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सांविधानिक विधि
त्वरित विचारण का अधिकार
« »24-Jul-2024
कैलाश चंद बनाम राजस्थान राज्य "यदि विचारण को पूर्ण होने में अनुचित अतिरिक्त समय लग रहा है तो अभियुक्त को अनिश्चित काल तक अभिरक्षा में रखने की आशा नहीं की जा सकती”। न्यायमूर्ति फरजंद अली |
स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति फरजंद अली की पीठ ने कहा कि त्वरित विचारण का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त है।
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने कैलाश चंद बनाम राजस्थान राज्य मामले में यह निर्णय दिया।
कैलाश चंद बनाम राजस्थान राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- इस मामले में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 439 के अधीन एक आवेदन दायर किया गया था।
- आरोपी का कहना था कि कथित अपराधों के लिये कोई मामला नहीं बनता है तथा इसलिये उसे ज़मानत दी जानी चाहिये।
- याचिकाकर्त्ता तीन वर्ष की अवधि से अभिरक्षा में है।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- उच्च न्यायालय ने इस मामले में पाया कि तीन वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो चुका है तथा अभियोजन पक्ष द्वारा 30 में से केवल 12 साक्षियों की ही जाँच की गई है।
- यह देखा गया कि अभियोजन बहुत धीमी गति से चल रहा है तथा अभियोजन को पूर्ण करने में और समय लगेगा।
- यह माना गया कि अभियुक्त को उसके विरुद्ध साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण लंबित विचारण के कारण अभिरक्षा में नहीं रखा जा सकता।
- न्यायालय ने आगे कहा कि संविधान द्वारा त्वरित विचारण के अधिकार की गारंटी दी गई है तथा इसे अपराध की गंभीरता या जघन्यता के आधार पर नहीं छीना जा सकता।
- इस प्रकार, न्यायालय ने CrPC की धारा 439 के अधीन ज़मानत दे दी।
त्वरित विचारण के अधिकार का मूल स्रोत क्या है?
- त्वरित विचारण का अधिकार मैग्ना कार्टा के एक प्रावधान से व्युत्पन्न है।
- निष्पक्ष सुनवाई का तात्पर्य त्वरित विचारण से है। कोई भी प्रक्रिया तब तक उचित, निष्पक्ष एवं न्यायसंगत नहीं हो सकती जब तक कि प्रक्रिया ऐसे व्यक्ति के अपराध के निर्धारण के लिये त्वरित विचारण सुनिश्चित न करे।
- त्वरित न्याय भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत अनिवार्य है।
त्वरित विचारण का अधिकार क्या है?
- हुसैनारा खातून एवं अन्य बनाम गृह सचिव, बिहार राज्य, पटना (1979)
- इस मामले में, बिहार राज्य की जेलों में बंद पुरुषों एवं महिलाओं की ओर से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई थी, जो अभियोजन के विचारण की प्रतीक्षा कर रहे थे।
- उनमें से कई लोग जेल में थे तथा उन्होंने उस अपराध के लिये अधिकतम सज़ा काट ली थी, जिसका उन पर आरोप लगाया गया था।
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत निर्वचन की परिधि का विस्तार किया तथा माना कि त्वरित विचारण का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से उत्पन्न होता है।
- न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती के नेतृत्व में उच्चतम न्यायालय ने भारत की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या पर अपनी पीड़ा व्यक्त की।
- संतोष डे बनाम अर्चना गुहा (1994)
- न्यायालय ने इस मामले में पाया कि अभियोजन पक्ष के कारण मामले के विचारण में 8 वर्षों तक विलंब हुआ।
- साथ ही, पिछले 14 वर्षों से मामले के विचारण में कोई प्रगति नहीं हुई।
- माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विलंब पूर्ण रूपेण अभियोजन पक्ष के कारण हुई, जो आरोपी के त्वरित विचारण के अधिकार को छीनती है।
- माननीय उच्चतम न्यायालय ने कार्यवाही को रद्द करने के आदेश में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया क्योंकि विलंब आरोपी के त्वरित विचारण के अधिकार को छीनती है।
- करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य (1994)
- न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत त्वरित विचारण का अधिकार गिरफ्तारी एवं उसके परिणामस्वरूप कारावास द्वारा लगाए गए वास्तविक प्रतिबंध से प्रारंभ होता है तथा सभी चरणों में जारी रहता है अर्थात् जाँच, विचारण, विवेचना, अपील एवं पुनरीक्षण का चरण।
- त्वरित विचारण की संवैधानिक गारंटी CrPC की धारा 309 में उचित रूप से परिलक्षित होती है।
क्या त्वरित विचारण का अधिकार ज़मानत का आधार है?
- अशिम उर्फ असीम कुमार हरनाथ भट्टाचार्य बनाम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (2021)
- इस मामले में आरोपी व्यक्तियों ने गिरफ्तारी के बाद ज़मानत की अपील की।
- न्यायालय ने इस पहलू पर विचार करते हुए कि विचाराधीन कैदी को समय पर विचारण का मौलिक अधिकार है, अपीलकर्त्ता के पक्ष में गिरफ्तारी के बाद ज़मानत का लाभ इस आधार पर प्रदान किया कि वह लंबे समय से जेल में बंद है।
- भारत संघ बनाम के.ए. नजीब (2021)
- न्यायालय ने यहाँ कहा कि अभियोजन पक्ष के अपनी पसंद के साक्ष्य प्रस्तुत करने एवं आरोपों को संदेह से परे सिद्ध करने के अधिकार एवं संविधान के भाग III के अंतर्गत अभियुक्त के अधिकार के मध्य संतुलन स्थापित करना होगा।
- न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त द्वारा जेल में बिताए गए समय की लंबाई एवं अभियोजन प्रक्रिया के समाप्त होने में अभी और समय लगने की संभावना को देखते हुए अभियुक्त को ज़मानत पर रिहा किया जाना चाहिये।
- सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जाँच ब्यूरो (2022)
- न्यायालय ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि जेलों में बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदी बंद हैं। इसके अतिरिक्त, गिरफ्तारी एक कठोर उपाय है जिसका संयम से प्रयोग किया जाना चाहिये।
- यह देखा गया कि अभियुक्त को अनुचित विलंब के आधार पर ज़मानत पर रिहा के लिये विचार किया जा सकता है।
- लिछमन राम उर्फ लक्ष्मण राम बनाम राज्य (2023)
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि त्वरित विचारण के अधिकार की पृष्ठभूमि में ज़मानत के आवेदन पर निर्णय करते समय निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाना चाहिये:
- विलंब बचाव की रणनीति नहीं होनी चाहिये थी। विलंब किसके द्वारा कारित हुई, यह भी देखा जाना चाहिये। प्रत्येक विलंब से आरोपी को क्षति नहीं होती।
- इसका उद्देश्य त्वरित विचारण के अधिकार की इस प्रकार निर्वचन करना नहीं है कि अपराध की प्रकृति, सज़ा की गंभीरता, आरोपियों एवं साक्षियों की संख्या, वर्तमान स्थानीय परिस्थितियों एवं अन्य प्रक्रिया के कारण होने वाले विलंब की अनदेखी न हो।
- यदि यह मानने का कोई ठोस कारण है कि ज़मानत पर रिहा होने पर आरोपी निश्चित रूप से न्याय की पकड़ से दूर चला जाएगा तथा जाँच एजेंसी के लिये उसे पुनः पकड़ना कठिन कार्य होगा, तो उसके पक्ष में ज़मानत का लाभ नहीं दिया जाना चाहिये।
- यदि अभिलेख पर सम्मोहक सामग्री प्रस्तुत करके यह दर्शाया जाता है कि अभियुक्त की रिहाई से समाज में हंगामा मच सकता है या वह ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देगा जिससे अभियोजन पक्ष के साक्षी उसके विरुद्ध गवाही देने के लिये न्यायालय के समक्ष नहीं आएंगे या वह किसी अन्य तरीके से अभियोजन पक्ष के साक्ष्य को बाधित कर सकता है, तो ऐसे मामलों में अभियुक्त को ज़मानत देने से पहले अत्यधिक सावधानी से कार्य करना चाहिये।
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि त्वरित विचारण के अधिकार की पृष्ठभूमि में ज़मानत के आवेदन पर निर्णय करते समय निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाना चाहिये:
अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में त्वरित विचारण का अधिकार क्या है?
- संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान के छठे संशोधन में कहा गया है कि सभी आपराधिक अभियोजन में अभियुक्त को त्वरित एवं लोक विचारण का अधिकार होगा।
- इसके अतिरिक्त, 1974 का एक संघीय अधिनियम है जिसे “स्पीडी ट्रायल एक्ट” कहा जाता है, जो सूचना, अभियोग आदि जैसी प्रमुख घटनाओं को अंजाम देने के लिये समय-सीमा निर्धारित करता है।
- स्ट्रंक बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका के मामले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अभियुक्त के त्वरित विचारण के अधिकार से मना करने के परिणामस्वरूप अभियोग को खारिज करने या दोषसिद्धि को पलटने का निर्णय होता है।
- मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 के अनुच्छेद 8 में कहा गया है कि 'प्रत्येक व्यक्ति को संविधान या विधि द्वारा उसे दिये गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कृत्यों के लिये सक्षम राष्ट्रीय अधिकरणों द्वारा प्रभावी उपचार पाने का अधिकार है।'