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सिविल कानून
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 100A
« »08-Sep-2023
प्रोमोशर्ट एस. एम. एस. ए. बनाम आर्मसुइसे और अन्य। "जिस मामले में एकल न्यायाधीश ने मूल या अपीलीय डिक्री या आदेश से अपील सुनी थी, उसमें सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 100A के आधार पर दूसरी अपील दाखिल करना वर्जित है"। न्यायमूर्ति यशवन्त वर्मा और धर्मेश शर्मा |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रोमोशर्ट एस. एम. एस. ए. बनाम आर्मासुइसे और अन्य के मामले में यह माना है कि जिस मामले किसी एकल न्यायाधीश ने मूल या अपीलीय डिक्री या आदेश से अपील सुनी थी, उसमें सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 100A के आधार पर दूसरी अपील दायर करने पर रोक है।
पृष्ठभूमि
- इस मामले में, व्यापार चिह्न उप-पंजीकार ने व्यापार चिह्न अधिनियम, 1999 के प्रावधानों के तहत प्रोमोशर्ट एस. एम. एस. ए. (अपीलकर्त्ता) द्वारा ट्रेडमार्क के पंजीकरण की अनुमति दी।
- व्यापार चिह्न उप-पंजीकार के आदेशों से व्यथित होकर, स्विट्जरलैंड की एक संघीय एजेंसी, आर्मासुइसे ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के समक्ष अपील दायर की।
- एकल न्यायाधीश ने आर्मासुइसे द्वारा दायर की गई अपील को स्वीकार कर लिया और व्यापार चिह्न उप-पंजीकार द्वारा पारित आदेशों को रद्द कर दिया।
- एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए, प्रोमोशर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष लैटर पेटेंट अपील (Letter patent Appeal (LPA) दायर की।
- प्रतिवादियों (आर्मसुइसे) ने तत्काल लैटर पेटेंट अपील (Letter patent Appeal (LPA) को मान्य करने पर प्रारंभिक आपत्ति जताई है और कहा है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) की धारा 100A के आलोक में यह मान्य होने योग्य नहीं होगा।
- अपीलों को आगे विचार के लिये सूचीबद्ध करते समय, उच्च न्यायालय ने कहा कि लैटर पेटेंट अपील (Letter patent Appeal (LPA) संहिता की धारा 100A द्वारा वर्जित नहीं होगी और लागू होगी।
लैटर पेटेंट अपील (Letter patent Appeal (LPA)
- यह किसी याचिकाकर्त्ता द्वारा एक न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ उसी न्यायालय की एक से अधिक न्यायाधीशों वाली एक अलग पीठ के समक्ष की गई अपील है।
- उच्चतम न्यायालय जाने से पहले याचिकाकर्त्ता के पास लैटर पेटेंट अपील (Letter patent Appeal (LPA) करने का विकल्प उपलब्ध होता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और धर्मेश शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) की धारा 100A ऐसे मामलों में दूसरी अपील दायर करने पर रोक लगाती है, जिसमें एकल न्यायाधीश ने मूल या अपीलीय डिक्री या आदेश के खिलाफ अपील सुनी थी।
- न्यायालय का कहना है कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) की धारा 100A उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश द्वारा दिये गए फैसले के खिलाफ आगे अपील दायर करने का प्रावधान करती है, जिसमें ऐसा एकल न्यायाधीश मूल या अपीलीय डिक्री या आदेश से अपील सुन रहा था।
- इस प्रकार इसका अर्थ यह प्रतीत होता है कि जिस मामले में उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने मूल या अपीलीय डिक्री या आदेश से उत्पन्न अपील पर विचार किया है, उसमें कोई और अपील दायर नहीं होगी।
- न्यायालय ने कहा कि धारा 100A का इरादा अपीलीय शक्तियों का प्रयोग करने वाले एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ दूसरी अपील तक ही सीमित होगा, बशर्ते कि यह सिविल प्रक्रिया संहिता द्वारा परिभाषित डिक्री या आदेश से संबंधित हो।
- इस प्रकार यह सीमा केवल वहीं लागू होगी जिसमें ऐसी डिक्री या आदेश जिसके खिलाफ एकल न्यायाधीश के समक्ष अपील की गई थी, वह सिविल कोर्ट का था।
कानूनी प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 100A
- धारा 100A जिसे मूल रूप से 1976 के संशोधन अधिनियम द्वारा पेश किया गया था।
- हालाँकि, 1976 के संशोधन को प्रभावी नहीं किया गया और इस धारा को वर्ष 2002 में संशोधित किया गया।
- धारा 100A में कहा गया है कि किसी उच्च न्यायालय के लिये किसी लेटर्स पेटेंट में या विधि का बल रखने वाली किसी लिखत में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ किसी मूल या अपीली डिक्री या आदेश से अपील की सुनवाई और उसका विनिश्चय किसी उच्च न्यायालय के किसी एकल न्यायाधीश द्वारा किया जाता है वहाँ ऐसे एकल न्यायाधीश के निर्णय और डिक्री से आगे कोई अपील नहीं होगी ।
- सलेम एडवोकेट बार एसोसिएशन, तमिलनाडु बनाम भारत संघ (2003) में, उच्चतम न्यायालय ने सीपीसी की धारा 100A की वैधता को बरकरार रखा।
व्यापार चिह्न अधिनियम, 1999
- व्यापार चिह्न अधिनियम, 1999 ने ट्रेड एंड मर्चेंडाइज मार्क्स अधिनियम, 1958 को निरस्त कर दिया।
- यह अधिनियम वस्तुओं और सेवाओं के लिये ट्रेडमार्क के पंजीकरण और बेहतर सुरक्षा तथा धोखाधड़ी वाले चिह्नों के उपयोग की रोकथाम का प्रावधान करता है।