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किशोर न्याय (बालक की देखभाल और संरक्षण) नियम, 2007 का नियम 12

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 19-Mar-2024

गौरव कुमार @ मोनू बनाम हरियाणा राज्य

न्यायालय ने मूल निर्णय के पैराग्राफ 17 का पुनर्विलोकन किया और किशोर न्याय (बालक की देखभाल और संरक्षण) नियम, 2007 के तहत प्रासंगिक नियमों पर विचार करने के लिये उच्च न्यायालय की आवश्यकता को सही किया।

न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार और राजेश बिंदल

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने गौरव कुमार @ मोनू बनाम हरियाणा राज्य के किशोर न्याय (बालक की देखभाल और संरक्षण) नियम, 2007 से संबंधित मामले में एक समीक्षा याचिका पर सुनवाई की।

गौरव कुमार @ मोनू बनाम हरियाणा राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • 15 फरवरी, 2019 के एक निर्णय के पुनर्विलोकन के लिये पुनर्विलोकन याचिकाएँ दायर की गईं थीं।
  • निर्णय में उच्च न्यायालय से लंबित अपील पर आगे बढ़ने से पूर्व किशोरता के प्रश्न पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया।
  • पुनर्विलोकन का तर्क किशोर न्याय (बालक की देखभाल और संरक्षण) नियम, 2007 के नियम 12 का हवाला देते हुए निर्णय में स्पष्ट त्रुटि पर आधारित था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • याचिकाकर्त्ता और राज्य दोनों के अधिवक्ता को सुनने के बाद, न्यायालय ने पाया कि किशोरता के प्रश्न पर विचार करने के लिये लागू प्रावधान, किशोर न्याय (बालक की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 तथा किशोर न्याय (बालक की देखभाल एवं संरक्षण) नियम, 2007 के तहत थे।
  • प्रतिवादी के इस तर्क के बावजूद कि मूल निर्णय सही ढंग से तय किया गया था, न्यायालय ने एक स्पष्ट त्रुटि को स्वीकार किया और इसे ठीक करना आवश्यक समझा।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि याचिकाकर्त्ता को न्यायालय की त्रुटि का खामियाज़ा नहीं भुगतना चाहिये, इसलिये निर्णय में ही त्रुटि में सुधार की ज़रूरत है।
  • परिणामस्वरूप, न्यायालय ने मूल निर्णय के पैराग्राफ 17 का पुर्नार्विलोकन की और किशोर न्याय (बालक की देखभाल एवं संरक्षण) नियम, 2007 के तहत प्रासंगिक नियमों पर विचार करने के लिये उच्च न्यायालय की आवश्यकता को सही किया।
  • पुर्नार्विलोकन याचिकाओं का तद्नुसार निपटारा किया गया।

 JJ नियम, 2007 का नियम 12 क्या है?

यह नियम किशोर की आयु के निर्धारण में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया प्रदान करते हैं।

  • आयु निर्धारण के लिये समय सीमा:
    • कानून का उल्लंघन करने वाले किसी बालक या किशोर से संबंधित प्रत्येक मामले में, न्यायालय या बोर्ड या जैसा भी मामला हो, इन नियमों के नियम 19 में विनिर्दिष्ट समिति ऐसे उद्देश्य के लिये आवेदन करने की तारीख से तीस दिनों की अवधि के भीतर, ऐसे किशोर या बालक या कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर की आयु निर्धारित करेगी।
  • किशोरवयता का प्रारंभिक मूल्यांकन:
    • जैसा भी मामला हो, न्यायालय या बोर्ड या समिति किशोर या बालक की किशोरावस्था या अन्यथा विधि के उल्लंघन में किशोर होने का निर्णय प्रथम दृष्टया शारीरिक उपस्थिति या दस्तावेज़ों के आधार पर करेगा, यदि उपलब्ध है, और उसे संप्रेक्षण गृह या जेल भेज देगा।
  • आयु निर्धारण जाँच प्रक्रिया:
    • कानून का उल्लंघन करने वाले किसी बालक या किशोर से संबंधित प्रत्येक मामले में, आयु निर्धारण जाँच, न्यायालय या बोर्ड या, जैसा भी मामला हो, समिति द्वारा साक्ष्य मांगकर की जाएगी-
    • दस्तावेज़ीकरण:
      • मैट्रिकुलेशन या समकक्ष प्रमाण पत्र, यदि उपलब्ध हो;
        (i) के अभाव में, उस स्कूल से जन्मतिथि प्रमाण-पत्र (प्ले स्कूल के अलावा) जिसमें पहली बार भाग लिया था;
        (i) और (ii) के अभाव में किसी निगम, नगरपालिका प्राधिकरण या पंचायत से प्राप्त जन्म प्रमाण पत्र।
    • चिकित्सकीय राय:
      • उपर्युक्त खंड (a) के (i), (ii), या (iii) के अभाव में, विधिवत गठित मेडिकल बोर्ड से चिकित्सकीय राय लेना।
      • यदि आयु का सटीक आकलन नहीं किया जा सकता है, तो न्यायालय या बोर्ड या, समिति, जैसा भी मामला हो, यदि आवश्यक समझे, तो एक वर्ष के अंतराल के भीतर बालक या किशोर की आयु को कम मानकर उसे लाभ प्रदान कर सकती है।
    • किशोरत्व का निर्धारण:
      • यदि किसी किशोर या बालक या कानून का उल्लंघन करने वाले की उम्र अपराध की तिथि पर 18 वर्ष से कम पाई जाती है, तो उप-नियम (3) में निर्दिष्ट किसी भी निर्णायक सबूत के आधार पर, न्यायालय या बोर्ड, इन नियमों के प्रयोजन के लिये आवश्यक उम्र बताते हुए तथा किशोर की स्थिति या अन्यथा घोषित करते हुए लिखित रूप में एक आदेश पारित करेगी और आदेश की एक प्रति ऐसे संबंधित किशोर या व्यक्ति को दी जाएगी।
    • पूछताछ का निष्कर्ष:
      • सिवाय इसके कि जहाँ आगे की जाँच या अन्यथा की आवश्यकता हो, इस नियम के उप-नियम (3) में निर्दिष्ट प्रमाण पत्र, या किसी अन्य दस्तावेज़ी सबूत प्राप्त करने के बाद न्यायालय या बोर्ड द्वारा कोई और जाँच नहीं की जाएगी।
    • नियम प्रावधानों का अनुप्रयोग:
      • कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर के हित में उचित आदेश पारित करने हेतु, इस नियम में निहित प्रावधान उन निस्तारित मामलों पर भी लागू होंगे, जहाँ किशोरता की स्थिति उप-नियम (3) और अधिनियम में निहित प्रावधानों के अनुसार निर्धारित नहीं की गई है, जिसके लिये अधिनियम के तहत सज़ा की व्यवस्था की आवश्यकता होती है।