्याग के आधार पर तलाक की मांग की गई।
- ट्रायल कोर्ट के आक्षेपित निर्णय और आदेश को कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया था और अपीलकर्त्ता और प्रतिवादी के बीच विवाह को तलाक की डिक्री द्वारा भंग कर दिया गया था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति एस. आर. कृष्ण कुमार और न्यायमूर्ति जी. बसवराज की पीठ ने पाया कि प्रतिवादी अपीलकर्त्ता के साथ नहीं रही है और डिक्री पारित होने के एक वर्ष से अधिक समय तक पार्टियों के बीच वैवाहिक अधिकारों की कोई बहाली नहीं हुई है।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि इन परिस्थितियों में, हमारी राय है कि ट्रायल कोर्ट ने उपरोक्त पहलुओं के साथ-साथ अपीलकर्त्ता की निर्विवाद, गैर-विवादित और निर्विवाद दलीलों और सबूतों की जानकारी लिये बिना याचिका को खारिज़ करने में गलती की है, जो तलाक की डिक्री देने के लिये पर्याप्त आधार बनता है।
इसमें कौन-से कानूनी प्रावधान शामिल हैं?
दाम्पत्य अधिकारों की बहाली
- दाम्पत्य अधिकारों की बहाली की अभिव्यक्ति का अर्थ उन दाम्पत्य अधिकारों की बहाली है, जो पहले पार्टियों द्वारा प्राप्त किये गए थे।
- इसका उद्देश्य विवाह संस्था की पवित्रता और वैधता की रक्षा करना है।
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 9 वैवाहिक अधिकारों की बहाली से संबंधित है। यह कहती है कि-
- जब कि पति या पत्नी ने अपने को दूसरे के साहचर्य से किसी युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना प्रत्याहृत कर लिया हो तब व्यथित पक्षकार दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिये जिला न्यायालय में अर्जी द्वारा आवेदन कर सकेगा और न्यायालय ऐसी अर्जी में किये गए कथनों के सत्य तथा इस बात के बारे में कि इसके लिये कोई वैध आधार नहीं है कि आवेदन मंजूर क्यों न कर लिया जाए अपना समाधान हो जाने पर दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन डिक्री कर सकेगा।
स्पष्टीकरण - जहाँ यह प्रश्न उठता है कि क्या साहचर्य के प्रत्याहरण के लिये युक्तियुक्त प्रतिहेतु है, वहाँ युक्तियुक्त प्रतिहेतु साबित करने का भार उस व्यक्ति पर होगा जिसने साहचर्य से प्रत्याहरण किया है।
- सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार चड्ढा (1984) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) की धारा 9 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा क्योंकि यह धारा किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है।
तलाक
- तलाक का अर्थ सक्षम न्यायालय द्वारा विवाह-विच्छेद से है।
- हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) अधिनियम की धारा 13 तलाक के प्रावधानों से संबंधित है।
- हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) अधिनियम की धारा 13 (1) के अनुसार, कोई भी विवाह, वह इस अधिनियम के प्रारम्भ के चाहे पूर्व अनुष्ठापित हुआ हो चाहे पश्चात्, पति अथवा पत्नी द्वारा उपस्थापित अर्जी पर विवाह-विच्छेद की डिक्री द्वारा इस आधार पर विघटित किया जा सकेगा कि-
- व्यभिचार
- क्रूरता
- परित्याग
- धर्मांतरण
- मानसिक विकार
- संचारी एवं असाध्य कुष्ठ रोग
- संसार का त्याग
- मृत्यु का पूर्वानुमान
- धारा 13b आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान करती है।