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सांविधानिक विधि
पासपोर्ट रखना प्रत्येक नागरिक का अधिकार
« »25-Jul-2023
चर्चा में क्यों?
- दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश वाली पीठ ने नागरिकों के पासपोर्ट रखने के अधिकार की पुष्टि करते हुए कहा कि " प्रत्येक नागरिक के पास पासपोर्ट रखने का कानूनी अधिकार है और यह अधिकार केवल कानून के अनुसार ही छीना जा सकता है" ।
- न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि अधिकारी केवल कानून में निर्धारित आधार पर पासपोर्ट को नवीनीकृत/रद्द करने से इनकार कर सकते हैं।
- निशांत सिंघल बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले में अपीलकर्ता ने भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के तहत अपील दायर की।
पृष्ठभूमि
- जब अपीलकर्ता नाबालिग था, तो उसके माता-पिता ने प्रारंभिक जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर उसकी जन्मतिथि 16.01.2003 दिखाकर उसे पासपोर्ट जारी करवा दिया ।
- बाद में, उन्होंने जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 की धारा 15 के तहत उसे एक नया जन्म प्रमाण पत्र जारी करके उसकी जन्मतिथि को 16.07.2003 में बदल दिया।
- अदालत ने 26 नवंबर, 2015 को केंद्रीय विदेश मंत्रालय द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन (OM) का हवाला दिया।
- उक्त कार्यालय ज्ञापन (OM) ने किसी आवेदक के पास पहले से मौजूद पासपोर्ट में जन्मतिथि की प्रविष्टियों में बदलाव या सुधार की प्रक्रिया निर्धारित की है।
- पासपोर्ट के नवीनीकरण के लिए अपीलकर्ता के अनुरोध को केवल इस तथ्य पर विचार करते हुए अस्वीकार कर दिया गया था कि उसे जन्म प्रमाण पत्र दिनांक 11.02.2003 के आधार पर 16.01.2003 की जन्मतिथि के साथ पासपोर्ट जारी किया गया था और इसे उसी प्रमाण पत्र के आधार पर दो बार नवीनीकृत किया गया था।
- अदालत ने कहा कि प्रतिवादी का यह तर्क कि पहले के पासपोर्ट का दुरुपयोग किया जा सकता था, केवल संभावना पर आधारित है और इसका कोई वैध आधार नहीं है ।
- अदालत ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने सभी संबंधित दस्तावेज जमा कर दिये हैं और अपनी सही जन्मतिथि बताई है।
- और याचिकाकर्ता के माता-पिता द्वारा गलत जन्मतिथि देने की गलती को याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं माना जा सकता है ।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
अदालत ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
1. पासपोर्ट प्राधिकरण अपने आप कोई अतिगामी जाँच (rowing enquiry) नहीं कर सकता है और जन्म तिथि की सत्यता तय करने में भी सक्षम नहीं है।
2. प्रत्येक नागरिक को पासपोर्ट रखने का कानूनी अधिकार है।
3. अधिकारी कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के लिए बाध्य हैं।
4. किसी व्यक्ति के पासपोर्ट के नवीनीकरण के आवेदन को केवल इस आशंका के आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि पहले के पासपोर्ट का दुरुपयोग किया गया होगा।
रिटें
- रिट संवैधानिक उपचार होती हैं जो भारत के संविधान, 1950 के भाग III में निहित मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को देखने के लिए डिज़ाइन किये गये हैं ।
- रिट का प्राथमिक उद्देश्य राज्य को अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने से रोकना और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है।
- इन्हें उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत और उच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 226 के तहत जारी किया जा सकता है ।
- अनुच्छेद 32 के तहत रिट उपचार हैं फिर भी अपने आप में एक मौलिक अधिकार हैं ।
- रिट पाँच प्रकार की होती हैं अर्थात् बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेषण, अधिकार-पृच्छा और निषेधाज्ञा ।
अनुच्छेद 226
- अनुच्छेद 226 संविधान के भाग V के तहत निहित है जो रिट जारी करने की शक्ति उच्च न्यायालय के हाथ में देता है ।
- इसे सरकार सहित किसी भी व्यक्ति या प्राधिकारी के विरुद्ध जारी किया जा सकता है ।
- अनुच्छेद 32 के विपरीत, अनुच्छेद 226 केवल एक संवैधानिक अधिकार है, मौलिक अधिकार नहीं ।
- आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 32 को निलंबित किया जा सकता है, हालाँकि, आपातकाल के दौरान भी अनुच्छेद 226 को निलंबित नहीं किया जा सकता है ।
- अनुच्छेद 226 मौलिक अधिकारों और विवेकाधीन प्रकृति के मामले में अनिवार्य प्रकृति का है जब इसे "किसी अन्य उद्देश्य" के लिए जारी किया जाता है ।
- बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ (1984) मामले में, यह माना गया कि अनुच्छेद 226 का दायरा अनुच्छेद 32 की तुलना में बहुत व्यापक है क्योंकि अनुच्छेद 226 को कानूनी अधिकारों की सुरक्षा के लिये भी जारी किया जा सकता है ।
- कॉमन कॉज़ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2018) मामले में, यह माना गया कि अनुच्छेद 226 के तहत रिट सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक जिम्मेदारियों को लागू करने के लिये भी जारी की जा सकती है ।
जन्म और मृत्यु के रजिस्टर में प्रविष्टि रद्द करने की शक्ति
- यह शक्ति जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 की धारा 15 द्वारा प्रदान की गयी है ।
- इस अधिनियम की धारा 15 के तहत रजिस्ट्रार त्रुटि को सुधार सकता है या को प्रविष्टि रद्द कर सकता है यदि प्रविष्टि
- रूप या पदार्थ में त्रुटिपूर्ण पायी जाती है
- या धोखाधड़ी से या अनुचित तरीके से बनायी गयी हो
- उसके पास मूल प्रविष्टि में कोई बदलाव किये बिना, हाशिये में उपयुक्त प्रविष्टि द्वारा त्रुटि को सुधारने या प्रविष्टि को रद्द करने की शक्ति है।
- इसके अलावा उसे अनिवार्य रूप से हाशिये की प्रविष्टि पर हस्ताक्षर करना होगा और उसमें सुधार या रद्द करने की तारीख जोड़नी होगी ।
कानूनी प्रावधान
भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 226, कुछ रिट जारी करने की उच्च न्यायालयों की शक्ति -
(1) अनुच्छेद 32 में उल्लिखित प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन राज्यक्षेत्रों में सर्वत्र, जिनके संबंध में वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है, भाग 3 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिए और किसी अन्य प्रयोजन के लिए उन राज्यक्षेत्रों के भीतर किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को या समुचित मामलों में किसी सरकार को ऐसे निर्देश, आदेश या रिट जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, या उनमें से कोई निकालने की शक्ति होगी।
(2) किसी सरकार, प्राधिकारी या व्यक्ति को निदेश, आदेश या रिट निकालने की खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग उन राज्यक्षेत्रों के संबंध में, जिनके भीतर ऐसी शक्ति के प्रयोग के लिये वाद हेतु पूर्णत: या भागत: उत्पन्न होता है, अधिकारिता का प्रयोग करने वाले किसी उच्च न्यायालय द्वारा भी, इस बात के होते हुए भी किया जा सकेगा कि ऐसी सरकार या प्राधिकारी का स्थान या ऐसे व्यक्ति का निवास-स्थान उन राज्यक्षेत्रों के भीतर नहीं है।
(3) जहाँ कोई पक्षकार, जिसके विरुंद्ध खंड (1) के अधीन किसी याचिका पर या उससे संबंधित किसी कार्यवाही में व्यादेश के रूप में या रोक के रूप में या किसी अन्य रीति से कोई अंतरिम आदेश-
(क) ऐसे पक्षकार को ऐसी याचिका की और ऐसे अंतरिम आदेश के लिये अभिवाक् (विधि) के समर्थन में सभी दस्तावेजों की प्रतिलिपियाँ, और
(ख) ऐसे पक्षकार को सुनवाई का अवसर,
दिये बिना किया गया है, ऐसे आदेश को रद्द कराने के लिए उच्च न्यायालय को आवेदन करता है और ऐसे आवेदन की एक प्रतिलिपि उस पक्षकार को, जिसके पक्ष में ऐसा आदेश किया गया है या उसके काउंसिल को देता है, वहाँ उच्च न्यायालय उसकी प्राप्ति को तारीख से या ऐसे आवेदन की प्रतिलिपि इस प्रकार दिये जाने की तारीख से दो सप्ताह की अवधि के भीतर, इनमें से जो भी पश्चातवर्ती हो, या जहाँ उच्च न्यायालय उस अवधि के अंतिम दिन बंद है, वहाँ उसके ठीक बाद वाले दिन की समाप्ति से पहले जिस दिन उच्च न्यायालय खुला है, आवेदन को निपटाएगा और यदि आवेदन इस प्रकार नहीं निपटाया जाता है तो अंतरिम आदेश, यथास्थिति, उक्त अवधि की या उक्त ठीक बाद वाले दिन की समाप्ति पर रद्द हो जायेगा।
(4) इस अनुच्छेद द्वारा उच्च न्यायालय को प्रदत्त शक्ति से, अनुच्छेद 32 के खंड (2) द्वारा उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त शक्ति का अल्पीकरण नहीं होगा।