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पारिवारिक कानून
HMA की धारा 11 और 12
« »31-Jan-2024
कुमारी अंकिता देवी बनाम श्री जगदीपेंद्र सिंह @कन्हैया "हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 का निर्णय धारा 11 में उल्लिखित आधारों के अलावा अन्य आधारों पर नहीं किया जा सकता है।" न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और डोनादी रमेश |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कुमारी अंकिता देवी बनाम श्री जगदीपेंद्र सिंह @कन्हैया ने शून्य एवं शून्यकरणीय विवाह के बीच अंतर पर प्रकाश डाला है और माना है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 11 का निर्णय धारा 11 में उल्लिखित आधारों के अलावा अन्य आधारों पर नहीं किया जा सकता है।
कुमारी अंकिता देवी बनाम श्री जगदीपेंद्र सिंह @कन्हैया मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- इस मामले में, अपीलकर्त्ता (पत्नी) ने HMA की धारा 12 के तहत पारिवारिक न्यायालय के समक्ष एक वैवाहिक याचिका दायर की थी, हालाँकि, संशोधन के माध्यम से, धारा 12 को HMA की धारा 11 से बदल दिया गया था।
- अपीलकर्त्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि विवाह धोखाधड़ी का परिणाम था और धारा 11 के तहत याचिका स्वीकार करने योग्य थी।
- जबकि प्रतिवादी (पति) ने दलील दी कि विवाह एक सादे समारोह में संपन्न हुआ था और उसके बाद अपीलकर्त्ता द्वारा विवाह का पंजीकरण कराया गया था।
- पारिवारिक न्यायालय ने HMA की धारा 11 के तहत दायर याचिका को खारिज़ कर दिया।
- इसके बाद, अपीलकर्त्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की जिसे बाद में न्यायालय ने खारिज़ कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की पीठ ने कहा कि शून्य विवाह को अस्तित्वहीन या जैसा कि कभी हुआ ही नहीं और ऐसी घोषणा कि विवाह शुरू से ही शून्य है, HMA की धारा 11 के तहत उसमें दिये गए आधारों पर मांगी जा सकती है, जबकि शून्यकरणीय विवाह को तब तक वैध और विद्यमान माना जाता है जब तक कि कोई सक्षम न्यायालय इसे तब तक रद्द नहीं कर देता जब तक HMA के अनुसार शून्यता का आदेश प्राप्त नहीं हो जाता।
- न्यायालय ने आगे कहा कि HMA की धारा 11 व धारा 12 के तहत आधारों के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर हैं और इस प्रकार, अधिनियम की धारा 11 के तहत दायर याचिका का निर्णय धारा 11 में उल्लिखित आधारों के अलावा अन्य आधारों पर नहीं किया जा सकता है।
इसमें कौन-से प्रासंगिक कानूनी प्रावधान शामिल हैं?
HMA की धारा 11:
परिचय:
- HMA की धारा 11 शून्य विवाह के प्रावधान से संबंधित है।
- यह धारा शून्य विवाहों को परिभाषित नहीं करती बल्कि वे आधार बताती है जिनके आधार पर विवाह को शून्य कहा जा सकता है।
- इसमें कहा गया है कि इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् अनुष्ठापित कोई भी विवाह, यदि वह धारा 5 के खण्ड (i), (iv) और (v) में विनिर्दिष्ट शर्तों में से किसी एक का भी उल्लंघन करता हो तो, अकृत और शून्य होगा एवं विवाह के किसी पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार के विरुद्ध उपस्थापित अर्ज़ी पर अकृतता की डिक्री द्वारा ऐसा घोषित किया जा सकेगा।
आधार:
- HMA के तहत कोई भी विवाह शून्य है यदि वह धारा 5 खंड (i), (iv) और (v) के तहत उल्लिखित शर्तों को पूरा नहीं करता है।
- धारा 5 के खंड (i) के तहत विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से, न तो वर की कोई जीवित पत्नी हो और न ही वधू का कोई जीवित पति हो।
- धारा 5 के खंड (iv) के तहत जब तक कि दोनों पक्षकारों में से हर एक को शासित करने वाली रुढ़ि या प्रथा से उन दोनों के बिच विवाह अनुज्ञात न हो, वे प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्रियों के भीतर न हो।
- धारा 5 के खंड (v) के तहत जब तक कि दोनों पक्षकारों में से हर एक को शासित करने वाली रूढ़ियाँ प्रथा से उन दोनों के बीच विवाह अनुज्ञात न हो, तथा वे एक दूसरे के सपिंड न हों।
प्रभाव:
- शून्य विवाह में पक्षकारों के पास पति-पत्नी की स्थिति नहीं होती है।
- HMA की धारा 16 के अनुसार शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे धर्मज होते हैं।
HMA की धारा 12:
परिचय:
- HMA की धारा 12 में शून्यकरणीय विवाह के प्रावधान की परिकल्पना की गई है:
- शून्यकरणीय विवाह तब तक मान्य विवाह है जब तक वह शून्य नहीं हो जाता है, और यह केवल तभी किया जा सकता है जब विवाह के पक्षकारों में से कोई एक इसके लिये याचिका दायर करता है।
- हालाँकि, यदि कोई भी पक्ष विवाह को रद्द करने के लिये याचिका दायर नहीं करता है, तो यह मान्य रहेगा।
आधार:
- HMA की धारा 5 के खंड (ii) का यदि अनुपालन नहीं किया जाता है, तो यह विवाह को शून्यकरणीय बना देता है।
- धारा 5 (ii) के अनुसार - विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से कोई पक्षकार -
(a) चित्त-विकृति के परिणामस्वरूप विधिमान्य सम्मति देने में असमर्थ न हो;
(b) विधिमान्य सम्मति देने में समर्थ होने पर भी इस प्रकार के या इस हद तक मानसिक विकार से पीड़ित न रहा हो कि वह विवाह और संतानोत्पत्ति के लिये, अयोग्य हो; या
(c) उसे उन्मत्तता या मिर्गी का बार-बार दौरा न पड़ता हो।
- धारा 5 (ii) के अनुसार - विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से कोई पक्षकार -
- धारा 12 में निम्नलिखित आधारों का उल्लेख है जिन पर विवाह को शून्यकरणीय घोषित किया जा सकता है:
- यदि प्रत्यर्थी की नपुंसकता के कारण विवाहोत्तर संभोग नहीं हुआ है।
- यदि विवाह में दोनों पक्षकारों में से कोई भी सहमति देने में असमर्थ है या बार-बार पागलपन के हमलों का शिकार रहा है।
- यदि याचिकाकर्त्ता की सहमति या याचिकाकर्त्ता के अभिभावक की सहमति बलपूर्वक या धोखाधड़ी से प्राप्त की गई है।
- यदि प्रतिवादी याचिकाकर्त्ता के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति से विवाह से पूर्व गर्भवती थी।
- प्रभाव:
- पक्षकारों को पति-पत्नी का दर्जा प्राप्त है, और उनके बच्चों को HMA की धारा 16 के आधार पर धर्मज माना जाता है। जीवनसाथी के अन्य सभी अधिकार और दायित्व बरकरार रहते हैं।