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सिविल कानून

प्रसूति के दौरान महिलाओं के अधिकार

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 04-Jan-2024

लोरेटो कॉन्वेंट तारा हॉल स्कूल की प्रबंध समिति के सचिव बनाम शारू गुप्ता और अन्य

"बच्चे की देखभाल करना न केवल महिला का मौलिक अधिकार है बल्कि समाज के अस्तित्व के लिये उसके द्वारा निभाई जाने वाली एक पवित्र भूमिका भी है।"

न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर

स्रोत: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोरेटो कॉन्वेंट तारा हॉल स्कूल की प्रबंध समिति के सचिव बनाम शारू गुप्ता और अन्य के मामले में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना है कि बच्चे की देखभाल करना न केवल महिला का मौलिक अधिकार है बल्कि समाज के अस्तित्व के लिये उसके द्वारा निभाई जाने वाली एक पवित्र भूमिका भी है।

लोरेटो कॉन्वेंट तारा हॉल स्कूल की प्रबंध समिति के सचिव बनाम शारू गुप्ता और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • वर्तमान मामले में प्रतिवादी को याचिकाकर्त्ता स्कूल में संविदा के आधार पर सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • उसे परिवीक्षा पर नियुक्त किया गया था और बाद में उसकी सेवाएँ समाप्त कर दी गईं।
  • बच्चे के जन्म के बाद, प्रतिवादी ने समाप्ति आदेश को रद्द करने के लिये श्रम निरीक्षक के समक्ष प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 की धारा 17 के तहत शिकायत दर्ज कराई।
  • प्राधिकृत निरीक्षक ने शिकायत स्वीकार की और प्रतिवादी को बहाल करने तथा उसे प्रसूति प्रसुविधा का भुगतान करने के निर्देश जारी किये।
  • इससे व्यथित होकर याचिकाकर्त्ताओं ने उच्च न्यायालय में अपील की जिसे बाद में न्यायालय ने खारिज़ कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर की एकल पीठ ने कहा कि गर्भधारण करना, बच्चे को जन्म देना और उसकी देखभाल करना न केवल महिला का मौलिक अधिकार है, बल्कि समाज के अस्तित्व के लिये उसके द्वारा निभाई जाने वाली एक अहम भूमिका भी है। इस कर्त्तव्य की कठिन प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, उसे वे सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिये जिनकी वह हकदार है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि माँ बनने का अधिकार भी सबसे महत्त्वपूर्ण मानवाधिकारों में से एक है और इस अधिकार की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिये तथा इसलिये, प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम के प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये।

प्रासंगिक कानूनी प्रावधान क्या हैं?

प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961:

परिचय:

  • यह प्रसवपूर्व या प्रसवोत्तर अवधि के लिये कुछ संस्थानों में महिलाओं के रोज़गार को विनियमित करने और प्रसूति प्रसुविधा तथा कुछ अन्य लाभ प्रदान करने के लिये एक अधिनियम है।
  • यह अधिनियम कामकाजी महिलाओं को सम्मानजनक तरीके से सभी सुविधाएँ प्रदान करने के लिये बनाया गया है ताकि वह प्रसवपूर्व या प्रसवोत्तर अवधि के दौरान जबरन अनुपस्थिति के कारण पीड़ित होने के डर से सम्मानजनक, शांतिपूर्वक और बिना डरे मातृत्व की स्थिति से उबर सके।
  • यह अधिनियम 1 नवंबर, 1963 को लागू हुआ।
  • इस अधिनियम की धारा 17 संदाय किये जाने का निदेश देने की शक्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-

(1) इस बात का दावा करने वाली कोई भी स्त्री कि-

(a) प्रसूति प्रसुविधा या कोई अन्य रकम, जिसका वह इस अधिनियम के अधीन हकदार है, अनुचित रूप से विधारित की गई है, और इस बात का दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति कि वह संदाय, जो धारा 7 के अधीन शोध्य है, अनुचित रूप से विधारित किया गया है।

(b) उसके नियोजक ने इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार, काम से उसकी अनुपस्थिति के दौरान या उसके कारण, उसको सेवोंमुक्त या पदच्युत कर दिया है, निरीक्षक को परिवाद कर सकेगी।

(2) निरीक्षक, स्वप्रेरणा से या उपधारा (1) में निर्दिष्ट परिवाद की प्राप्ति पर, जाँच कर सकेगा या करा सकेगा और यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि-

(a) संदाय सदोषतः विधारित किया गया है, तो वह अपने आदेशों के अनुसार संद्दय किये जाने का निदेश दे सकेगा।

(b) स्त्री को इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार काम से पदच्युततो वह ऐसे आदेश पारित कर सकेगा, जो मामले की परिस्थितियों के अनुसार न्यायसंगत और उचित हों।

(3) निरीक्षक के उपधारा (2) के अधीन के विनिश्चय से व्यथित कोई भी व्यक्ति, उस तारीख से जिसको ऐसा विनिश्चय ऐसे व्यक्ति को संसूचित किया जाए, तीस दिन के भीतर अपील विहित प्राधिकारी को कर सकेगा।

(4) जहाँ उपधारा (3) के अधीन अपील विहित प्राधिकारी को की गई हो, वहाँ उसका, और जहाँ ऐसी अपील न की गई हो, वहाँ निरीक्षक का विनिश्चय अंतिम होगा।

(5) इस धारा के अधीन संदेय रकम कलेक्टर द्वारा, निरीक्षक द्वारा उस रकम के लिये जारी किये गए प्रमाणपत्र पर, भू-राजस्व की बकाया की भांति वसूलीय होगी।

निर्णयज विधि:

  • दिल्ली नगर निगम बनाम महिला कर्मचारी (मस्टर रोल) (2000) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि माँ बनना एक महिला के जीवन में सबसे स्वाभाविक घटना है और इसके लिये, कामकाजी महिला को उसकी सेवा के साथ-साथ लाभों के विस्तार के संबंध में सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से लाभकारी कानून यानी प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 लागू किया गया है।