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सिविल कानून
आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 151 की स्वीकृति
« »19-Jul-2024
उमंग महेंद्र शाह बनाम भारत संघ एवं अन्य “आयकर अधिनियम की धारा 151 के अधीन उचित स्वीकृति के अभाव में निर्गत किया गया धारा 148 A (d) आदेश प्रारंभ से ही अमान्य एवं विधिक रूप से निष्क्रिय है”। न्यायमूर्ति जी.एस. कुलकर्णी एवं न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरेशन |
स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उमंग महेंद्र शाह बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण विधिक मुद्दे पर प्रकाश डाला, जहाँ आयकर अधिनियम की धारा 148A(d) के अधीन एक आदेश, धारा 151(2) के अधीन उचित स्वीकृति के अभाव में, धारा 148 के अधीन आदेश और उसके बाद प्रेषित नोटिस, दोनों को अवैध बना देता है। यह निर्णय वर्ष 2016-17 के लिये कर पुनर्मूल्यांकन मामलों में प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के महत्त्वपूर्ण पालन को रेखांकित करता है।
उमंग महेंद्र शाह बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता ने कर निर्धारण वर्ष 2016-17 में आयकर अधिनियम की धारा 148 के अधीन निर्गत नोटिस (अधिसूचना) को चुनौती दी।
- यह नोटिस धारा 148A(b) के अधीन पूर्व नोटिस एवं धारा 148A(d) के अधीन आदेश पर आधारित था, जिसे भी चुनौती दी गई थी।
- 148A(d) आदेश के लिये अनुमोदन प्रधान आयकर आयुक्त द्वारा धारा 151(i) के अधीन दिया गया था।
- हालाँकि संबंधित कर निर्धारण वर्ष की समाप्ति के बाद 3 वर्ष से अधिक समय बीत चुका था, इसलिये उच्च अधिकारियों से धारा 151 (ii) के अधीन अनुमोदन प्राप्त किया जाना चाहिये था।
- याचिकाकर्त्ता ने सीमेंस फाइनेंशियल सर्विसेज़ मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय का उदाहरण देते हुए तर्क दिया कि इससे स्वीकृति एवं उसके बाद के नोटिस अवैध हो गए।
- न्यायालय ने सहमति व्यक्त की कि जिन मामलों में 3 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, उनके लिये अनुमोदन धारा 151 (ii) के अधीन होना चाहिये , न कि 151 (i) के अधीन।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- न्यायालय ने कहा कि धारा 148A(d) के अधीन आदेश पारित करने के लिये धारा 151 के खंड (ii) के अधीन स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक था।
- यह आवश्यकता तब लागू होती है जब प्रासंगिक कर निर्धारण वर्ष की समाप्ति के बाद तीन वर्ष से अधिक समय बीत चुका हो।
- इस मामले में, प्रासंगिक मूल्यांकन वर्ष 2016-17 था, इसलिये वास्तव में तीन वर्ष से अधिक समय बीत चुका था।
- हालाँकि स्वीकृति दोषपूर्ण तरीके से धारा 151 के खंड (ii) के बजाय खंड (i) के अधीन प्राप्त की गई थी।
- न्यायालय ने सीमेंस फाइनेंशियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम आयकर उपायुक्त मामले में पिछले खंड पीठ के निर्णय का हवाला दिया।
- सीमेंस मामले के आधार पर, न्यायालय ने माना कि यदि धारा 148A(d) के अधीन कोई आदेश धारा 151 के अधीन उचित स्वीकृति के बिना पारित किया जाता है, तो उसे अवैध घोषित किया जाना चाहिये।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि धारा 148A(d) के अधीन आरोपित आदेश एवं धारा 148 के अधीन परिणामी नोटिस दोनों ही अवैध थे।
- न्यायालय ने उठाए गए अन्य मुद्दों पर विचार किये बिना, इस सीमित आधार पर याचिका को अनुमति देने का निर्णय किया।
आयकर अधिनियम की धारा 148 क्या है?
आयकर अधिनियम की धारा 148 उस स्थिति में नोटिस जारी करने से संबंधित है, जब आयकर अध्यारोपण से बच गई हो। इस धारा के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
- नोटिस की आवश्यकता:
- धारा 147 के अधीन मूल्यांकन, पुनर्मूल्यांकन या पुनर्गणना करने से पहले, मूल्यांकन अधिकारी द्वारा करदाता को नोटिस देना होता है।
- नोटिस में करदाता को निर्दिष्ट अवधि के अंदर प्रासंगिक कर निर्धारण वर्ष के लिये आय का विवरण प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।
- रिटर्न हेतु निर्देश:
- रिटर्न निर्धारित प्रपत्र में होना चाहिये तथा निर्धारित तरीके से सत्यापित होना चाहिये।
- इसमें अधिनियम द्वारा निर्धारित अन्य विवरण भी शामिल होने चाहिये।
- अधिनियम का अनुप्रयोग:
- आयकर अधिनियम के प्रावधान इस रिटर्न पर उसी प्रकार लागू होंगे जैसे कि यह धारा 139 के अधीन अपेक्षित रिटर्न हो।
- नोटिस की वैधता:
- विशिष्ट परिस्थितियों में दिये गए कुछ नोटिस वैध माने जाते हैं, भले ही वे सामान्य 12 महीने की अवधि की समाप्ति के बाद दिये गए हों।
- यह इस धारा के अधीन नोटिस के प्रत्युत्तर में 1 अक्टूबर, 1991 एवं 30 सितंबर, 2005 के मध्य प्रस्तुत रिटर्न पर लागू होता है।
- समय-सीमा:
- नोटिस की वैधता का आकलन, पुनर्मूल्यांकन या पुनर्गणना करने के लिये धारा 153 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट समय-सीमा के अधीन है।
- धारा 148A:
- वर्ष 2021 के बजट में प्रस्तुत किया गया यह खंड भारत में कराधान में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाता है।
- यह आयकर अधिकारियों को यह अधिकार देता है कि वे आय को छुपाए जाने का संदेह होने पर पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही प्रारंभ कर सकते हैं।
- धारा 148A(d) विशेष रूप से ऐसी सूचना के अस्तित्व तक सीमित है जो यह सुझाव देती है कि कर योग्य आय मूल्यांकन से बच गई है।
आयकर अधिनियम की धारा 151 क्या है?
- आयकर अधिनियम की धारा 151: नोटिस जारी करने की स्वीकृति का प्रावधान।
- नोटिस जारी करने की समय-सीमा:
- धारा 148 के अधीन कोई भी नोटिस प्रासंगिक कर निर्धारण वर्ष की समाप्ति से चार वर्ष उपरांत जारी नहीं किया जा सकता।
- अपवाद: जब उच्च अधिकारी कर निर्धारण अधिकारी द्वारा दर्ज किये गए कारणों से संतुष्ट हों।
- प्राधिकरण आवश्यकताएँ:
- चार वर्ष की सीमा से परे के मामलों के लिये:
- प्रधान मुख्य आयुक्त, मुख्य आयुक्त, प्रधान आयुक्त या आयुक्त से अनुमोदन आवश्यक है।
- अन्य मामलों के लिये:
- संयुक्त आयुक्त से अधीनस्थ स्तर के मूल्यांकन अधिकारियों को संयुक्त आयुक्त से अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
- चार वर्ष की सीमा से परे के मामलों के लिये:
- उच्च अधिकारियों की संतुष्टि:
- उल्लिखित उच्च अधिकारियों को कर निर्धारण अधिकारी द्वारा दर्ज किये गए कारणों से संतुष्ट होना चाहिये।
- उन्हें धारा 148 के अधीन नोटिस जारी करने के लिये इसे उचित मामला समझना चाहिये।
- नोटिस जारी करने का प्रतिनिधिमंडल:
- मूल्यांकन अधिकारी के कारणों से संतुष्ट होने के बाद उच्च अधिकारियों को स्वयं नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं होती।
- मूल्यांकन अधिकारी आवश्यक स्वीकृति प्राप्त करने के बाद नोटिस जारी कर सकता है।
- अनुभाग का उद्देश्य:
- यह धारा मूल्यांकन अधिकारी की शक्तियों पर अंकुश लगाती है।
- यह सुनिश्चित करती है कि पुनर्मूल्यांकन के लिये नोटिस केवल योग्य मामलों में ही जारी किये जाएँ, विशेषकर पुराने मूल्यांकन वर्षों के लिये।