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सांविधानिक विधि

घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12

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 17-Jan-2024

X v. Y

“घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12(1) के अनुसार, किसी पीड़ित महिला को राहत प्रदान करने के लिये संरक्षण अधिकारी की घरेलू हिंसा रिपोर्ट पूर्व-आवश्यक शर्त नहीं है।”

जस्टिस चितरंजन दास

स्रोत: उड़ीसा उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उड़ीसा उच्च न्यायालय ने माना कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12(1) के अनुसार, किसी पीड़ित महिला को राहत प्रदान करने के लिये संरक्षण अधिकारी की घरेलू हिंसा रिपोर्ट पूर्व-आवश्यक नहीं है।

मामले की पृष्ठभूमि:

  • इस मामले में, विभिन्न राहत की मांग करने वाले याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही शुरू की गई थी, जिसमें 10,00,000/रुपए या एक महँगी कार दहेज में न मिलने पर याचिकाकर्त्ता द्वारा पीड़िता को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया था।
  • इसके बाद याचिकाकर्त्ता ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की और आरोपों से इनकार करते हुए ऐसी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।
  • याचिकाकर्त्ता के वकील ने तर्क दिया कि संरक्षण अधिकारी से DIR प्राप्त नहीं हुआ है, जैसा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12(1) के तहत आवश्यक है।
  • उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज़ करते हुए कहा कि याचिका ठोस नहीं है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • न्यायमूर्ति चित्तरंजन दाश ने कहा कि संरक्षण अधिकारी से DIR अनिवार्य नहीं है और इसलिये, घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12(1) के तहत एक पीड़ित महिला को राहत देने की पूर्व-आवश्यकता नहीं है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि धारा 12(1) के तहत मजिस्ट्रेट को DIR पर विचार करने की आवश्यकता है। हालाँकि, आदेश पारित करने के लिये DIR अनिवार्य नहीं है और केवल उन मामलों में ही इस पर विचार किया जाएगा, जहाँ इसे दायर किया गया है।

घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12:

अधिनियम का परिचय:

  • यह महिलाओं को सभी प्रकार की घरेलू हिंसा से बचाने के लिये बनाया गया एक सामाजिक लाभकारी कानून है।
  • यह उन महिलाओं के अधिकारों को प्रभावी सुरक्षा प्रदान करता है, जो परिवार के भीतर होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा की शिकार हैं।
  • इस अधिनियम की प्रस्तावना यह स्पष्ट करती है, कि अधिनियम की पहुँच यह है कि हिंसा, चाहे शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक या आर्थिक हो, सभी का निवारण कानून द्वारा किया जाना है।

DV अधिनियम की धारा 12:

मजिस्ट्रेट को आवेदन करना:

(1)  कोई व्यथित व्यक्ति या संरक्षण अधिकारी या व्यथित व्यक्ति की ओर से कोई व्यक्ति इस अधिनियम के तहत एक या अधिक अनुतोषों की ईप्सा करते हुए मजिस्ट्रेट को आवेदन पत्र प्रस्तुत कर सकेगा:

परंतु यह तब जबकि, ऐसे आवेदन-पत्र पर कोई आदेश पारित करने के पूर्व मजिस्ट्रेट, संरक्षा अधिकारी या सेवा प्रदायकर्ता से उसके द्वारा प्राप्त घरेलू घटना रिपोर्ट का विचारण करेगा।

(2) उपधारा (1) के तहत शामिल अनुतोष में, दोषीद्वारा कारित घरेलू हिंसा के कृत्यों द्वारा कारित क्षतियों के लिये प्रतिकर या क्षति के लिये वाद संस्थित करने के लिये ऐसे व्यक्ति के अधिकार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना प्रतिकर या क्षति के संदाय हेतु कोई आदेश पारित करने के लिये अनुतोष, प्राप्त हो सकेगा:

परन्तु यह तब अबकि, जहाँ प्रतिकर या नुकसानी के रूप में किसी राशि के लिए डिक्री, व्यथित व्यक्ति के हित में किसी न्यायालय द्वारा पारित की जा चुकी है तो राशि यदि कोई इस अधिनियम के तहत् मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए आदेश के अनुसरण में संदत्त की गई या संदेय, या , ऐसी डिक्री के अधीन संदेय राशि के विरुद्ध मुजरा किया जाएगा और डिक्री सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में समाहित कुछ भी के होते हुए भी, वह डिक्री, इस प्रकार  ऐसे मुजरे के पश्चात् शेष राशि यदि कोई है, के निष्पादन किए जाने योग्य होगी।

(3) उपधारा (1) के तहत् प्रत्येक आवेदन-पत्र ऐसे प्रारूप में होगा और ऐसी विशिष्टियाँ समाविष्ट करेगा जैसी विहित की गई हों या उसके यथा साध्य यथा समीप हो।

(4) मजिस्ट्रेट प्रथम सुनवाई दिनांक नियत करेगा जो सामान्यतः न्यायालय द्वारा आवेदन की प्राप्ति दिनांक से तीन दिनों से परे की नहीं होगी। 

(5) मजिस्ट्रेट उपधारा (1) के तहत् किये गये प्रत्येक आवेदन-पत्र का निपटान इसकी प्रथम सुनवाई दिनांक से 60 दिनों की अवधि के अंदर करने का प्रयास करेगा।

निर्णयज विधि:

  • अजय कौल और अन्य वनाम वी. जम्मू एवं कश्मीर राज्य एवं अन्य (2019) के मामले में जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने माना कि DV अधिनियम की धारा 12 से यह इंगित नहीं होता है कि शिकायत प्राप्त होने पर कोई मजिस्ट्रेट किसी आवेदन पर किसी भी आदेश को पारित करने से पहले घरेलू घटना की रिपोर्ट मांगने के लिये बाध्य है। इसलिये इस अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत दिए गए किसी भी आदेश को पारित करने से पहले मजिस्ट्रेट के लिये घरेलू घटना संबंधी रिपोर्ट प्राप्त करना अनिवार्य नहीं है।