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वाणिज्यिक विधि
उच्चतम न्यायालय की चेक-अनादरण मामले में स्थानांतरण की शक्ति
« »26-Jun-2024
कस्तूरीपांडियन बनाम RBL बैंक लिमिटेड “चेक के अनादर के लिये परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के अंतर्गत शिकायत को आरोपी की ओर से किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है”। न्यायमूर्ति ए. एस. ओका एवं राजेश बिंदल |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कस्तूरीपांडियन बनाम RBL बैंक लिमिटेड के मामले में परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 से संबंधित स्थानांतरण याचिका पर निर्णय दिया। न्यायमूर्ति ए. एस. ओका एवं राजेश बिंदल ने शिकायत को स्थानांतरित करने की आरोपी की याचिका को खारिज कर दिया तथा कहा कि इस तरह के निर्णय (निर्णय का अधिकार) आमतौर पर शिकायतकर्त्ता के पास होते हैं, आरोपी के पास नहीं।
- यह निर्णय ऐसे मामलों में न्यायालय के क्षेत्राधिकार की सीमाओं को स्पष्ट करता है, साथ ही अभियुक्त को आवश्यकतानुसार व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट लेने की अनुमति भी देता है।
कस्तूरीपांडियन बनाम RBL बैंक लिमिटेड मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- चेक अनादरण के लिये NI अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अंतर्गत प्रारंभ में एक शिकायत दर्ज की गई थी।
- कस्तूरीपांडियन ने अपने विरुद्ध दायर शिकायत को किसी दूसरे न्यायालय में स्थानांतरित करने के लिये उच्चतम न्यायालय में अपील की।
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि चेक अनादरण मामले में आरोपी व्यक्ति को मामले को किसी दूसरे न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग करने का अधिकार है।
- कस्तूरीपांडियन की याचिका की वैधता निर्धारित करने के लिये उच्चतम न्यायालय को इस मामले की जाँच करने की आवश्यकता थी।
- न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने धारा 138 NI अधिनियम के एक मामले में आरोपी द्वारा दायर स्थानांतरण याचिका को खारिज कर दिया।
- न्यायालय ने माना कि चेक अनादरण मामले में आरोपी शिकायत के स्थानांतरण की मांग नहीं कर सकता।
- न्यायमूर्ति ए. एस. ओका एवं राजेश बिंदल की पीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसे मामलों को स्थानांतरित करने की शक्ति आरोपी द्वारा किये गए अनुरोधों तक विस्तारित नहीं होती है।
- न्यायालय ने पुष्टि की कि चेक अनादरण मामलों में फोरम का चुनाव आमतौर पर शिकायतकर्त्ता के पास होता है।
- स्थानांतरण के अनुरोध को खारिज करते हुए, न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त के पास व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट के लिये आवेदन करने का अधिकार है।
- पीठ ने निर्देश दिया कि व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट के लिये कोई भी आवेदन उस संबंधित न्यायालय में किया जाना चाहिये जहाँ शिकायत दर्ज की गई है।
- यह निर्णय अभियुक्त के विचारण के स्थान को बदलने की क्षमता को प्रभावी रूप से सीमित करता है, जबकि न्यायालय में उपस्थिति में संभावित कठिनाइयों को संबोधित करने के लिये प्रावधान बनाए रखता है।
परक्राम्य लिखत अधिनियम के अंतर्गत चेक अनादरण क्या है?
- परिचय:
- चेक के अनादरण से निपटने के लिये धारा 138 का प्रयोग किया जाता है, जिसे वर्ष 1988 में NI अधिनियम के अध्याय 17 के अंतर्गत शामिल किया गया है।
- NI अधिनियम की धारा 138 विशेष रूप से धन के अभाव के कारण चेक के अनादरण से संबंधित अपराध से निपटती है या यदि यह चेककर्त्ता के खाते द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि से अधिक है।
- यह उस प्रक्रिया से संबंधित है जहाँ चेककर्त्ता द्वारा किसी ऋण को पूरी तरह या आंशिक रूप से चुकाने के लिये चेक प्राप्त किया जाता है तथा चेक बैंक को वापस कर दिया जाता है।
- विधिक प्रावधान:
- यह धारा खाते में धनराशि की कमी आदि के कारण चेक के अनादर से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जहाँ किसी व्यक्ति द्वारा किसी बैंक में अपने खाते से किसी अन्य व्यक्ति को किसी ऋण या अन्य दायित्व के पूर्णतः या आंशिक रूप से भुगतान के लिये किसी धनराशि का भुगतान करने के लिये निकाला गया कोई चेक बैंक द्वारा बिना भुगतान के वापस कर दिया जाता है, या तो इसलिये कि उस खाते में जमा धनराशि चेक का भुगतान करने के लिये अपर्याप्त है या यह उस बैंक के साथ किये गए करार द्वारा उस खाते से भुगतान की जाने वाली राशि से अधिक है, ऐसे व्यक्ति को अपराध करने वाला माना जाएगा तथा इस अधिनियम के किसी अन्य प्रावधान पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उसे दो वर्ष तक की अवधि के कारावास या चेक की राशि के दुगुने तक के अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है:
- बशर्ते कि इस धारा में निहित कोई तथ्य तब तक लागू नहीं होगा जब तक कि—
(a) चेक जारी होने की तिथि से छह महीने की अवधि के अंदर या इसकी वैधता की अवधि के अंदर, जो भी पहले हो, बैंक में प्रस्तुत कर दिया गया हो,
(b) चेक के प्राप्तकर्त्ता या धारक, जैसा भी मामला हो, चेक के अवैतनिक रूप से वापस आने के विषय में बैंक से सूचना प्राप्त होने के तीस दिनों के अंदर, चेक प्रदाता को लिखित में नोटिस देकर उक्त धनराशि के भुगतान की मांग करता है, तथा
(ग) ऐसे चेक प्रदाता उक्त सूचना की प्राप्ति के पंद्रह दिन के अंदर, यथास्थिति, चेक के धारक को या चेक के लाभार्थी को उक्त धनराशि का भुगतान करने में असफल रहता है। - स्पष्टीकरण- इस धारा के प्रयोजनों के लिये, ऋण या अन्य दायित्व का अर्थ विधिक रूप से प्रवर्तनीय ऋण या अन्य दायित्व है।
CrPC की धारा 406 क्या है?
- उच्चतम न्यायालय को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 406 के अंतर्गत NI अधिनियम के धारा 138 मामलों को स्थानांतरित करने तथा धारा 142 के अंतर्गत बिना बाधा खंड के प्रभाव का अधिकार है।
- अब, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 446 मामलों एवं अपीलों को स्थानांतरित करने के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय की शक्ति से संबंधित है।
- यह धारा उच्चत्तम न्यायालय को किसी आपराधिक मामले या अपील को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में अथवा एक उच्च न्यायालय के अधीनस्थ आपराधिक न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ आपराधिक न्यायालय में स्थानांतरित करने की शक्ति प्रदान करती है।
- उच्चतम न्यायालय इस धारा के अंतर्गत केवल भारत के महान्यायवादी या किसी हितबद्ध पक्ष के आवेदन पर ही कार्य कर सकता है तथा ऐसा प्रत्येक आवेदन प्रस्ताव द्वारा किया जाएगा, जो, जब तक कि आवेदक भारत का महान्यायवादी या राज्य का महाधिवक्ता न हो, शपथ-पत्र या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित होगा।
- उच्चतम न्यायालय केवल निम्नलिखित के आवेदन पर कार्य कर सकता है:
- भारत के महान्यायवादी या,
- कोई भी इच्छुक पक्ष
- शिकायतकर्त्ता
- लोक अभियोजक
- आरोपी
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराने वाला व्यक्ति।
- ऐसा प्रत्येक आवेदन शपथपत्र या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित प्रस्ताव के रूप में किया जाएगा, सिवाय इसके कि आवेदन निम्नलिखित द्वारा किया गया हो:
- भारत का महान्यायवादी या,
- राज्य का महाधिवक्ता।
- जहाँ इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग के लिये कोई आवेदन खारिज कर दिया जाता है, वहाँ उच्चतम न्यायालय, यदि उसकी यह राय है कि आवेदन तर्कहीन या समयव्यर्थ करने वाला था, तो वह आवेदक को आदेश दे सकता है कि वह आवेदन का विरोध करने वाले किसी व्यक्ति को, एक हज़ार रुपए से अनधिक ऐसी राशि, जिसे वह मामले की परिस्थितियों में समुचित समझे, प्रतिकर के रूप में दे।
निर्णयज विधियाँ:
- एस. नलिनी जयंती बनाम एम. रामसुब्बा रेड्डी (2022)
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि धारा 138 के अंतर्गत शिकायत को आरोपी की सुविधा के अनुसार स्थानांतरित नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता एक महिला एवं वरिष्ठ नागरिक है, इसलिये न्यायाधीश ने कहा कि वह सदैव व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से छूट मांग सकती है।