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आपराधिक कानून

आईपीसी की धारा 149

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 06-Nov-2023

परशुराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य

"यह आवश्यक नहीं है कि गैरकानूनी सभा का गठन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आईपीसी की धारा 149 की सहायता से दोषी ठहराने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये "।

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, बी. वी. नागरत्ना और प्रशांत कुमार मिश्रा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने परशुराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में कहा कि यह आवश्यक नहीं है कि गैरकानूनी सभा का गठन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 149 की सहायता से दोषी ठहराने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये ।

परशुराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि:

  • अभियोजन पक्ष का मामला है कि अपीलकर्त्ता जालिम सिंह ने गांव के रास्ते पर एक शेड का निर्माण किया था जिसका उपयोग मवेशियों द्वारा किया जाता है।
    • चूँकि उक्त शेड को शिकायतकर्त्ता पक्ष की एक भैंस ने क्षतिग्रस्त कर दिया था, अपीलकर्त्ता जालिम सिंह ने उस भैंस को लाठी से पीटा था और उस भैंस को भगा दिया था।
    • इसके बाद, हथियारबंद व्यक्तियों के एक समूह के बीच हिंसक विवाद हुआ।
  • ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ताओं को दोषी ठहराया और आईपीसी की धारा 149 के साथ पठित धारा 302 के तहत दंडनीय अपराधों के लिये उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
    • इसके बाद मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई जिसे बाद में खारिज़ कर दिया गया।
    • इसके बाद उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई।
  • उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देशों के साथ अपील का निपटारा किया।
    • आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषसिद्धि को आईपीसी की धारा 304 के भाग-2 में बदल दिया गया।
    • अपीलकर्त्ताओं को 7 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • न्यायमूर्ति बी.आर.गवई, न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 149 को लागू करने के लिये, यह प्रदर्शित करना आवश्यक नहीं है कि किसी व्यक्ति ने एक गैरकानूनी सभा का सदस्य होने के लिये अवैध प्रत्यक्ष कार्य किया है या वह अवैध चूक का दोषी है। धारा 149 द्वारा निर्धारित सज़ा, एक अर्थ में, परोक्ष है, और यह अनिवार्य नहीं है कि गैरकानूनी सभा के प्रत्येक सदस्य ने व्यक्तिगत रूप से अपराध किया है।
  • न्यायालय ने मसल्टी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1964) के मामले का हवाला दिया।
  • इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि यह आवश्यक नहीं है कि गैरकानूनी सभा का गठन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आईपीसी की धारा 149 की सहायता से दोषी ठहराने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये। अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होगा कि किसी व्यक्ति को गैरकानूनी सभा का सदस्य होना चाहिये ।

आईपीसी की धारा 149:

  • के बारे में:
  • यह धारा गैरकानूनी सभा के सदस्यों द्वारा किये गए अपराध से संबंधित है।
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 149 के अनुसार, यदि विधिविरुद्ध जनसमूह के किसी सदस्य द्वारा उस जनसमूह के समान लक्ष्य का अभियोजन करने में कोई अपराध किया जाता है, या कोई ऐसा अपराध किया जाता है, जिसका किया जाना उस जनसमूह के सदस्य सम्भाव्य जानते थे, तो हर व्यक्ति, जो उस अपराध के किये जाने के समय उस जनसमूह का सदस्य है, उस अपराध का दोषी होगा।
    • आईपीसी की धारा 141 विधिविरूद्ध जनसमूह के बारे में वर्णन करती है।

आवश्यक विशेषतायें:

  • आईपीसी की धारा 149 के तहत व्यक्ति को दोषी ठहराने की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
    • विधिविरूद्ध जनसमूह का होना।
    • विधिविरूद्ध जनसमूह के किसी भी सदस्य द्वारा अपराध किया जाना।
    • किया गया अपराध जनसमूह के सामान्य उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिये होना चाहिये ।

निर्णयज विधि:

  • विन्नूभाई रणछोड़भाई पटेल बनाम राजीवभाई दुदाभाई पटेल (2018) में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि आईपीसी की धारा 149 एक अलग अपराध नहीं है, बल्कि यह एक गैरकानूनी सभा में अपराध करने के लिये समान उद्देश्य रखने वाले सभी सदस्यों के लिये परोक्ष दायित्व बनाता है।
  • यूनिस बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2002) में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि भले ही किसी भी आरोपी द्वारा कोई प्रत्यक्ष कृत्य नहीं किया गया है, फिर भी अपराध घटित होने के स्थान पर आरोपी उपस्थित होने के आधार पर आईपीसी की धारा 149 के तहत उत्तरदायी होगा।