Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

आपराधिक कानून

CrPC की धारा 100(5)

    «    »
 29-Jan-2024

CrPC की धारा 100(5) के तहत तलाशी और ज़ब्ती के गवाहों को गवाह के रूप में न्यायालय में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि न्यायालय द्वारा विशेष रूप से समन न किया जाए।

न्यायमूर्ति अंबुज नाथ

स्रोत: झारखण्ड उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मोहम्मद रेयाज़ुल और अन्य बनाम झारखंड राज्य मामले में ने झारखंड उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 100(5) के तहत तलाशी और ज़ब्ती के गवाहों को गवाह के रूप में न्यायालय में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि न्यायालय द्वारा विशेष रूप से समन न किया जाए।

मोहम्मद रेयाज़ुल और अन्य बनाम झारखंड राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, याचिकाकर्त्ताओं को निचली न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 414 के तहत अपराध के लिये दो वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई थी।
  • मुकदमे के दौरान याचिकाकर्त्ताओं द्वारा पहले ही काटी गई कारावास की अवधि को समाप्त करने का आदेश दिया गया था।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में अपील दायर की, यहाँ भी निचली न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि के फैसले को बरकरार रखा गया।
  • इसके बाद, झारखंड उच्च न्यायालय के समक्ष अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित फैसले के विरुद्ध एक आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन दायर किया गया
  • याचिकाकर्त्ताओं के वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्त्ताओं के अपराध के संबंध में निचली न्यायालय के साथ-साथ अपीलीय न्यायालय भी गलत निष्कर्ष पर पहुँची और अभियोजन पक्ष जब्ती गवाहों की जाँच करने में विफल रहा इस तथ्य पर विचार नहीं किया गया था।
  • उच्च न्यायालय ने पुनरीक्षण आवेदन को आंशिक रूप से अनुमति दे दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति अंबुज नाथ ने कहा कि वसूली के तथ्य को साबित करने के लिये अभियोजन पक्ष को केवल ज़ब्ती सूची को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। CrPC की धारा 100(5) के तहत तलाशी और ज़ब्ती के गवाहों को गवाह के रूप में न्यायालय में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि न्यायालय द्वारा विशेष रूप से समन न किया जाए।

इसमें शामिल प्रासंगिक विधिक प्रावधान कौन से हैं?

CrPC की धारा 100:

CrPC की धारा 100 बंद स्थानों के भारसाधक व्यक्तियों को तलाशी की अनुमति देने से संबंधित है जबकि इसी प्रावधान को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 103 के तहत शामिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि -

(1) बंद स्थान के भारसाधक व्यक्ति तलाशी लेने देंगे- जब कभी इस अध्याय के अधीन तलाशी लिये जाने अथवा निरीक्षण किये जाने वाला कोई स्थान बंद है तब उस स्थान में निवास करने वाला या उसका भारसाधक व्यक्ति उस अधिकारी या अन्य व्यक्ति की, जो वारंट का निष्पादन कर रहा है, मांग पर और वारंट के पेश किए जाने पर उसे उसमें अबाध प्रवेश करने देगा और वहां तलाशी लेने के लिये सब उचित सुविधाएँ देगा।

(2) यदि उस स्थान में इस प्रकार प्रवेश प्राप्त नहीं हो सकता है तो वह अधिकारी अथवा अन्य व्यक्ति, जो वारंट का निष्पादन कर रहा है धारा 47 की उपधारा (2) द्वारा उपबंधित रीति से कार्यवाही कर सकेगा।

(3) जहाँ किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में, जो ऐसे स्थान में अथवा उसके आसपास है, उचित रूप से यह संदेह किया जाता है कि वह अपने शरीर पर कोई ऐसी वस्तु छिपाए हुए है जिसके लिये तलाशी ली जानी चाहिये तो उस व्यक्ति की तलाशी ली जा सकती है और यदि वह व्यक्ति स्त्री है, तो तलाशी शिष्टता का पूर्ण ध्यान रखते हुए अन्य स्त्री द्वारा ली जाएगी।

(4) इस अध्याय के अधीन तलाशी लेने के पूर्व ऐसा अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जब तलाशी लेने ही वाला हो, तलाशी में हाज़िर रहने और उसके साक्षी बनने के लिये उस मुहल्ले के, जिसमें तलाशी लिया जाने वाला स्थान है, दो या अधिक स्वतंत्र और प्रतिष्ठित निवासियों को या यदि उक्त मुहल्ले का ऐसा कोई निवासी नहीं मिलता है या उस तलाशी का साक्षी होने के लिये रज़ामंद नहीं है तो किसी अन्य मुहल्ले के ऐसे निवासियों को बुलाएगा और उनको या उनमें से किसी को ऐसा करने के लिये लिखित आदेश जारी कर सकेगा।

(5) तलाशी उनकी उपस्थिति में ली जाएगी और ऐसी तलाशी के अनुक्रम में अभिगृहीत सब चीजों की और जिन-जिन स्थानों में वे पाई गई हैं उनकी सूची ऐसे अधिकारी या अन्य व्यक्ति द्वारा तैयार की जाएगी और ऐसे साक्षियों द्वारा उस पर हस्ताक्षर किए जाएँगे, किंतु इस धारा के अधीन तलाशी के साक्षी बनने वाले किसी व्यक्ति से, तलाशी के साक्षी के रूप में न्यायालय में हाज़िर होने की अपेक्षा उस दशा में ही की जाएगी जब वह न्यायालय द्वारा विशेष रूप से समन किया गया हो।

(6) तलाशी लिये जाने वाले स्थान के अधिभोगी को या उसकी ओर से किसी व्यक्ति को तलाशी के दौरान हाज़िर रहने की अनुज्ञा प्रत्येक दशा में दी जाएगी और इस धारा के अधीन तैयार की गई उक्त साक्षियों द्वारा हस्ताक्षरित सूची की एक प्रतिलिपि ऐसे अधिभोगी या ऐसे व्यक्ति को परिदत्त की जाएगी।

(7) जब किसी व्यक्ति की तलाशी उपधारा (3) के अधीन ली जाती है तब कब्जे में ली गई सब चीजों की सूची तैयार की जाएगी और उसकी एक प्रतिलिपि ऐसे व्यक्ति को परिदत्त की जाएगी।

(8) कोई व्यक्ति जो इस धारा के अधीन तलाशी में हाज़िर रहने और साक्षी बनने के लिये ऐसे लिखित आदेश द्वारा, जो उसे परिदत्त या निविदत्त किया गया है, बुलाए जाने पर, ऐसा करने से उचित कारण के बिना इंकार या उसमें उपेक्षा करेगा, उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 187 के अधीन अपराध किया है।

IPC की धारा 414

  • IPC की धारा 414 चोरी की संपत्ति को छुपाने में सहायता से संबंधित है और इसी प्रावधान को भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 317(5) के तहत शामिल किया गया है।
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 414 के अनुसार जो कोई असी संपत्ति को छिपाने में, या व्यक्तिगत करने में, या इधर-उधर करने में स्वेच्छया सहायता करेगा, जिसके विषय में वह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है की वह चुराई हुई संपत्ति है, वह दोनों में से, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक हो सकेगी, ज़ुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
  • चुराई हुई संपत्ति शब्द को IPC की धारा 410 में परिभाषित किया गया है।